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केरल: आदिवासी छात्रों का ड्रॉपआउट कम करने की मुहिम

केरल के वायनाड ज़िले के सुल्तान बतेरी शहर में आदिवासी छात्रों के स्कूल छोड़ने की दर को कम करने के लिए एक अनोखा प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है.

‘तिंका वंत’, आदिवासी भाषा में जिसका मतलब चाँद उग आना है, कुप्पाडी के सरकारी हाई स्कूल के आदिवासी छात्रों को ध्यान में रखकर बनाया गया है. इस स्कूल में ज़्यादातर छात्र पनिया समुदाय से आते हैं. पनिया एक पीवीटीजी समुदाय, यानि आदिम जनजाति है.

इस प्रोजेक्ट को 2016 में शुरु किया गया था, जब लगभग 60 आदिवासी छात्र सालाना स्कूल छोड़ देते थे. अब इस प्रोजेक्ट के चलते स्कूल ड्रॉपआउट दर काफ़ी नीचे आ गई है. फ़िलहाल यह दर सालाना 10 से भी कम है.

इस प्रोजेक्ट को लॉन्च करने वाली अध्यापिका निशा रामकृष्णन कहती हैं कि तिंका वंत का केंद्र आदिवासी संस्कृति है, जिससे स्कूल का माहौल आदिवासी भाषा बोलने वाले छोत्रों की उम्मीदों और ज़रूरतों के अनुरूप हो जाता है. 

सुल्तान बतेरी केरल के वायनाड ज़िले का छोटा सा शहर है

इस परियोजना को राज्य सरकार ने 2018 में दूसरी जगहों पर भी ’एनका स्कूल’ के नाम से लागू किया था.

इस प्रोजेक्ट में अध्यापकों के लिए सबसे मुश्किल काम है बच्चों को स्कूल तक लाना. हर सुबह अध्यापक आदिवासी बस्तियों में जाते हैं, और कई बार बच्चों को जगाकर, उनके तैयार होने का इंतज़ार करते हैं, ताकि उन्हें स्कूल लाया जा सके. 

निशा रामकृष्णन ख़ुद मुतंगा के पास कूट्टमूला में एक पनिया कॉलोनी के पास पली-बढ़ी थीं. वह पनिया और काटुनायकर आदिवासी समुदायों की भाषा बोल सकती हैं, जिससे उनके लिए इन समुदाय के बच्चों से मेलजोल बढ़ाना आसान हो जाता है.

निशा का कहना है कि समाज को यह समझने की ज़रूरत है कि आदिवासी लोग बहुत संवेदनशील होते हैं, और ज़रा सा भेदभाव भी बच्चों को स्कूल से दूर करने के लिए काफ़ी है.

मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज को उन आदिवासी छात्रों की सराहना कर उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए. स्कूल की पढ़ाई पूरी करने वाले आदिवासी छात्रों को विशेष व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाना जाहिए.

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