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केरल का ट्राइबल प्लस :आदिवासियों को मनरेगा में ज़्यादा दिनों तक मिलेगा रोज़गार

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा (MGNREGA) के अंतर्गत 100 दिन तक रोज़गार देने की बात कही गई है. लेकिन केरल (Kerala) के तिरूवनंतपुरम (thiruvananthapuram ) में राज्य सरकार की ख़ास योजना ट्राइबल प्लस (Tribal plus) के ज़रिए आदिवासी मजदूरों को 200 दिन तक रोजगार दिया जा रहा है.

अक्टूबर महीने तक आदिवासी मजदूर मनरेगा के अतंर्गत 100 दिनों से ज्यादा काम कर चुके हैं. इनमें से कुछ को काम करते हुए 200 दिन होने वाले है.

योजना के अंतर्गत काम करने वाली मजदूर, पद्मिनी माधवन ने कहा, “ पहले इस योजना से बस हमें पूरे साल में 100 दिन तक ही काम करने का अवसर मिलता था और जो काम से पैसे मिलते थे. उसे जीवन व्यापन करना बड़ा कठिन हो जाता था.

लेकिन योजना के अतंर्गत आए ट्राइबल प्लस की सहायता से हमें 100 दिन से ज्यादा काम करने का अवसर मिल जाता है. जिससे महिलाएं अपने बच्चों को स्कूल पढ़ा सकती है. इसके साथ ही उनकी चिकित्सा की सारी जरूरते भी पूरी कर सकती है. हालांकि हम इतना नहीं कमा पाते की कुछ पैसा बचा सके.

रोज़गार की अवधि बढ़ाने से ना सिर्फ आदिवासियों को लंबे समय तक काम- काज़ मिलता रहा. बल्कि इन्हें कई अन्य फायदें भी हुए.

मनरेगा मिशन से मिली जानकारी के अनुसार पूरे राज्य में करीब 29,083 आदिवासी परिवारों को योजना की सहायता से रोज़गार प्राप्त हुआ है. हालांकि ध्यान देने वाली बात ये है की इनमें से सिर्फ लगभग 3312 परिवारों को ही 100 दिन से ज्यादा समय तक काम करने का अवसर मिला है.

2017 में ट्राइबल प्लस को स्थानीय स्वशासन विभाग ने अनुसूचित जनजाति विकास विभाग की सहायता से राज्य के अट्टापडी में लागू किया था.

अट्टापडी प्लस से राज्य सरकार को काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले थे. इस तालुक में आए ट्राइबल प्लस से कई आदिवासी परिवारों को फायदा भी मिल रहा था और उनकी आय में भी वृद्धि हुई.

मनरेगा राज्य मिशन, कार्यक्रम अधिकारी, पी. बालचंद्रन ने बताया की  आदिवासियों की सालाना आय 3.3 लाख थी. जो अब बढ़कर 9.05 लाख हो गई है. वहीं अगर महीने के हिसाब से देखे आदिवासियों की आय 13,655 से बढ़कर 30,851 हो गई है.

इसी कड़ी में मनरेगा के एक अधिकारी ने बताया की राज्य के आदिवासी गांव वितुरा में ज्यादातर आदिवासियों की उम्र 50 साल से भी ज्यादा है.

ये सभी एक ट्राइबल ग्रुप ऊरुकुट्टम के अंतर्गत काम करते है. लेकिन ये काम के लिए कही बाहर नहीं जाते.

अब हालत ये है की इनके द्वारा बनाए बास्केट और अन्य हस्तशिल्प सामग्री की मांग मार्केट में बेहद कम हो गई है.

इसलिए मनरेगा के अंतर्गत 100 दिनों तक मिलने वाले रोज़गार आदिवासियों को कुछ हद तक राहत तो देता है.

लेकिन ये एक स्थायी समाधान नहीं है. क्योंकि 100 दिन तक काम मिलने का अर्थ ये है की आदिवासी साल के 9 महीने बेरोजगार रहते है.

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