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झारखंड में नौकरी के लिए ज़रूरी होगा आदिवासी भाषा का ज्ञान

झारखंड सरकार ने झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग (Jharkhand State Staff Selection Commission) के माध्यम से राज्य में सरकारी नौकरियों (Government Jobs) के लिए अब क्षेत्रीय और आदिवासी भाषाओं (Tribal Languages) की जानकारी ज़रूरी होगी. 

इस सिलसिले में झारखंड सरकार ने गुरूवार को एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.

झारखंड कैबिनेट ने इस संबंध में संबंधित नियमों में संशोधन के प्रस्तावों को मंजूरी दी है. 

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया. 

झारखंड सरकार की अपेक्षा है कि राज्य में नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को स्थानीय संस्कृति, भाषा और परंपरा का ज्ञान होना चाहिए.  

इसके अलावा उन्हें एक क्षेत्रीय और आदिवासी भाषा में कम से कम 30 प्रतिशत अंक प्राप्त करने चाहिए. ये नंबर मेरिट लिस्ट तैयार करते समय अंकों में जोड़े जाएंगे. 

सरकार ने जिन क्षेत्रिय और आदिवासी भाषाओं की जानकारी को अनिवार्य बनाया है , वे हैं – मुंडारी, खारिया, हो, संथाली, खोरथा, पंचपरगनिया, बांग्ला, उर्दू, कुरमाली, नागपुरी, कुरुख और ओडिया.

सरकार के अधिकारियों ने बताया है कि जिला स्तरीय परीक्षाओं के लिए सरकार द्वारा भाषाओं की एक अलग सूची अधिसूचित की जाएगी.

झारखंड सरकार का दावा है कि इस फ़ैसले से राज्य सरकार की नौकरियों में स्थानीय लोगों को फ़ायदा होगा. राज्य सरकार के इस दावे में बहुत दम नज़र नहीं आता है. लेकिन इतना ज़रूर कहा सकता है कि इस फ़ैसले को लागू करने के कुछ फ़ायदे निश्चित ही हो सकते हैं.

आदिवासी इलाक़ों में अक्सर यह महसूस किया जाता है कि प्रशासनिक अधिकारियों और समुदायों के बीच संवाद ग़ायब होता है. इसकी एक बड़ी वजह होती है कि प्रशासन में शीर्ष अधिकारी उनकी भाषा को नहीं समझ पाते हैं. 

यही समस्या आदिवासी समुदायों में भी होती है कि वो अधिकारियों की बातें सुनते हैं लेकिन समझ नहीं पाते हैं. भाषा के अलावा यह भी महसूस किया जाता है कि आदिवासी इलाक़ों में जो अधिकारी नियुक्त होते हैं, यदि वो स्थानीय परंपराओं और जीवन शैली को समझते हैं तो प्रशासन की पहुँच समुदायों तक आसानी से हो जाती है. 

झारखंड सरकार के इस फ़ैसले से आदिवासी भाषाओं के संरक्षण में भी मदद मिल सकती है. क्योंकि अभी तक यह माना जाता है कि आदिवासी भाषाएँ काम काज की भाषा नहीं है. यानि सरकार इन भाषाओं का इस्तेमाल ही नहीं करती है. 

इसलिए आदिवासी छात्रों पर भी यह दबाव रहता है कि वो अपनी भाषाओं को छोड़ कर उन भाषाओं को सीखे, जो उसे नौकरी दिला सकती है. 

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