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महाराष्ट्र: आदिवासी कल्याण के लिए सिर्फ़ अफ़सरों का थिंक-टैंक, नाराज़ कार्यकर्ताओं ने कहा- कैसे होगी निष्पक्ष समीक्षा

महाराष्ट्र के आदिवासी कल्याण विभाग ने भविष्य का रोडमैप तैयार करने के लिए एक थिंक-टैंक का गठन किया है. यह थिंक-टैंक राज्य सरकार के विभागों में चल रही योजनाओं का मूल्यांकन करेगा. लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसमें थर्ड पार्टी इनपुट नहीं होगा, बल्कि इसमें सिर्फ़ सरकारी अधिकारियों को शामिल किया गया है.

8 जुलाई को गठित नौ सदस्यीय टीम आदिवासियों के कल्याण के लिए मौजूदा योजनाओं का आकलन, समीक्षा या उनमें संशोधन करेगी, और नई योजनाओं का सुझाव देगी. सरकारी प्रस्ताव में कहा गया है कि थिंक-टैंक का नेतृत्व विभाग सचिव करेंगे, और इसमें आठ जूनियर अधिकारी शामिल होंगे.

आदिवासी कल्याण विभाग के सचिव डॉ अनूप कुमार यादव के मुताबिक़ आदिवासी कल्याण के क्षेत्र में काम करने वाले कई अधिकारी हैं, जिन्होंने नए विचारों और परियोजनाओं को लागू किया है. यह टीम सभी डेटा इकट्ठा करेगी, भविष्य के लिए रोडमैप तैयार करेगी और इसे विशेषज्ञ जांच के लिए उपलब्ध कराएगी.

यह पूछे जाने पर कि क्या शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं और संगठनों जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की भागीदारी के बिना कल्याणकारी योजनाओं की निष्पक्ष समीक्षा की जा सकती है, तब अधिकारी ने कहा कि रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के बाद विशेषज्ञ की राय के लिए प्रस्तुत किया जाएगा.

सूत्रों के मुताबिक, राज्य की पिछली महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार के आदिवासी कल्याण मंत्री केसी पड़वी ने आदिवासी कल्याण के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की भागीदारी के साथ एक थिंक-टैंक बनाने की योजना बनाई थी.

इस बीच, आदिवासी कल्याण और अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस प्रस्ताव की निंदा की है. उनका कहना है कि ऐसे लोग जो खुद परियोजनाओं को लागू कर रहे हैं, वो निष्पक्ष समीक्षा कैसे करेंगे.

उन्होंने ऐसे समय में GR जारी करने की ज़रूरत पर भी सवाल उठाया जब कार्यालय में कोई मंत्री नहीं है.

आदिवासी कार्यकर्ता और पुणे के आदिवासी अधिकार मंच के बुद्धिजीवी डॉ. संजय दाभाडे ने कहा, “नौकरशाह थिंक-टैंक बनाने के लिए एक साथ आने से नए इनपुट नहीं देंगे. जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले आदिवासियों को इस थिंक-टैंक का हिस्सा होना चाहिए था. ऐसा लगता है कि यह फ़ैसला इस मानसिकता में निहित है कि आदिवासियों को उनकी जरूरतों के बारे में पूछने के बजाय उन्हें बताया जाना चाहिए कि उनके लिए क्या अच्छा है.”

ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (TAC) के गवर्नर-नामित सदस्य मिलिंद थट्टे ने भी थिंक-टैंक की आवश्यकता पर सवाल उठाया.

उन्होंने पूछा, “संविधान की पांचवीं अनुसूची में जनजातीय सलाहकार परिषद नामक एक थिंक-टैंक का प्रावधान है, जिसे हर छह महीने में मिलना है लेकिन पिछले ढाई साल से ऐसा नहीं हुआ है. इसका उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है?”

सरकारी सूत्रों के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी के कारण दो साल तक बैठक नहीं हो सकी. इसके बाद यह बैठक जून के लिए निर्धारित की गई थी, लेकिन राज्य में राजनीतिक उठापटक के बीच बैठक रद्द कर दी गई. कैबिनेट गठन के तुरंत बाद टीएसी की बैठक हो सकती है.

आदिवासी विकास से जुड़ी एक और खबर में, विभाग ने गुरुवार को एक नए मंत्री की नियुक्ति होने तक जिला स्तर पर विभिन्न योजनाओं के लिए धन के वितरण पर रोक लगा दी है. नई सरकार ने आदिवासी कल्याण से संबंधित 29 परियोजना स्तर समितियों में पिछली सरकार के 197 से ज़्यादा गैर-सरकारी सदस्यों की नियुक्ति भी रद्द कर दी है.

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