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आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में कर्मचारियों की कमी, आदिवासी छात्र हॉस्टल में खाना बनाने को मजबूर

आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले (Srikakulam district) में कई आदिवासी कल्याण छात्रावासों (Tribal welfare hostels) के छात्र अपने हॉस्टल में रसोइया के तौर पर काम करने के लिए मजबूर है. और ऐसा इसलिए है क्योंकि जिले के सीतामपेटा एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी (ITDA) की सीमा के तहत निम्न श्रेणी के नौकरों (Lower grade servants) की कमी है.

पिछले चार वर्षों से अपने लंबित वेतन की मांग को लेकर कुछ एलजीएस के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) में जाने के बाद आईटीडीए के अधिकारियों ने निम्न श्रेणी के कर्मचारियों को टर्मिनेट कर दिया.

ITDA के अधिकारियों ने अभी तक नए एलजीएस की भर्ती नहीं की है. इसके बदले में कई आदिवासी कल्याण छात्रावासों के छात्र खुद खाना बनाने के लिए मजबूर हैं. वे किचन में टिफिन खुद ही तैयार कर रहे हैं. छात्र पूड़ी और इडली बना रहे हैं. हर दिन कम से कम 10 छात्र रसोई में काम कर रहे हैं.

वहीं कुछ छात्रों ने खाना बनाते हुए अपने साथी छात्रों का वीडियो शूट किया और इसे अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट कर दिया. जिसके बाद वायरल वीडियो ने माता-पिता और आदिवासी संगठनों के बीच तनाव पैदा कर दिया है.

एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी, सीतामपेटा में लगभग 15 हज़ार गरीब आदिवासी छात्रों की शैक्षिक और आवासीय जरूरतों को पूरा करने के लिए 47 आश्रम विद्यालय, 10 गुरुकुल और 2 मिनी गुरुकुल सहित 59 आदिवासी कल्याण आवासीय विद्यालय हैं.

15 साल पहले नियमित कर्मचारियों के अलावा कम से कम 103 निम्न श्रेणी के नौकर (LGS) रसोइया और रसोई नौकर के रूप में आदिवासी कल्याण छात्रावासों में अपनी इच्छा से शामिल हुए. उनका मानना था कि सरकार उनकी सेवा पर विचार करेगी और उन्हें आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के रूप में बढ़ावा देगी. इसलिए वे स्वेच्छा से आदिवासी कल्याण छात्रावासों में सेवा दे रहे थे.

वहीं ITDA के अधिकारियों ने अन्य सहायता अनुदान (OGIA) निधियों से हर महीने 5 हज़ार रुपये का भुगतान करके LGS को अपना वित्तीय समर्थन दिया. लेकिन आईटीडीए के अधिकारियों ने पिछले चार सालों से ओजीआईए फंड की कमी के नाम पर वित्तीय सहायता बंद कर दी है.

इस बीच 103 में से कम से कम 29 एलजीएस ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से संपर्क किया और अपनी 15 साल की सेवा के लिए न्याय और पिछले चार सालों से अपने लंबित वेतन के भुगतान की मांग की.

जिसके बाद एनसीएसटी ने याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए जिला कलेक्टर और आईटीडीए परियोजना अधिकारी को नोटिस जारी किया.

एनसीएसटी में दर्ज आईटीडीए अधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार, छात्रावासों में निचले दर्जे के नौकरों की कमी के कारण संस्थानों के प्रमुखों ने स्थानीय लोगों को नियुक्त कर व्यवस्था की थी. वे वित्तीय सहायता के बिना स्वेच्छा से LGS के रूप में शामिल हुए. इसलिए उक्त याचिकाकर्ताओं ने आदिवासी कल्याण विभाग के साथ-साथ सरकार से कोई संबंध नहीं रखते हुए स्वेच्छा से अपनी सेवा प्रदान की.

बाद में ITDA के अधिकारियों ने संस्थानों के प्रमुखों को LGS को टर्मिनेट करने का निर्देश दिया. जिन्होंने अपने लंबित वेतन के लिए NCST से संपर्क किया था. इसलिए संस्था प्रमुखों ने कुछ दिन पहले ही 29 एलजीएस को उनकी ड्यूटी से हटा दिया है.

इस बीच जिन्हें ड्यूटी से हटा दिया गया है वो मझधार में लटक गए हैं. बैदुलापुरम आदिवासी कल्याण छात्रावास, पथापटनम के जननी दलय्या ने कहा, “मैं 15 साल पहले आदिवासी कल्याण छात्रावास में एक निम्न श्रेणी के नौकर के रूप में लगा था. ITDA के अधिकारियों ने वित्तीय सहायता के रूप में प्रति माह 5 हज़ार रुपये का भुगतान किया. लेकिन उन्होंने पिछले चार वर्षों से सहायता बंद कर दी है. इसलिए हमने न्याय के लिए एनसीएसटी से संपर्क किया है. बाद में, ITDA के अधिकारियों ने बिना किसी पूर्व सूचना के हमें टर्मिनेट कर दिया. ऐसे में क्या हमारे लिए अपने परिवारों का गुजारा करना संभव है अगर सरकार बिना वेतन दिए सिर्फ भोजन और आवास प्रदान करती है?”

वहीं आदिवासी कल्याण विभाग के उप निदेशक नागेश ने कहा, “वे 15 साल पहले ITDA से किसी भी वित्तीय सहायता की उम्मीद किए बिना स्वेच्छा से LGS के रूप में शामिल हुए हैं. उन्हें किसी नियमित/संविदा/आउटसोर्सिंग आधार पर नियुक्त नहीं किया गया था. हम उनकी सेवा के लिए छात्रावासों में भोजन और आश्रय दे रहे हैं. वित्तीय सहायता के लिए उनके अनुरोध के आधार पर हमने ओजीआईए कोष से हर महीने 5 हज़ार रुपये का भुगतान किया है. लेकिन हमारे पास पिछले चार वर्षों से धन नहीं है.”

यह स्थिति बेहद अफ़सोसनाक है क्योंकि जिन छात्रावासों से जुड़ा यह मामला है वहाँ पर आदिवासी समुदायों में भी सबसे गरीब परिवारों के छात्र पढ़ने और एक बेहतर भविष्य की उम्मीद ले कर आते हैं.

लेकिन प्रशासन और व्यवस्था का इस तरह का रवैया उनकी उम्मीदों को तोड़ देता है.

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