मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के करीब दो महीने बाद बुधवार (3 अप्रैल) को तड़के 2 बजे लोकसभा में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा के वैधानिक संकल्प पर चर्चा शुरू हुई.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस मुद्दे को तब अनुमति दी, जब सदन में 12 घंटे की बहस के बाद वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पारित कर दिया गया.
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा के वैधानिक संकल्प पर चर्चा लगभग 40 मिनट तक ही चली, जिसमें सांसदों ने जल्दबाजी में भाषण दिए.
विपक्षी सदस्यों ने रात 2 बजे चर्चा शुरू किए जाने पर विरोध जताया लेकिन अध्यक्ष बिरला ने इस विषय पर चर्चा जारी रखी. चर्चा करीब 30 मिनट तक चली, जिसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने करीब 10 मिनट तक अपना जवाब दिया.
दरअसल, अनुच्छेद 356 के मुताबिक राष्ट्रपति शासन लागू होने के दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसे मंज़ूरी मिलनी चाहिए. संसद का चालू बजट सत्र 4 अप्रैल को समाप्त होने वाला है.
इसलिए इतनी जल्दबाजी में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के संबंध में वैधानिक प्रस्ताव पेश किया. जिसे बाद में पारित कर दिया गया.
मणिपुर जैसे मुद्दे पर चर्चा के लिए बेहद सीमित समय दिया
वहीं कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि भाजपा की मोदी सरकार मणिपुर के हालातों की उपेक्षा कर रही है. बेहद अहम मणिपुर के हालात पर चर्चा के लिए बेहद सीमित समय दिया गया.
उन्होंने कहा कि हालात पर चर्चा ठीक से की भी नहीं गई और राष्ट्रपति शासन का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. साथ ही हालात को लेकर सरकार के क्या कदम रहे इस पर तो कोई चर्चा ही नही की गई.
जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री मोदी के थाईलैंड दौरे का हवाला देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, “बार-बार हवाई सफर करने वाले फिर रवाना हो गए हैं. इस बार वह बैंकॉक में हैं. मणिपुर की उपेक्षा क्यों की जा रही है. आज तड़के दो बजे लोकसभा में राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा क्यों की गई , जिसमें चर्चा के लिए सिर्फ एक घंटा समय था, लेकिन गृह मंत्री के झूठ और चीजों को तोड़ने-मरोड़ने के लिए यह पर्याप्त समय था ? यह जले पर नमक छिड़कने जैसा है.”
शशि थरूर ने की बहस की शुरुआत
अमित शाह द्वारा मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के संबंध में वैधानिक प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कांग्रेस के शशि थरूर को चर्चा शुरू करने के लिए बुलाया. हैरान थरूर ने स्पीकर से पूछा कि क्या वह वास्तव में इस समय चर्चा चाहते हैं. उन्होंने कहा कि चलिए कल सुबह चर्चा करते हैं.
लेकिन जब स्पीकर नहीं माने तो कांग्रेस सांसद थरूर ने इस बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि देर होने के कारण उन्हें यह कहना पड़ रहा है कि ‘कभी न से देर भली है.’
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी प्रस्ताव का समर्थन करती है लेकिन वह राज्य में शांति और स्थिरता की बहाली चाहती है.
उन्होंने कहा, “मुझे कहना चाहिए कि मैं इस समय यह कहने के लिए बहुत उत्सुक हूं कि कभी न होने से देर बेहतर है. हम सभी ने मणिपुर की भयावहता देखी है. 2023 में अशांति शुरू होने के बाद से यह धीरे-धीरे बढ़ी है, जो राष्ट्रपति शासन की घोषणा से पहले 21 महीने तक जारी है. इस दौरान हमने कम से कम 200 लोगों को मरते, 6.5 लाख गोला-बारूद लूटते, 70,000 से अधिक लोगों को विस्थापित होते और हज़ारों लोगों को राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर होते देखा है. और यह ऐसे समय में हो रहा है जब स्पष्ट रूप से कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार लोगों ने अपना काम नहीं किया है.”
थरूर ने आगे कहा, “आर्थिक विकास प्रभावित हुआ है. सशस्त्र समूह बेलगाम हो गए हैं. कानून का कोई राज नहीं है. हम राष्ट्रपति शासन को राज्य को ठीक करने के अवसर के रूप में देखना चाहेंगे. राष्ट्रपति शासन ज़रूरी है लेकिन पर्याप्त नहीं है. किसी को भी वह अनुभव नहीं करना चाहिए जो मणिपुर के लोगों ने झेला है.”
थरूर ने कहा कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने का यह 11वां मामला है. उन्होंने कहा कि यह स्थिति राष्ट्र की अंतरात्मा पर एक धब्बा है.
उन्होंने कहा कि इस मामले में ‘करीब दो साल तक कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की गई’ और राष्ट्रपति शासन सिर्फ मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफ़े के बाद लगाया गया.
राज्य में स्थिति शांतिपूर्ण है – अमित शाह
वहीं संक्षिप्त बहस का जवाब देते हुए केंद्रीय अमित शाह ने कहा कि सरकार ने अशांत पूर्वोत्तर राज्य में सामान्य स्थिति वापस लाने के लिए हर संभव कदम उठाए हैं.
उन्होंने कहा कि पिछले चार महीनों में मणिपुर में कोई हिंसा नहीं हुई है. शांतिपूर्ण समाधान के लिए मैतेई और कुकी दोनों समुदायों के साथ बातचीत चल रही है.
शाह ने आगे कहा, “हमने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के दो महीने के भीतर यह घोषणा की है. कृपया एकजुट हों, इसका समर्थन करें और मणिपुर में शांति बहाल करें. सरकार शांति बहाल करने और घावों को भरने के लिए काम कर रही है.”
गृह मंत्री ने कहा कि मणिपुर में जातीय हिंसा राज्य के हाई कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई थी.
उन्होंने कहा, “जिस दिन आदेश आया, हमने हवाई मार्ग से केंद्रीय बलों को भेजा. हमारी ओर से (कार्रवाई करने में) कोई देरी नहीं हुई.”
उन्होंने कहा कि मई 2023 में शुरू हुई हिंसा में अब तक 260 लोगों की मौत हो चुकी है और उनमें से 80 प्रतिशत लोगों की जान पहले महीने में ही चली गई.
शाह ने कहा कि वह पिछली सरकारों के कार्यकाल के दौरान हुई हिंसा की तुलना नहीं करना चाहते, बल्कि सदन को 1990 के दशक में पांच वर्षों में नागा और कुकी समुदायों के बीच हुई झड़पों के बारे में बताना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, “एक दशक तक छिटपुट हिंसा जारी रही, जिसमें 750 लोगों की जान चली गई. 1997-98 में कुकी-पाइते झड़पें हुईं, जिसमें 352 लोग मारे गए. 1990 के दशक में मैतेई-पंगल झड़पों में 100 से अधिक लोग मारे गए. न तो तत्कालीन प्रधानमंत्री और न ही तत्कालीन गृह मंत्री ने मणिपुर का दौरा किया.”
गृह मंत्री ने कहा कि ऐसी धारणा बनाई गई है कि हिंसा केवल भाजपा शासन के दौरान ही भड़की, जो सही नहीं है.
शाह ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद सभी समुदायों के बीच बैठकें हुई हैं और इस मुद्दे का ‘राजनीतिकरण’ नहीं किया जाना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा, “पिछले चार महीनों से मणिपुर में हिंसा नहीं हुई है. मैं यह नहीं कहता कि स्थिति संतोषजनक है, लेकिन यह नियंत्रण में है. मैं राष्ट्रपति शासन का अनुमोदन लेने आया हूं. कांग्रेस के पास इतने सांसद नहीं हैं कि वे अविश्वास प्रस्ताव ला सकें.”
अमित शाह ने कहा कि पहले राष्ट्रपति शासन इसलिए नहीं लगाया गया क्योंकि हमारे मुख्यमंत्री अविश्वास प्रस्ताव का सामना नहीं कर रहे थे. जब हमारे मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया और कोई अन्य पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी, तो राष्ट्रपति शासन लगाया गया. सरकार शांति चाहती है और घावों को भरना चाहती है.
ईमानदार होने का समय – कनिमोझी
चर्चा के दौरान द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने रात 2 बजे चर्चा कराने पर आपत्ति जताई.
डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा कि मणिपुर में शांति लाने के लिए कुछ नहीं किया गया है और मणिपुर में एक निर्वाचित सरकार की वापसी होनी चाहिए, जो शांति और सद्भाव सुनिश्चित करे. साथ ही वहां एक ऐसी सरकार हो, जो लोगों को एक साथ लाए न कि उनके बीच विभाजनकारी राजनीति करे.
कनिमोझी ने आगे कहा कि यह समय आपके लिए ईमानदार होने और इस देश के लोगों को जवाब देने का है.
वहीं इस मामले पर चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी के सांसद लालजी वर्मा ने कहा कि विपक्ष की लगातार मांग के बावजूद भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया.
उन्होंने कहा, “जब राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की जा रही थी, तब भाजपा सरकार ने अपनी जिद के चलते अल्पसंख्यकों को डराया और राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया. जिस तरह अल्पसंख्यकों को डराने के लिए वक्फ बिल लाया गया, उसी तरह मणिपुर में भी अल्पसंख्यकों को डराया गया और हिंसा रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया. सभी विपक्षी दलों ने एकजुट होकर राष्ट्रपति शासन की मांग की थी. हम इस प्रस्ताव के साथ हैं लेकिन सरकार को सामान्य स्थिति सुनिश्चित करनी चाहिए और लोगों को अपनी सरकार चुनने का मौका देना चाहिए.”
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को अनुमोदन देने के लिए हुई बहस में राज्य की स्थिति पर गहन चिंता सामने आई. इस बहस में सरकार दावे से यह नहीं कह पाई है कि मणिपुर में जल्दी ही स्थिति सामान्य हो पाएगी.
क्योंकि मणिपुर में मैतई और कुकी के बीच विश्वास बहाली का काम अभी तक ढंग से शुरू तक नहीं हो पाया है.
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