Mainbhibharat

जानिए, आदिवासियों का सोहराय पर्व क्या है

आज यानि दिवाली के दूसरे दिन जब पूरा भारत गोवर्धन पूजा करता है. वहीं इसी दिन से आदिवासियों का सोहराय पर्व शुरु हो जाता है. आदिवासियों में सोहराय पर्व प्रमुख त्योहारों में से एक है. आदिवासी लोग इस पर्व को पांच दिनों तक मनाते हैं. इस त्योहार में आदिवासी अपनी गाय और प्रकृति की पूजा करते हैं.

साथ ही अच्छी फसल होने की कामना भी करते हैं. आदिवासी समाज के इस पर्व को लेकर झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा आदि राज्यों में बहुत पहले से तैयारी शुरु हो जाती है.

आदिवासी समाज की संस्कृति काफी रोचक है. शांत चित्त स्वभाव के लिए जाना जाने वाला आदिवासी समुदाय मूल्य रुप से प्रकृति की पूजा करते हैं. पर्व के पहले दिन गढ़ पूजा पर चावल गुंडी के कई खंड का निर्माण कर पहले खंड में एक अंडा रखा जाता है फिर गाय और बैलों को इकट्ठा कर छोड़ा जाता है.

जो गाय या बैल अंडे को फोड़ता या सूंघता है, उसकी भगवती के नाम पर पहली पूजा की जाती है और उन्हें भाग्यवान माना जाता है. इसके साथ ही लोग मांदर के थाप पर नृत्य करते हैं.

इसी दिन से बैल और गायों के सिंग पर प्रतिदिन तेल लगाया जाता है. दूसरे दिन गोहाल पूजा पर मांझी थान (यानि इनका मंदिर) में युवकों द्वारा लाठी का खेल का प्रदर्शन किया जाता है.

रात को गोहाल में पशुओं के नाम पर पूजा की जाती है. खाना-पीना के बाद फिर नाचगान का प्रोग्राम चलता है. तीसरे दिन खुंटैव पूजा पर प्रत्येक घर के द्वार में बैलों को बांधकर पीठा पकवान का माला पहनाया जाता है और ढोल ढाक, मंदार बजाते हुए पीठा को छीनने का खेल होता है.

चौथे दिन जाली पूजा के दिन घर-घर में चंदा मांगकर गांव के प्रधान को दिया जाता है और पांचवें दिन हांकु काटकम मनाते हैं. हांकु काटकम के दिन आदिवासी लोग मछली ककड़ी पकड़ते है. छठे दिन आदिवासी झूंड में शिकार के लिए निकलते हैं.

शिकार में मिले खरगोश, तीतर आदि को मांझीथान में इकट्ठा करके घर घर प्रसाद के रुप में बांटा जाता है. इस दिन गांव के बाहर नायकी अर्थात पुजारी सहित अन्य लोग ऐराडम पेंड़ को गाड़कर तीर चलाते है.

क्यों मनाते हैं सोहराय
सोहराय पर्व मनाने का मुख्य उद्देश्य गाय और बैलों को खुश करना है. गाय और बैल बेजुबान होते हैं और उनकी मेहनत से ही खेतों में फसल तैयार होता है. ऐसे में उनके साथ खुशियों को बांटने के लिए ये पर्व मनाया जाता है. इसके अलावा हर वर्ष फसल अच्छी हो, इसको लेकर भी ये पर्व मनाया जाता है.

सोहराय आदिवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. लेकिन दुख की बात यह है कि प्रकृति पूजक आदिवासी इस 21वीं सदी में भी पिछड़े हुए है. आज देश टेक्नोलॉजी से लेकर हर एक क्षेत्र में आगे है पर आदिवासी समाज पिछड़ा हुआ है. सरकार को गंभीर रूप से आदिवसियों पर ध्यान देने की जरुत है. जिससे वे भी समाज में अपनी पहचान बना सकें और मूल अधिकार के बारे जान पाये जिससे उनका जीवन आसान हो सके.

Exit mobile version