Mainbhibharat

स्कूल खुलने के बाद भी क्यों अभी तक नीलांबुर के आदिवासी छात्रों की पहुंच से है दूर

कोविड-19 लॉकडाउन के बाद 1 नवंबर को फिर से खुलने के एक सप्ताह बाद भी केरल के नीलांबुर के जंगलों की बस्तियों से बड़ी संख्या में आदिवासी छात्र अपने स्कूलों तक नहीं पहुंच पाए हैं. क्योंकि अनुसूचित जनजाति विकास विभाग की गोथरा सारथी योजना के तहत आदिवासी छात्रों को स्कूलों में वापस ले जाने वाले वाहन अब नहीं चल रहे हैं.

विभाग ने गोथरा सारथी योजना के लिए धनराशि रोक दी है और स्थानीय स्व-सरकारी निकायों को आदिवासी बच्चों के परिवहन के खर्च को वहन करने के लिए कहा है. लेकिन पंचायतों ने इस पर अभी तक ध्यान नहीं दिया.

जब मीडिया ने 1 नवंबर को कट्टूनायकन्न जनजातियों के वेन्नाक्कोडे गांव का दौरा किया तो वहां बच्चे स्कूल जाने के लिए वाहन का इंतजार कर रहे थे. चलियार ग्राम पंचायत के एडिवन्ना एस्टेट के सरकारी एलपी स्कूल के कक्षा 6 के छात्र राहुल ने कहा, “मैंने सोचा था कि जीप आएगी और मैंने दोपहर तक इंतजार किया.”

एरान्हिमंगड में गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल के कक्षा 9 के छात्र और गंगा, मानक जो कक्षा 7 के छात्र हैं. गंगा ने कहा कि वह अपनी पढ़ाई जारी नहीं रखना चाहती.

उन्हीं की तरह नीलांबुर इलाके के करुलई, पोथुकल, वझिक्काडावु, मुथेदम और चालियार पंचायतों के दूरदराज के गांवों के दर्जनों आदिवासी बच्चे जीप का इंतजार कर रहे हैं. मिथरा ज्योति ट्राइबल डेवलपमेंट फाउंडेशन के अध्यक्ष अजू कोलोथ ने कहा, “अगर पंचायत या सरकार अभी कार्रवाई नहीं करती है तो ये आदिवासी बच्चों की शिक्षा को बुरी तरह प्रभावित करने वाली है.”

अनुसूचित जनजाति विकास विभाग ने शिक्षा विभाग, स्थानीय निकायों और अभिभावक-शिक्षक संघों के सहयोग से आंतरिक जंगलों और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों के लिए परिवहन सुविधाओं की व्यवस्था के लिए कुछ साल पहले गोथरा सारथी योजना शुरू की थी.

अब जबकि एसटी विकास विभाग ने योजना के लिए राशि देना बंद कर दिया है तो जिम्मेदारी पंचायतों पर है. चलियार पंचायत के अधिकारियों ने कहा कि शासी परिषद को बैठक करनी होगी और योजना के लिए धनराशि स्वीकृत करने पर निर्णय लेना होगा.

अजू कोलोथ के मुताबिक प्रभावित छात्रों को आदिवासी छात्रावासों में स्थानांतरित करना सबसे अच्छा विकल्प होगा. उन्होंने कहा, “वाहनों की प्रतीक्षा करने और शिक्षा की उसी पुरानी शैली को जारी रखने के बजाय उन्हें अलग-अलग जगहों पर छात्रावासों में स्थानांतरित करने से आदिवासी बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा सुनिश्चित करने में काफी मदद मिलेगी.”

Exit mobile version