झारखंड के गुमला जिले में दूर-दराज के पहाड़ी इलाकों में बसे आदिवासी गाँव लंबे समय से बुनियादी सुविधाओं से वंचित थे.
इन गाँवों में न तो बिजली थी, न सड़क, और न ही स्वास्थ्य या शिक्षा की उचित व्यवस्था.
सबसे बड़ी समस्या थी – अंधेरा.
जैसे ही सूरज ढलता था, गाँवों में सन्नाटा और डर छा जाता था. बच्चों की पढ़ाई रुक जाती थी, महिलाएं रसोई तक सीमित हो जाती थीं और रात में किसी आपात स्थिति में निकलना तक संभव नहीं था.
जंगलों और पहाड़ियों से घिरे इन गाँवों में बिजली के खंभे और तार पहुँचाना आसान नहीं था.
गाँववाले बरसों से सरकार से बिजली की मांग कर रहे थे, लेकिन कठिन भौगोलिक स्थिति और प्रशासनिक अनदेखी के कारण कोई समाधान नहीं हो पा रहा था.
कुछ लोगों ने पेट्रोमैक्स या मिट्टी के दिए जलाकर काम चलाया, लेकिन वह अस्थायी उपाय था.
बहुत से लोगों ने अपने बच्चों की पढ़ाई बीच में छोड़ दी क्योंकि रोशनी नहीं थी.
फिर झारखंड सरकार ने गुमला जिले में सौर ऊर्जा परियोजना शुरू की.
Renewable Energy Development Authority की मदद से दो सालों में यहाँ 1,848 सोलर स्ट्रीट लाइटें और 153 हाई-मास्ट लाइटें लगाई गईं.
साथ ही मंजरिपत, जलहन-सरंगो और नक्टीझरिया-कोबजा गाँवों में मिनी सोलर ग्रिड भी लगाए गए.
ये सोलर ग्रिड 10 से 25 किलोवॉट तक बिजली पैदा करते हैं, जिससे अब गाँवों को 24 घंटे रोशनी मिल रही है.
प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना के तहत गुमला के नौ गाँवों को ‘सोलर मॉडल विलेज’ घोषित किया गया है.
इन गाँवों में 12,000 से अधिक घरों में अब मुफ्त या कम लागत पर बिजली पहुंचाई जा रही है.
इससे गाँव की महिलाएं, बुज़ुर्ग, छात्र और किसान सभी को राहत मिली है.
सरकार का कहना है कि यह परियोजना गुमला जैसे पिछड़े इलाके के लिए एक रोल मॉडल है, लेकिन विपक्षी दल और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि यह काम बहुत पहले होना चाहिए था.
उनका कहना है कि यह वही सरकार है जो आदिवासियों की जमीन पर विकास के नाम पर परियोजनाएं बनाती है, लेकिन असली जरूरतों को लंबे समय तक नजरअंदाज करती है.
पहले बिजली न होने के कारण गाँवों में महिलाओं को सबसे ज़्यादा दिक्कत होती थी.
रात को शौच के लिए जाना, बच्चों का ख्याल रखना और सुरक्षा एक बड़ी चुनौती थी.
अब महिलाएं बताती हैं कि सोलर लाइट की वजह से वे खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं.
बच्चों को पढ़ने के लिए उजाला मिला है और गाँव की बैठकें अब रात को भी हो सकती हैं.