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मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में स्कूल ड्रॉपआउट दर में वृद्धि

मध्य प्रदेश के कई जिलों में स्कूल छोड़ने वालों की बढ़ती संख्या ने सरकार और शिक्षा अधिकारियों के लिए ख़तरे की घंटी बजा दी है. कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से राज्य के आदिवासी इलाकों में दूसरों की तुलना में ड्रॉपआउट दर काफी अधिक है.

अकेले बड़वानी जिले में 2023-24 में स्कूल ड्रॉपआउट के हैरान कर देने वाले आंकड़े सामने आए हैं. बड़वानी में 1,788 छात्रों ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी है.

इसी तरह की चुनौतियां मुरैना, भिंड, अशोकनगर, आगर मालवा, अलीराजपुर और बैतूल जैसे जिलों में देखी जाती हैं. जहाँ स्कूल छोड़ने वालों की संख्या चिंताजनक रूप से अधिक रहती है.

मुरैना में यह संख्या 309 है; शिवपुरी में यह 350 है; भिंड में यह 145 है; अशोकनगर में 195 है. आगर मालवा में यह संख्या 218 है; अलीराजपुर में 283 है; वहीं बैतूल में इस अवधि में 322 छात्रों ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी है.

आधिकारिक पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, ड्रॉपआउट दरों में यह वृद्धि लिंग, सामाजिक और भौगोलिक असमानताओं को उजागर करता है. कुछ जिलों में ड्रॉपआउट दर के आंकड़े बेहद चिंताजनक है.

राज्य शिक्षा केंद्र के डायरेक्टर, धनराजू एस., इस मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए इस बात पर जोर देते हैं कि लैंगिक समानता और सभी के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद आदिवासी क्षेत्रों में स्कूल डॉपआउट दर चिंताजनक रूप से अधिक बनी हुई है.

उन्होंने कहा कि इन हाशिये पर रहने वाले समुदायों को स्कूल छोड़ने की दर में काफी अधिक वृद्धि का सामना करना पड़ता है. जो इन क्षेत्रों में वित्तीय बाधाओं से लेकर व्यापक सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दर्शाता है जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक उनकी पहुंच में बाधा उत्पन्न करता है.

उन्होंने आगे कहा कि ड्रॉपआउट के बढ़ते आंकड़ों के जवाब में मध्य प्रदेश सरकार स्थिति को कम करने के अपने प्रयासों को दोगुना कर रही है.

इसमें शिक्षा में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, हाशिए पर रहने वाले समुदायों को लक्षित सहायता प्रदान करने और शैक्षिक पहुंच में भौगोलिक असमानताओं को दूर करने के उद्देश्य से की गई पहल इस लड़ाई में सबसे आगे हैं.

मध्य प्रदेश में ड्रॉपआउट संकट को हल करने की राह चुनौतियों से भरी है. शैक्षिक समानता की दिशा में यात्रा लंबी है लेकिन निरंतर प्रयासों और सामुदायिक भागीदारी के साथ मध्य प्रदेश का लक्ष्य स्थिति को मोड़ना है. यह सुनिश्चित करना है कि शिक्षा उसके आदिवासी युवाओं के लिए एक अधिकार बन जाए, विशेषाधिकार नहीं. ऐसे में अब देखना है कि राज्य का सक्रिय रुख आशा की किरण बनता है या नहीं.

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