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महाराष्ट्र: NCST ने कुसुंबी के आदिवासियों की खनन के लिए दी गई जमीन और मुआवजे का हिसाब मांगा

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribe) ने महाराष्ट्र के चंद्रपूर जिला कलेक्टर को निर्देश दिया है कि मानिकगढ़ सीमेंट को खनन पट्टा प्रदान करने के लिए कुसुंबी गांव के आदिवासियों को उनकी भूमि के खिलाफ भुगतान किए गए मुआवजे का विवरण और 1979 से प्लांट द्वारा उत्पन्न राजस्व से संबंधित दस्तावेज 15 दिन के भीतर प्रदान करें.

दरअसल, फरवरी के आख़िरी हफ्ते में यह मामला तब सामने आया जब एनसीएसटी ने चंद्रपूर के जिला कलेक्टर विनय गावड़ा जीसी को व्यक्तिगत रूप से सुनवाई में शामिल न होने पर गिरफ्तार करने का आदेश दिया था.

हालांकि, बाद में कलेक्टर द्वारा आयोग को लिखित रूप में अपना पक्ष समझाने के बाद गिरफ्तारी वारंट रद्द कर दिया गया था.

यह मुद्दा मानवाधिकार प्रचारक विनोद खोबरागड़े द्वारा एनएससीटी के पास दायर शिकायत से संबंधित है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार ने जिवती तालुका के कुसुंबी गांव के आदिवासियों की 63.62 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया और गाँव के भूस्वामियों की सहमति के बिना मानिकगढ़ सीमेंट (अब अल्ट्राटेक सीमेंट) को चूना पत्थर खनन के लिए अतिरिक्त सरकारी भूमि के साथ सौंप दिया था.

1 मार्च को दिल्ली में एनसीएसटी के समक्ष सुनवाई हुई. एनसीएसटी ने याचिकाकर्ता विनोद खोबरागड़े की दलील और जिला कलेक्टर गावड़ा द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को सुना.

सुनवाई के दौरान प्राप्त तथ्यों के आधार पर आयोग ने नौ प्रश्नों के साथ एक नया पत्र जारी किया और कलेक्टर को पत्र प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर विवरण और संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा. आयोग ने कहा है कि दस्तावेजों की जांच के बाद अगर जरूरत लगी तो वह चंद्रपुर जा सकता है. आयोग ने पत्र में जिला कलेक्टर को नौ मांगें लिखकर दी है.

कलेक्टर गावड़ा को लीज एग्रीमेंट की कॉपी और उसके बाद के रिन्यूअल डॉक्यूमेंट, आदिवासियों और याचिकाकर्ताओं के साथ संचार से संबंधित सभी दस्तावेज और राजुरा और जिवती तहसील के विभाजन से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए कहा गया है.

आयोग ने यह भी स्पष्टीकरण मांगा है कि रिन्यूअल डॉक्यूमेंट में विभाजन के बाद तहसील को क्यों नहीं बदला गया. इसने 1979 से कंपनी के सीमेंट प्लांट द्वारा उत्पन्न राजस्व का विवरण भी मांगा है. साथ ही कंपनी और आदिवासी लोगों के बीच समझौता ज्ञापन की प्रति भी मांगी है.

मानिकघर प्लांट की स्थापना के बाद से पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट की प्रतियां और केस संख्या 4236/2019 में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल मुंबई के आदेश की कॉपी भी मांगी गई है. आयोग ने लीज डेड और उसके बाद के नवीनीकरण के संबंध में 1979 से अब तक भुगतान किए गए मुआवजे का ब्योरा भी मांगा है.

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