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मणिपुर: छात्रवृत्ति भुगतान में देरी से नाराज़ आदिवासी छात्रों का गुस्सा फूटा

मणिपुर के आदिवासी छात्रों ने शुक्रवार को अपनी लंबित छात्रवृत्ति की मांग करते हुए इंफाल में ज़ोरदार प्रदर्शन किया.

यह प्रदर्शन ऑल कॉलेज ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (ACTSU) के नेतृत्व में हुआ जिसमें हजारों छात्रों ने हिस्सा लिया.

छात्रों ने 2023-24 शैक्षणिक सत्र की छात्रवृत्ति के भुगतान में हुई देरी के लिए प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया.

प्रशासनिक देरी और भ्रष्टाचार के आरोप   

छात्रों का आरोप है कि लगभग 32,000 अनुसूचित जनजाति के छात्रों को उनकी मासिक छात्रवृत्ति पिछले 3-4 महीनों से नहीं मिली है. जबकि यह भुगतान अक्टूबर तक हो जाना चाहिए था.

प्रदर्शनकारी आदिवासी छात्रों ने कहा कि गरीब और वंचित तबके से आने वाले छात्रों के लिए यह राशि जीवनयापन और शिक्षा के लिए बेहद ज़रूरी है.

छात्र नेता गाईखांगनिंग पनमई ने बताया कि छात्रवृत्ति भुगतान में देरी ने न केवल उनकी पढ़ाई बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति पर भी बुरा असर डाला है.

उन्होंने प्रशासन पर पारदर्शिता की कमी और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे और उग्र आंदोलन करेंगे.

प्रदर्शन के दौरान पुलिस और प्रशासन का हस्तक्षेप 

आदिवासी छात्र सुबह से ही जीपी वुमेन कॉलेज के पास इकट्ठा हो गए थे, इसके बाद उन्होंने राजभवन की ओर मार्च निकाला.  

यह क्षेत्र उच्च सुरक्षा जोन में आता है इसलिए पुलिस ने प्रदर्शन को रोकने की कोशिश की. लेकिन छात्रों ने पुलिस की अपील को अनसुना करते हुए अपनी रैली जारी रखी.

इसके बाद पुलिस ने अतिरिक्त सीआरपीएफ बल बुलाए और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे.

इस दौरान एक छात्रा बेहोश हो गई लेकिन किसी को भी कोई गंभीर चोट नहीं आई है.

जब पुलिस प्रदर्शनकारियों को रोकने में असफल रही तो जनजातीय मामलों के अधिकारी के साथ पहाड़ी विभाग के उच्च अधिकारी मौके पर पहुंचे और छात्रों के नेताओं से बातचीत की.

अधिकारियों ने क्या कहा

जनजातीय मामलों और पहाड़ी विभाग के अतिरिक्त निदेशक ने छात्रों को आश्वासन दिया कि छात्रवृत्ति की राशि जारी करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और कुछ दिनों में ये राशि उन तक पहुंच जाएगी.

इस आश्वासन के बाद प्रदर्शनकारियों ने अपना आंदोलन समाप्त कर दिया.

आगे की रणनीति  

छात्रों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे नागरिक समाज संगठनों (CSOs) के साथ मिलकर और बड़े आंदोलन करेंगे.

यह घटना केवल इंफाल तक सीमित नहीं है बल्कि बहुत से मामलों में ऐसा ही होता है जब भ्रष्टाचार के कारण आदिवासियों को सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिलता.

कई बार तो उन्हें पता भी नहीं चलता की सरकार ने उनके सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए किसी योजना की घोषणा भी हुई है.

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