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देवता सहित आदिवासी आए जंगल से बाहर, उम्मीद है बेहतर होगी ज़िंदगी

कई दशकों से मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज से अलग रहने के बाद, ओडिशा के कालाहांडी ज़िले के एक गाँव के आदिवासी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए सहमत हो गए हैं.

ज़िले के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुटिया कोंध आदिवासी अपने मुख्य देवता के साथ तलहटी पर आकर रहने को तैयार हो गए हैं.

दियालबहेली गांव के इन आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास लंबे समय से हो रहा है. इससे पहले आदिवासियों को पहाड़ों को छोड़ने और तलहटी में बसने के लिए मनाने के कई प्रयास हुए, लेकिन वह अपने मुख्य देवता को छोड़ना नहीं चाहते थे.

कुटिया कोंध आदिवासियों के 16 परिवार कंकुत्रु पंचायत के बरगुडा गांव में रहते हैं. कुटिया कोंध विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह यानि पीवीटीजी (PVTG) समुदाय है.

यह आदिवासी आजीविका के लिए वन संसाधनों पर निर्भर हैं, और झूम खेती करते हैं. इनका गांव पहाड़ की चोटी पर है, और घने जंगलों से घिरा हुआ है. ऐसे में पक्की सड़कें, घर तक सुरक्षित पेयजल, स्वास्थ्य सेवाएं, बिजली, शिक्षा और अन्य सरकारी लाभ इन आदिवासियों तक नहीं पहुंच पाते.

प्रशासन के साथ कई दौर की चर्चा के बाद अब यह आदिवासी नए स्थान पर अपने मुख्य देवता को स्थापित कर तलहटी में बसने के लिए सहमत हुए हैं. इन आदिवासी परिवारों के लिए पीएम आवास योजना के तहत बनाए घर लगभग तैयार हो चुके हैं.

इसके अलावा हर परिवार को मनरेगा के तहत 380 रुपए के दैनिक वेतन के साथ 95 दिन की मज़दूरी मिलेगी.

इसके अलावा 16 सामुदायिक शौचालयों का निर्माण भी किया गया है, और जल्द ही घरों में बिजली भी पहुंचाई जाएगी. प्रशासन ने आदिवासियों के नए निवास स्थान से दियालबहेली तक 300 मीटर की सड़क का निर्माण भी किया है.

प्रशासन को उम्मीद है कि कुटिया कोंध आदिवासियों के अपना गांव छोड़कर दूसरी जगह बसने को तैयार होने से पहाड़ पर रहने वाले दूसरे लोगों को भी मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा.

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