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मध्य प्रदेश: बड़वानी में स्कूल टीचर का निलंबन रद्द करने के लिए आदिवासियों ने सरकार पर बनाया दबाव

भारत जोड़ो यात्रा में भाग लेने के लिए निलंबन का सामना कर रहे स्कूल शिक्षक राजेश कनोजे को आदिवासियों का समर्थन मिला है. आदिवासियों ने जनजातीय मामलों के असिस्टेंट कमिश्नर को एक ज्ञापन सौंपकर कनोजे के निलंबन को रद्द करने की मांग की. आदिवासियों ने कहा कि अगर तय समय में उनकी मांग पूरी नहीं की गई तो वे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे.

आदिवासी शिक्षक राजेश कनोजे बड़वानी ज़िले के नेवानी तहसील के एक प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाते थे. उन्होंने 24 नवंबर को आदिवासी नेताओं के साथ खंडवा में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकात की थी. साथ ही उन्होंने राहुल गांधी को सम्मान के प्रतीक के रूप में धनुष और तीर भेंट की.

लेकिन बोरगांव और रुस्तमपुर के बीच भारत जोड़ो यात्रा में भाग लेने के एक दिन बाद यानि 25 नवंबर को आदिवासी मामलों के विभाग ने उन्हें निलंबित कर दिया. सोशल मीडिया पर उनके निलंबन आदेश के सामने आने के बाद यह मामला सामने आया.

जनजातीय कार्य विभाग के असिस्टेंट कमिश्नर नीलेश रघुवंशी ने उनके निलंबन का कारण बताते हुए कहा कि यह मध्य प्रदेश सिविल सेवा आचरण नियमावली, 1965 के नियम 5 और नियम 9 का उल्लंघन है. नियम सरकारी कर्मियों को राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में भाग लेने से रोकते हैं.

इस बीच स्थानीय आदिवासियों ने विभाग पर स्कूल शिक्षक को परेशान करने का आरोप लगाया और कहा कि उसके खिलाफ की गई कार्रवाई अनुचित है. उन्होंने कार्रवाई को विभाग और सरकार का पक्षपातपूर्ण रवैया बताया.

आदिवासियों ने कहा, “अगर सरकारी कर्मचारी सरकारी रैलियों में भाग लेते हैं और झंडे और बैनर उठाते हैं तो सब कुछ ठीक है और अगर कोई सरकारी कर्मचारी अन्य राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग लेता है तो यह नियमों का उल्लंघन है.”

वहीं असिस्टेंट कमिश्नर नीलेश रघुवंशी ने कार्रवाई को सही ठहराया है और कहा है कि एक सरकारी स्कूल का शिक्षक राजनीतिक कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले सकता है. इससे भी बदतर उन्होंने विभाग पर दबाव बनाने के लिए निलंबन आदेश को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया.

रघुवंशी ने कहा कि अगर उन्होंने कुछ गलत किया है तो कनोजे उच्च अधिकारियों के सामने अपील कर सकते हैं क्योंकि सभी को अपना पक्ष रखने का अधिकार है. हालांकि उन्होंने कहा कि राजेश कनोजे की बहाली अभी संभव नहीं है.

(Photo Credit: The Free Press Journal)

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