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महाराष्ट्र: तीन सालों में कुपोषण ने ली 6,582 आदिवासी बच्चों की जान

पिछले तीन सालों में कुपोषण की वजह से महाराष्ट्र में 6,582 आदिवासी बच्चों की मौत हुई है. एकीकृत बाल विकास योजना (Integrated Child Development Scheme – आईसीडीएस) द्वारा किए गए एक डोर-टू-डोर सर्वे से यह पता चला है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले तीन सालों में 1,33,863 आदिवासी परिवारों में पूरे महाराष्ट्र में 15,253 बाल विवाह किए गए.

बॉम्बे हाई कोर्ट को सोमवार को सूचित किया गया कि नंदुरबार जिला कुपोषण की वजह से 1,270 मौतों के साथ 16 आदिवासी बहुल जिलों की सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद नासिक में 1,050 बच्चों की मौत हुई और पालघर जिला 810 मौतों के साथ तीसरे स्थान पर है.

राज्य सरकार द्वारा हाई कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार, आदिवासी परिवारों का दौरा करने वाली आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं ने 26,059 आदिवासी बच्चों को Severe Acute Malnutrition (SAM) और 1,10,674 बच्चों में Moderate Acute Malnutrition (MAM) पाया.

रिपोर्ट के अनुसार, नंदुरबार में सबसे ज़्यादा SAM (10,861) था, और ज़िला MAM (46,123) बच्चों के मामले में भी इस सूची में सबसे ऊपर था.

कोर्ट में महाराष्ट्र में आदिवासियों के बीच कुपोषण से हो रही मौतों पर दायर कई जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई चल रही है. इन याचिकाओं में विदर्भ के मेलघाट और धरनी इलाक़े के आदिवासी बच्चों में गंभीर कुपोषण के प्रसार के बारे में चिंता जताई गई थी.

राज्य के एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभकोणी ने हाई कोर्ट को सूचित किया कि आईसीडीएस का यह सर्वेक्षण अदालत के 14 मार्च के आदेश के अनुसार किया गया था, जिसके बाद राज्य सरकार ने महाराष्ट्र में आदिवासी आबादी के बीच बाल विवाह के मुद्दे को देखने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन भी किया.

आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं ने उन आदिवासी परिवारों का दौरा किया, जिन्होंने या तो बच्चों की मौत की सूचना दी है या जिनमें एसएएम या एमएएम बच्चे हैं. अपने दौरे में इन कार्यकर्ताओं ने यह बी पाया कि 15,253 लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी.

कुंभकोणी ने कोर्ट को बताया कि अगर शादी तब होती है जब लड़की खुद नाबालिग हो, तो वह शादी और बच्चे के जन्म के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं होती.

साथ ही, वे गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल भी नहीं करते हैं और कई मौकों पर देखा गया है कि नवजात शिशु काफ़ी कमजोर होता है. ऐसे मामलों में बल का प्रयोग नहीं किया जा सकता, लेकिन हम मुद्दे पर बड़े आदिवासी सदस्यों को सलाह दी जा सकती है, और उनसे ऐसा न करने की अपील की जा सकती है.

कुंभकोणी ने कोर्ट से यह भी कहा कि आदिवासी लोगों के कल्याण के लिए याचिकाकर्ताओं (एनजीओ) की मदद और इलाक़े में काम करने की जरूरत है.

“हमने राज्य भर में मौजूद अलग-अलग समितियों की मदद से 1,541 से ज़्यादा बाल विवाह को होने से रोका है. रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े सोलह जिलों के हैं, जिनमें आदिवासी आबादी ज़्यादा है,” कुंभकोणी ने कोर्ट को बताया.

हाई कोर्ट ने रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “राज्य में बाल विवाह की संख्या हैरान कर देने वाली है. आदिवासियों को अपने ऐसे रीति-रिवाजों और परंपराओं को छोड़ देना चाहिए, जहां सवाल किसी इंसान के स्वास्थ्य का हो.”

कोर्ट ने अब मामलों को आगे की सुनवाई के लिए 20 जून की डेट दी है. उस दिन कुछ कार्यकर्ताओं, जो व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में मौजूद होंगे, को निर्देश दिया गया है कि वो आईसीडीएस की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया पेश करें.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले तीन सालों में 1,33,863 आदिवासी परिवारों में पूरे महाराष्ट्र में 15,253 बाल विवाह किए गए.

बॉम्बे हाई कोर्ट को सोमवार को सूचित किया गया कि नंदुरबार जिला कुपोषण की वजह से 1,270 मौतों के साथ 16 आदिवासी बहुल जिलों की सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद नासिक में 1,050 बच्चों की मौत हुई और पालघर जिला 810 मौतों के साथ तीसरे स्थान पर है.

राज्य सरकार द्वारा हाई कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार, आदिवासी परिवारों का दौरा करने वाली आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं ने 26,059 आदिवासी बच्चों को Severe Acute Malnutrition (SAM) और 1,10,674 बच्चों में Moderate Acute Malnutrition (MAM) पाया

रिपोर्ट के अनुसार, नंदुरबार में सबसे ज़्यादा SAM (10,861) था, और ज़िला MAM (46,123) बच्चों के मामले में भी इस सूची में सबसे ऊपर था.

कोर्ट में महाराष्ट्र में आदिवासियों के बीच कुपोषण से हो रही मौतों पर दायर कई जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई चल रही है. इन याचिकाओं में विदर्भ के मेलघाट और धरनी इलाक़े के आदिवासी बच्चों में गंभीर कुपोषण के प्रसार के बारे में चिंता जताई गई थी.

राज्य के एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभकोणी ने हाई कोर्ट को सूचित किया कि आईसीडीएस का यह सर्वेक्षण अदालत के 14 मार्च के आदेश के अनुसार किया गया था, जिसके बाद राज्य सरकार ने महाराष्ट्र में आदिवासी आबादी के बीच बाल विवाह के मुद्दे को देखने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन भी किया.

आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं ने उन आदिवासी परिवारों का दौरा किया, जिन्होंने या तो बच्चों की मौत की सूचना दी है या जिनमें एसएएम या एमएएम बच्चे हैं. अपने दौरे में इन कार्यकर्ताओं ने यह बी पाया कि 15,253 लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी.

कुंभकोणी ने कोर्ट को बताया कि अगर शादी तब होती है जब लड़की खुद नाबालिग हो, तो वह शादी और बच्चे के जन्म के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं होती.

साथ ही, वे गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल भी नहीं करते हैं और कई मौकों पर देखा गया है कि नवजात शिशु काफ़ी कमजोर होता है. ऐसे मामलों में बल का प्रयोग नहीं किया जा सकता, लेकिन हम मुद्दे पर बड़े आदिवासी सदस्यों को सलाह दी जा सकती है, और उनसे ऐसा न करने की अपील की जा सकती है.

कुंभकोणी ने कोर्ट से यह भी कहा कि आदिवासी लोगों के कल्याण के लिए याचिकाकर्ताओं (एनजीओ) की मदद और इलाक़े में काम करने की जरूरत है.

“हमने राज्य भर में मौजूद अलग-अलग समितियों की मदद से 1,541 से ज़्यादा बाल विवाह को होने से रोका है. रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े सोलह जिलों के हैं, जिनमें आदिवासी आबादी ज़्यादा है,” कुंभकोणी ने कोर्ट को बताया.

हाई कोर्ट ने रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “राज्य में बाल विवाह की संख्या हैरान कर देने वाली है. आदिवासियों को अपने ऐसे रीति-रिवाजों और परंपराओं को छोड़ देना चाहिए, जहां सवाल किसी इंसान के स्वास्थ्य का हो.”

कोर्ट ने अब मामलों को आगे की सुनवाई के लिए 20 जून की डेट दी है. उस दिन कुछ कार्यकर्ताओं, जो व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में मौजूद होंगे, को निर्देश दिया गया है कि वो आईसीडीएस की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया पेश करें.

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