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आदिवासियों की आवाजाही पर रोक लगाना एक अपराध: मद्रास हाई कोर्ट

आदिवासियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सड़क पर से ब्लॉकेड हटाने का आदेश देते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि इस तरह की हरकत करने वाले पर एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी.

कोर्ट ने कहा कि यह साफ़ है कि वो सड़क जिस गांव तक पहुंचती है, वहां आदिम जनजातियां रहती हैं. ऐसे में उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली सड़क को ब्लॉक करना अपराध है.

नीलगिरी ज़िले के एक गांव तक जाने वाली सड़क के ब्लॉक किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर जस्टिस एस एम सुब्रमण्यम का यह आदेश आया. जस्टिस सुब्रमण्यम ने कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधान स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सार्वजनिक स्थान तक जाने वाले रास्तों को ब्लॉक करना एक अपराध है.

उन्होंने अपने आदेश में कहा, “गाँव में रहने वाली जनजातियों को किसी भी स्थिति में सड़क का इस्तेमाल करने या उस तक पहुंचने से नहीं रोका जा सकता है.”

जस्टिस सुब्रमण्यम ने ज़िला अधिकारियों को एक हफ़्टे के अंदर सभी ब्लॉकेड और फ़ाटकों को हटाने, और कार्ट ट्रैक पर किसी भी तरह के निर्माण को हटाने को कहा है. इसके अलावा उनसे यह सुनिश्चित करने को भी कहा गया है कि गांव के सभी आदिवासियों, छोटे चाय उत्पादकों और जनता की सड़क तक पहुंच हो.

2016 में जी सुबैयन द्वारा दायर याचिका में नीलगिरि टी एस्टेट्स लिमिटेड (एनटीईएल) द्वारा सेनगुतारायण मलई गांव और मंजकोम्बई-कुल्लकम्बी मेन रोड के बीच स्थित कार्ट ट्रैक पर लगाए गए फाटकों को हटाने की मांग की गई थी. याचिका में सुबैयन ने कहा था कि फ़ाटक लगाने से इलाक़े के आदिवासी लोगों और छोटे चाय उत्पादकों की आवाजाही पर असर पड़ा है. साथ ही वाहनों की आवाजाही भी बाधित हुई है.

एनटीईएल के वकील ने कहा कि ग्रामीणों को पूरी तरह से आने-जाने से नहीं रोका गया है, सिर्फ़ प्रवेश और निकास को रेगुलेट किया गया है. जस्टिस सुब्रमण्यम ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि इस तरह के कोई भी नियम या प्रतिबंध आदिवासियों के अधिकारों पर सीधे वार करते हैं. उन्होंने कहा कि इन्हें कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे कानून व्यवस्था के मुद्दे भी पैदा हो सकते हैं.

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