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पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश में इन 3 जनजातियों का किया जिक्र, जानिए इसके पीछे के सियासी कारण

मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटों के लिए 17 नवंबर को चुनाव होने वाला है. ऐसे में सभी पार्टियों ने चुनाव के लिए कमर कस ली है. इसी बीच अक्टूबर में चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक “विशेष मिशन” का वादा किया. जिसके माध्यम से सत्ता में आने पर राज्य में बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों के कल्याण पर 15,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे.

राज्य सरकार ने इन तीन जनजातियों की पहचान ‘विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह’ या ‘पीटीजी’ के रूप में की है. इन जनजातियों की स्तिथी ठीक नहीं है। इनकी स्तिथी सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर है. इसके अलावा इनकी जनसंख्या भी काफी कम है इसलिए इन्हें विशेष आदिम जनजातीय समूह (SPTGs) के रूप में जाना जाता है.

ये तीन जनजातियां राज्य की कुल अनुसूचित जनजाति आबादी का 8 प्रतिशत हिस्सा हैं. मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति आबादी 21 प्रतिशत है. 2018 के चुनावों में भाजपा 47 एसटी सीटों में से केवल 16 जीत सकी जबकि कांग्रेस को 30 सीटों पर जीत मिली थी.

2018 विधानसभा चुनाव के परिणामों को देखते हुए बीजेपी आदिवासी वोट को सुरक्षित करना चाहती है. बीजेपी आदिवासी वोट के लिए अपनी पकड़ मजबूत कर रही है. इस योजना के अलावा पार्टी रानी दुर्गावती, शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह जैसे आदिवासी प्रतीकों पर भी ध्यान दे रही है.

* बैगा जनजाति

बैगा जनजाति पूर्वी मध्य प्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में निवास करती है, जिसमें मंडला, बैहर (बालाघाट), डिंडोरी और शहडोल जिले शामिल हैं. माना जाता है कि इस समूह की उत्पत्ति छोटा नागपुर पठार की भूमिया जनजाति से हुई है.

बैगा जनजाति की आजीविका का स्रोत वन उपज है. उन्हें औषधीय जड़ी-बूटियों का व्यापक ज्ञान रखने के लिए जाना जाता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस जनजाति की संख्या 4 लाख से अधिक है.

* भैरा जनजाति

भैरा जनजाति समुदाय पातालकोट जिले में रहता है, जो कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष कमल नाथ के निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा से 78 किमी दूर स्थित है. इस क्षेत्र की अन्य जनजातियों से काफी हद तक कटे हुए भरिया लोग पहाड़ियों से घिरी घोड़े की नाल के आकार की घाटी में रहते हैं. इनकी संख्या 1.9 लाख होने का अनुमान है.

* सहरिया जनजाति

सहरिया जनजाति उत्तरी मध्य प्रदेश में रहती है. ज्यादातर ये लोग ग्वालियर, दतिया, श्योपुर, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, गुना और अशोक नगर जिलों में रहते हैं. 6.1 लाख की संख्या वाले इस समूह की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती-किसानी, दैनिक मजदूरी, शहद, तेंदू पत्ता, महुआ और औषधीय पौधों जैसे लघु वन उत्पादों का संग्रह और बिक्री है.

महाकौशल ही क्यों?

कमल नाथ के गढ़ छिंदवाड़ा जिले की सात सीटों सहित 38 विधानसभा सीटों के साथ महाकौशल क्षेत्र भाजपा के लिए रुचि का क्षेत्र रहा है. 2018 में कांग्रेस ने यहां भाजपा की 13 सीटों की तुलना में 24 सीटें जीती थी. हालांकि 2013 में स्क्रिप्ट उलट थी. भाजपा को यहां 24 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस 13 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था.

इसके अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रिय लाडली बहना योजना भी इस क्षेत्र में लाभ दे सकती है.

वहीं 230 विधानसभा सीटों में से कम से कम 18 सीटों पर महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों से आगे हैं. जिनमें बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जैसे महाकौशल के आदिवासी बहुल इलाके भी शामिल हैं. कहा जाता है कि बैगा और भारिया जनजातियों का 16 एसटी सीटों पर प्रभाव है.

उत्तरी मध्य प्रदेश का महत्व

भाजपा ने इस क्षेत्र में पारंपरिक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है. भाजपा ने 2008 में यहां 34 में से 16 सीटें और 2013 में 20 सीटें जीती थी. लेकिन 2018 के चुनावों में उसे झटका लगा. 2018 के चुनाव में कांग्रेस को कृषि ऋण माफी का फायदा मिला और उसे 26 सीटों पर जीत मिली. लेकिन जैसे ही सिंधिया 2020 में 22 विधायकों सहित अपने कुछ समर्थकों के साथ पार्टी में आए, भाजपा ने अपनी सीटों की संख्या में सुधार करके 16 सीटें कर लीं.

अब पीएम मोदी द्वारा इन तीन जनजातियों के लिए किए गए वादे का बीजेपी को इस चुनाव में कितना फायदा मिलता है यह तो 3 दिसंबर को साफ हो जाएगा.

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