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केरल में आदिवासी की मौत: दबाव के बाद पुलिस ने SC/ST एक्ट के तहत दर्ज किया मामला

केरल में वायनाड के आदिवासी शख्स की मौत ने हड़कंप मचा दिया है. पिछले शुक्रवार को वायनाड जिले की परवायल आदिवासी कॉलोनी के विश्वनाथन कोझिकोड मेडिकल अस्पताल के पास आदिवासी शख्स विश्वनाथन को मृत पाया गया था. जिसके बाद से ही इस मामले में पुलिस की जांच पड़ताल पर लगातार सवाल उठ रहे थे.

लेकिन गुरुवार यानी आज पुलिस ने कहा कि उन्हें इस मामले में अहम सुराग मिले हैं. पुलिस फिलहाल सीसीटीवी फूटेज के आधार पर एक विस्तृत जांच कर रही है.

खबरों के मुताबिक राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की फटकार के बाद पुलिस ने इस मामले को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट के तहत दर्ज किया है. कोझिकोड शहर के पुलिस आयुक्त और एसीपी के नेतृत्व में पुलिस की आठ सदस्यीय टीम मामले की जांच में लग गई है. 

इससे पहले पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में आदिवासी शख्स की मौत को आत्महत्या करार दिया था. हालांकि, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने पुलिस की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

केरल राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग ने विश्वनाथन की मौत के मामले में प्रस्तुत पुलिस रिपोर्ट को अलग रखा था और पुलिस से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों को शामिल करने के लिए कहा था. साथ ही आयोग ने पुलिस से चार दिन के भीतर नई रिपोर्ट देने को कहा है.

क्या है मामला?

दरअसल, वायनाड जिले की परवायल आदिवासी कॉलोनी के विश्वनाथन कोझिकोड मेडिकल अस्पताल के पास मृत पाए गए थे, जब लोगों के एक समूह ने उस पर मोबाइल फोन चुराने का आरोप लगाते हुए बेरहमी से पीटा था.

विश्वनाथन अपनी पत्नी को प्रसव के दौरान अस्पताल लेकर आए थे और फिर 9 फरवरी को लापता हो गए. बाद में वो 11 फरवरी को अस्पताल के पास मृत पाए गए. पुलिस आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 174 के तहत मामला दर्ज करने के बाद जांच कर रही है. राज्य मानवाधिकार आयोग ने भी मामले में स्वत: संज्ञान लिया है.

वहीं मंगलवार को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग की ओर से सुनवाई हुई, जिसमें अध्यक्ष बीएस मावोजी ने कहा कि कोई भी व्यक्ति बिना किसी वैध कारण बड़ी वजह के अपनी जान नहीं लेगा… और पुलिस से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत जांच करने को कहा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में बीएस मावोजी ने कहा कि एससी/एसटी एक्ट के तहत जांच होनी चाहिए. नहीं तो फिर आपको यह साबित करना चाहिए कि उसके पास आत्महत्या करने का कोई और कारण था.

मावोजी ने पुलिस को बताया, “आत्महत्या करने के लिए किसी अन्य व्यक्तिगत कारणों की कोई संभावना नहीं थी. वो भी ऐसे वक्त जब उसकी पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया था. हो सकता है कि उन्हें अपने जीवन में पहले भी इसी तरह के अनुभवों का सामना करना पड़ा हो. लेकिन वो अनजान जगह पर इस तरह के आरोप का सामना नहीं कर सकता था. मारपीट की घटना मुख्य रूप से इसलिए हुई क्योंकि वह एक आदिवासी था. घटना के बाद वह अपमानित महसूस कर रहा होगा. हमें कारण का पता लगाने की जरूरत है. यह सिर्फ एक और सामान्य पुलिस केस नहीं है.”

मावोजी ने यह भी कहा कि जब विश्वनाथन को अनजान जगह पर इस तरह के आरोप का सामना करना पड़ा तो वो इसे बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं था.

इस पूरे मामले में एक बार फिर यह साबित हुआ है कि समाज के साथ साथ पुलिस जैसी सरकारी एजेंसी भी आदिवासी समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त होती हैं.

अगर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने पुलिस पर दबाव ना बढ़ाया होता तो शायद इस आदिवासी की हत्या को आत्महत्या बना कर दबा दिया जाता.

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