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आदिवासी बच्चों को खाना दिया जाए या पैसा? महाराष्ट्र में हो रही है समीक्षा

महाराष्ट्र सरकार राज्य के आदिवासी छात्रों के खाते में सीधे पैसा भेजे जाने के फ़ैसले की समीक्षा करने का निर्णय किया है.

राज्य में पिछली सरकार यानि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने रेज़िडेंशियल स्कूलों के छात्र-छात्राओं के खाते में डायरेक्ट बेनिफ़िट ट्रांसफ़र (Direct Benefit Transfer) के ज़रिए पैसा भेजने का फ़ैसला किया था. 

यह पैसा इन आदिवासी छात्रों को भोजन और स्टेशनरी के लिए दिया जाता है. उस समय की सरकार ने यह फ़ैसला हॉस्टल और स्कूल में मिलने वाले भोजन के मामले में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए किया था. 

इस योजना के शुरू किए जाने से पहले सरकार हर साल स्कूलों में भोजन, ड्रेस और स्टेशनरी सप्लाई करने का टेंडर निकालती थी.

इस प्रक्रिया में अक्सर देर हो जाती थी और छात्रों को समय पर सामान नहीं मिल पाता था. इसके अलावा ठेकेदार जो सामान सप्लाई करते थे उसकी क्वालिटी पर भी सवाल उठते थे. 

महाराष्ट्र में राज्य सरकार का आदिवासी विकास विभाग 491 हॉस्टल चलाता है. इन हॉस्टलों में फ़िलहाल 58495 छात्र रहते हैं. इनमें से 35644 लड़के हैं, और 22851 लड़कियाँ हैं.

ये हॉस्टल दूर दराज़ के आदिवासी इलाक़ों के आदिवासी लड़के-लड़कियों को पढ़ाई का मौक़ा देने के मक़सद से बनाए गए हैं. इन सभी हॉस्टलों में एक कैंटीन का प्रावधान है. 

सरकार ने जब आदिवासी छात्रों के लिए डीबीटी योजना (DBT Scheme) लागू की तो इसका विरोध हुआ था.

विधान सभा में कई विधायकों ने यह सवाल उठाया कि इस योजना के बाद हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है.

कई छात्र संगठनों ने आदिवासी हॉस्टलों में कैंटीन फिर से शुरू करने के लिए आंदोलन किया था

हॉस्टल में रहने वाले छात्र-छात्राओं का भी कहना था कि सरकार उनके खाने और दूसरी ज़रूरतों के लिए जितना पैसा देती है, वो पर्याप्त नहीं होता है. 

इस तरह के फ़ीडबैक के बाद अब सरकार ने एक कमेटी बनाने का फ़ैसला किया है. यह कमेटी पता लगाएगी कि डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफ़र योजना का कैसा असर रहा है. यह कमेटी इस योजना से पहले की व्यवस्था से इसकी तुलना भी करेगी. 

यह कमेटी आदिवासी मामलों के पूर्व मंत्री पद्माकर वलवी की अध्यक्षता में बनाई गई है. इस कमेटी में 5 और सदस्य भी शामिल हैं.

यह कमेटी फ़रवरी यानि इसी महीने के अंत तक अपनी रिपोर्ट देगी. इस कमेटी का मुख्य काम पिछली व्यवस्था और अभी की व्यवस्था की तुलना कर तथ्यों को पेश करना होगा. 

यह कमेटी नंदुरबार, गढ़चिरौली, पालघर और दूसरे आदिवासी इलाक़ों में जाएगी और ज़मीनी हालात का पता लगाएगी.

इस दौरान कमेटी आदिवासी बच्चों के लिए बनाए गए हॉस्टलों में रह रहे छात्र-छात्राओं से मिलेगी और उनसे बातचीत करेगी. इसके अलावा कमेटी इन आदिवासी बच्चों के माँ बाप से भी मिलेगी. 

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