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तमिलनाडु: मलयाली आदिवासी समुदाय के कुछ लोगों की एसटी की सूची में शामिल होने की लड़ाई

तमिलनाडु के लगभग 32,500 मलयाली आदिवासी समुदाय के लोग अपनी पहचान की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. सत्यमंगलम तालुक में कदंबूर हिल्स और अंतियूर तालुक के बारगुर हिल्स में रहने वाले इन लोगों को अन्य जातियों की सूची में शामिल किया गया है.

जबकि धर्मपुरी, पुदुकोटई, तिरुचि, सेलम में शेवरोयन हिल्स और नमक्कल के कोल्ली हिल्स में रहने वाले मलयाली आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल है. ऐसे में इन 32 हज़ार से ज़्यादा लोगों को शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों और सरकार की कल्याणकारी नीतियों का लाभ नहीं मिल पाता.

जब 1979 में कोयंबत्तूर का विभाजन किया गया, तो सत्यमंगलम का सीमांकन ईरोड ज़िले के तहत किया गयाय. अंतियूर तालुक का गठन भी 2012 में ईरोड ज़िले के तहत ही हुआ. लेकिन इन दो पहाड़ियों के आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति के तौर पर अधिसूचित नहीं किया गया.

नीलगिरी में ट्राइबल रिसर्च सेंटर की सिफ़ारिशों के आधार पर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से ईरोड ज़िले में मौजूद इस जनजाति समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी. लेकिन संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति), आदेश (संशोधन) विधेयक, 2016 जो लोक सभा में जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा पेश किया गया, वह मलयाली समुदाय को मलयाली गौंडर समुदाय कहकर तमिलनाडु में एसटी के रूप में संशोधित करता है. जब ये विधेयक लैप्स हो गया तो केंद्र ने फिर से राज्य को एक सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा है.

एसटी सर्टिफ़िकेट के अभाव में इन आदिवासियों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, मलयाली समुदाय के छात्र मैदानी इलाक़ों में कॉलेज के लिए पहुंचते हैं तो उन्हें आदिवासी छात्रों के लिए बने छात्रावासों में जगह नहीं मिलती. इसके अलावा सरकारी नौकरियों में आरक्षण नहीं मिलता, और कई युवा दैनिक मज़दूरी करने को मजबूर हो जाते हैं.

किसी समुदाय को एसटी सूची में सिर्फ़ संसद द्वारा ही नोटिफ़ाई किया जा सकता है, और जनजातियों का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि यह काम कितनी तेज़ी से होता है. इस केस में 40 साल तो बीत ही चुके हैं.

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