Mainbhibharat

केरल: चोलानायकन आदिवासी समुदाय के इकलौते सरकारी कर्मचारी की मौत, सरकार और आदिवासियों के बीच अहम कड़ी थे बाबू परप्पनपारा

चोलानायकन आदिवासी समुदाय के इकलौते फ़ॉरेस्ट गार्ड, बाबू परप्पनपारा की मौत हो गई है. अपने आठ दोस्तों के साथ कोलीमट्टम जंगल में शहद इकट्ठा करने गए 36-वर्षीय बाबू गुरुवार रात आठ बजे 20-फ़ुट की खाई में गिर गए. उनका शव शुक्रवार सुबह बरामद किया गया.

चौकीदार के रूप में 2014 में वन विभाग में भर्ती पाने वाले बाबू परप्पनपारा चोलानायकन जनजाति से अकेले सरकारी कर्मचारी थे. चोलानायकन विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति यानि पीवीटीजी है.

वायनाड में सिर्फ़ 13 चोलानायकन परिवार हैं, जिसमें कुल 43 लोग हैं. यह सभी वायनाड की मूपइनाड ग्राम पंचायत के परप्पनपारा में बसे हैं, जो ज़िले की आदिवासी बस्तियों में सबसे दुर्गम इलाक़े में है.

बाबू को याद करते हुए आईटीडीपी (Integrated Tribal Development Programme – ITDP) के ज़िला प्रोजेक्ट ऑफ़िसर ने कहा कि उनकी कमी को पूरा करना नामुमकिन होगा.

चाहे वो कोई स्वास्थ्य कार्यक्रम हो, शिक्षा, पुनर्वास, जनगणना या कोई दूसरी गतिविधि, चोलानायकन आदिवासियों के साथ संपर्क स्थापित करने में बाबू की अहम भूमिका रहती थी.

जंगल में जीने के तरीकों और उसमें आने वाली दिक्कतों के बारे में बाबू को गहन जानकारी थी. इसी वजह से वो शोधकर्ताओं और पर्यावरणविदों के लिए भी काफ़ी महत्वपूर्ण थे.

बाबू ने ही अपने समुदाय के बच्चों को शिक्षा हासिल करने के लिए कल्लूर के मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया था.

चोलानायकन आदिवासी मुख्य रूप से केरल में रहते हैं, और इस क्षेत्र के आखिरी हंटर-गैदरर जनजातियों में से एक हैं.

1960 के दशक तक चोलानायकन आदिवासियों का मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज के साथ बहुत सीमित संपर्क था. उसके बाद इनकी पारंपरिक जीवन शैली में बदलाव आया. मौजूदा समय में समुदाय की साक्षरता दर सिर्फ़ 16% है.

1991 की जनगणना में चोलानायकन समुदाय की जनसंख्या 360 बताई गई थी. 2011 में यह गिर कर सिर्फ़ 191 दर्ज की गई.

Exit mobile version