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केरल में आदिवासियों का अलग घोषणापत्र, एफ़आरए से लेकर स्वास्थ जैसे मुद्दे शामिल

केरल में विधानसभा चुनावों की सरगर्मी के बीच जहां एक तरफ़ राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र को अंतिम रूप देने में जुटे हैं, वहीं आदिवासी कार्यकर्ताओं ने एक आदिवासी घोषणापत्र रिलीज़ किया है.

इस ख़ास मैनिफ़ेस्टो में राज्य के विभिन्न आदिवासी समुदायों ने अपने मुद्दों को पेश किया है. एकता परिषद के पी वी राजगोपाल की अध्यक्षता वाले एक पैनल ने इस घोषणापत्र में इन मुद्दों का हल भी सुझाया है.

2011 की जनगणना के अनुसार, केरल में आदिवासियों की कुल आबादी राज्य की आबादी का लगभग 1.45 प्रतिशत हैं. इनमें सबसे ज़्यादा 31.24 प्रतिशत वायनाड ज़िले में हैं, जबकि 1.36 प्रतिशत आदिवासी आबादी आलप्पुझा में सबसे कम है.

केरल में लगभग 1.45 प्रतिशत आदिवासी आबादी है

एक लाख से ज़्यादा आदिवासी परिवार राज्य भर की 4,645 बस्तियों में रहते हैं. आदिवासी आबादी के इस तरह से पूरे राज्य में बिखरे होने से उनके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर एक जैसा ध्यान नहीं दिया जाता है.

जानकार कहते हैं कि आमतौर पर आदिवासी-दलित मुद्दों को एक आम राजनीतिक एजेंडे और मुख्यधारा के समाज के मुद्दों में से एक के रूप में संबोधित ही नहीं किया जाता. हालांकि केरल में, कुछ हद तक, स्थानीय स्व-सरकारी संस्थानों ने अनुसूचित समुदायों के लिए बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करने में सफलता हासिल की है.

लेकिन, सरकार द्वारा राजकीय स्तर इन मुद्दों को संबोधित करने की ज़रूरत है. ज़्यादातर आदिवासी समुदायों के सामने स्वास्थ्य और नशीले पदार्थों के सेवन जैसे कुछ बड़े मुद्दे हैं.

इस आदिवासी मैनिफ़ेस्टो में पश्चिमी घाट क्षेत्र के इकोलॉजिकल संतुलन को बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप की भी मांग है. केरल के कई आदिवासी समुदाय इन्हीं पहाड़ियों के जंगलों में रहते हैं.

इस मैनिफ़ेस्टों में दिए गए सुझावों में 2007 के आदिवासी अधिकारों पर यूनिवर्सल घोषणा (Universal Declaration) के आधार पर राज्य की अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए एक नया नज़रिया अपनाने की भी बात है.

विस्थापन एक बड़ा मुद्दा है, इसलिए एफ़आरए को लागू किया जाए

इसके अलावा मांग है कि राज्य भर में भूमि से जुड़े मुद्दों पर जल्द ही काम हो. इसके लिए वन अधिकार अधिनियम 2006 (FRA – Forest Rights Act, 2006) को पूरी तरह से लागू किए जाने पर ज़ोर है. मैनिफ़ेस्ट में कहा गया है कि यह राज्य भर में आदिवासियों के भूमि से जुड़े मुद्दों को संबोधित करेगा.

इसके लिए मैनिफ़ेस्टो कहता है कि एक आदिवासी भूमि नीति (Tribal Land policy) बनाई जानी चाहिए, जो अलग-अलग उद्देश्यों के लिए भूमि के इस्तेमाल को रेखांकित करे. इस पॉलिसी के तहत आदिवासियों को भूस्वामी पट्टे भी दिए जाएं.

अट्टपाड़ी में ट्राइबल हैमलेट परियोजना का सोशल ऑडिट होना चाहिए. इसके अलावा अनुसूचित जनजाति आयोग के गठन और एसटी विकास विभाग के पुनर्गठन की भी मांग है.

मैनिफ़ेस्टो में आदिवासियों से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलू उजागर किए गए हैं. पीएससी (PSC) में आदिवासियों का बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए नियमों में संशोधन एक दूसरी महत्वपूर्ण बात है, जो मैनिफ़ेस्टो में है.

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