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मध्यप्रेदश में ग़ैर आदिवासी अगर आदिवासी लड़की से करता है शादी, तो ये होगा लव जिहाद

मध्यप्रेदश सरकार ने कहा है कि अनुसूचि 5 के इलाक़ों में आदिवासी महिलाओं से शादी कर, ज़मीन हड़पने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी. इस सिलसिले में मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने अनुसूचित जनजाति सलाहकार परिषद की बैठक में कहा कि प्रशासन जल्दी ही इस संबंध में नियम बनाएगा. 

ख़बरों के अनुसार बीजेपी के कुछ नेताओं ने मुख्यमंत्री शिवराज चौहान से कहा था कि राज्य में प्रस्तावित मध्यप्रेदश फ्रीडम ऑफ़ रिलीजन क़ानून में यह प्रावधान भी किया जाए. बीजेपी के इन नेताओं का कहना था कि आदिवासियों की ज़मीन हड़पने के लिए ग़ैर आदिवासी लोग आदिवासी लड़कियों से शादी कर लेते हैं. 

बीजेपी के एक स्थानीय नेता राम डंगोरे के अनुसार यह व्यवस्था आदिवासी लड़कियों की रक्षा कर सकता है. उन्होंने कहा कि आदिवासी लड़कियों का ग़ैर आदिवासियों के हाथों शोषण रोकने के लिए यह एक अच्छा क़दम है. 

मध्यप्रेदश सरकार यूपी की तरह ही एक ऐसा क़ानून बना रही है जिसे लव जिहाद को रोकने की कोशिश बताया जा रहा है. यूपी में हाल ही में इस क़ानून के दुरुपयोग के मामले भी सामने आए हैं. 

लोकसाभा सांसद कांतिलाल भूरिया

मध्यप्रेदश में कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता और लोकसभा सांसद कांतिलाल भूरिया ने मैं भी भारत से बात करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश सरकार की प्राथमिकताएं गड़बड़ हैं. उनका कहना था कि आदिवासियों के बड़े मसले छोड़कर सरकार ध्यान भटकाने में लगी है. 

उन्होंने कहा कि सरकार को उन मसलों पर काम करना चाहिए जो आदिवासियों के अधिकारों से जुड़े हैं.

झारखंड से आदिवासी महिलाओं के मसलों पर लगातार लिखने और बोलने वाली रजनी मुर्मू ने मैं भी भारत से बात करते हुए कहा कि क्या मध्यप्रेदश सरकार यह बता सकती है कि ग़ैर आदिवासियों ने आदिवासी लड़कियों को बहकाकर कितनी ज़मीन पर कब्ज़ा किया है. 

महिला अधिकार कार्यकर्ता रजनी मुर्मू

वो कहती हैं कि सच्चाई ये है कि सरकार बड़े कॉरपोरेट घरानों से मिल कर आदिवासियों की ज़मीन लूट रही है. इस लूट का कोई हिसाब किताब नहीं है. इस लूट को रोकने की बजाए सरकार इस अपराध में शामिल है.

रजनी मुर्मू कहती हैं कि कोई आदिवासी या ग़ैर आदिवासी लड़की किससे शादी करेगी यह तो आदिवासी लड़की ही तय कर सकती है. इस तरह का क़ानून दरअसल आदिवासी लड़कियों की आज़ादी पर प्रतिबंध लगाने जैसा होगा.

उन्होंने कहा कि अफ़सोस की बात है कि वोट बैंक की राजनीति की वजह से ज़्यादातर आदिवासी संगठन भी इस तरह की मांग का समर्थन करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी महिलाओं की ट्रैफ़िकिंग एक बड़ा मसला है, लेकिन सरकार उस सिलसिले में कुछ नहीं करना चाहती है. 

उन्होंने कहा कि झारखंड में भी इस तरह की मांग होती रही है, जो दुर्भाग्यपूर्ण और ग़लत है.

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