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तमिलनाडु: पहचान साबित करने के लिए सूअर और टोकरियां लेकर प्रदर्शन करने को मजबूर मलईकुरवर आदिवासी

सूअर और टोकरियों के साथ तमिलनाडु के तिरुवल्लूर ज़िले में मलई कुरवर समुदाय ने एक अनोखा विरोध प्रदर्शन किया. 25 आदिवासियों का एक समूह मंगलवार को तहसीलदार के कार्यालय के सामने अपने पालतू सूअर और टोकरियां लेकर पहुंचा.

उनका मक़सद था एसटी प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए अपनी आदिवासी पहचान साबित करना.

अदुपक्कम गांव के इन आदिवासियों के पास ज़मीन के पट्टे, दूसरे दस्तावेज़ और बुनियादी सुविधाएं तो हैं, लेकिन उनके पास सामुदायिक प्रमाण पत्र नहीं है. इसका नतीजा यह है कि कम से कम चार छात्र जिन्होंने इस साल बारहवीं की परीक्षा पास की है, वो उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पा रहे हैं.

इनमें से एक छात्र, 18 साल के आर कुमार ने द न्यू इंडयन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “मैंने चेन्नई के दो सरकारी आर्ट यूनिवर्सिटीस में एप्लाई किया है, लेकिन दोनों जगह उन्होंने मेरी पहचान साबित करने के लिए एक सामुदायिक प्रमाणपत्र मांगा है. मैं सरकारी स्कॉलरशिप और दूसरे फ़ायदे नहीं ले पा रहा, क्योंकि मेरे पास प्रमाण पत्र नहीं है.” कुमार ने इसी साल 12वीं कक्षा पास की है.

विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने वाले आदिवासी माधी ने कहा, “हमारा पारंपरिक काम सूअर पालना और टोकरियाँ बनाना है, और हम पीढ़ियों से ऐसा करते आ रहे हैं.” यह आदिवासी टोकरी बेचकर रोज़ाना लगभग 150 रुपए कमाते थे. लेकिन कोविड महामारी से उनकी आय बुरी तरह प्रभावित हुई.

माधी ने कहा कि स्कूल प्रमाण पत्रों में उनके एसटी होने का उल्लेख है, लेकिन अधिकारी उन्हें आधिकारिक सामुदायिक प्रमाण पत्र जारी करने में लगभग एक साल से देरी कर रहे हैं.

मंगलवार को किए विरोध प्रदर्शन का कुछ फ़ायदा देखने को मिला, जब अधिकारियों ने कॉलेज में पेश करने के लिए इन छात्रों को एक अस्थायी पत्र लिखकर दिया. हालांकि, यह आदिवासी नहीं जानते कि कि कॉलेज इस पत्र को स्वीकार करेगा या नहीं.

तहसीलदार महेश का कहना है कि उन्होंने पोन्नेरी में राजस्व मंडल अधिकारी को याचिका भेजी है, और उनकी हरी झंडी के बिना सामुदायिक प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जा सकते. लेकिन यह आदिवासी कहते हैं कि तहसीलदार कई महनों से यही कहकर बात को टाल रहा है.

तहसीलदार ने इन आदिवासियों को आरडीओ के दफ़्तर के बाहर विरोध करने को कहा है. ऐसा करने से उनकी ज़िम्मेदारी ख़त्म जो हो जाएगी.

दरअसल, कई बार मांग दोहराने के बावजूद प्रमाण पत्र जारी करने में देरी के पीछे राजस्व विभाग का रवैया है. हमेशा की तरह आदिवासी आबादी की मांगों को टाला ही जा रहा है.

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