Mainbhibharat

महाराष्ट्र: गढ़चिरौली में माओवादियों ने पुलिस का मुखबिर बताकर एक आदिवासी छात्र की हत्या कर दी

9 मार्च को महाराष्ट्र के उग्रवाद प्रभावित गढ़चिरौली में प्रतिबंधित भाकपा-माओवादियों के सशस्त्र कैडरों द्वारा सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे एक आदिवासी छात्र की बेरहमी से हत्या किए जाने के बाद पढ़ाई के लिए गांव से बाहर रहने वाले नरगुंड क्षेत्र के छात्रों में डर का माहौल है.

प्राप्त जानकारी के मुताबिक गढ़चिरौली के नरगुंड थाना क्षेत्र के मरुधर टी निवासी युवक साईनाथ नरोटे (26) जिला मुख्यालय में रहकर सरकारी परीक्षा की तैयारी कर रहा था. वह हाल ही में होली के त्योहार के लिए अपने गांव लौटा था जब माओवादियों ने उसे बेरहमी से मार डाला.

यह घटना तब हुई जब साईनाथ अपने गांव के पास के जंगल के रास्ते से गुजर रहा था. माओवादियों ने उसके बारे में जाना और उसका अपहरण कर लिया. बताया जा रहा है कि सादे कपड़ों में प्रतिबंधित भाकपा के लगभग 6 से 7 कैडर उसे जंगल में ले गए और उसकी गोली मारकर हत्या कर दी.

पता चला है कि माओवादियों ने पुलिस का मुखबिर होने का आरोप लगाकर युवक की हत्या कर दी और उसके बाद देर रात शव को गांव के पास फेंक कर जंगल में भाग गए. सुबह ग्रामीणों ने घटना की सूचना स्थानीय पुलिस को दी, जिसने बाद में शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया.

पिछले कुछ वर्षों में माओवादियों ने छत्तीसगढ़ के माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में जानबूझकर दर्जनों नागरिकों और छात्रों को पुलिस का मुखबिर बताकर उन्हें निशाना बनाया और उनकी हत्या कर दी.

उपलब्ध आँकड़ों के मुताबिक केवल पिछले एक साल में ही तीन दर्जन से अधिक नागरिकों को प्रतिबंधित भाकपा-माओवादियों के कैडरों द्वारा बेरहमी से मार डाला गया है. इनमें किसानों और छात्रों की निर्मम हत्याएं शामिल हैं.

हत्या का सिलसिला इस चालू वर्ष में भी जारी है क्योंकि पिछले ढाई महीने में अब तक 4 भाजपा नेताओं सहित दस से अधिक नागरिकों को जानबूझकर निशाना बनाकर मार दिया गया है.

सुरक्षा विशेषज्ञों की राय है कि माओवादियों द्वारा नागरिकों की लक्षित हत्याएं उनकी हताशा और लाचारी के अलावा और कुछ नहीं बताती है. क्योंकि वे अब एक बड़ी ताकत नहीं हैं जो आगे बढ़ने वाली ताकतों के सामने जमीन पकड़ सकती हैं.

इन क्षेत्रों में अनुभव रखने वाले सुरक्षा अधिकारियों की राय है कि माओवादी जानबूझकर उन युवाओं और नेताओं के पीछे जा रहे हैं जिनका शिक्षा, विकास और लोकतांत्रिक मूल्यों की ओर झुकाव है. क्योंकि नक्सलियों में डर की भावना बढ़ रही है कि अधिक शिक्षित युवा और विकास कार्य उनके छिपे हुए जनविरोधी चेहरे को बेनकाब कर सकते हैं.

इस तरह वे एक ज़ोरदार संदेश भेजने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि जो कोई भी सरकार के ढांचे का हिस्सा बनने की कोशिश करेगा उसे परिणाम भुगतने होंगे.

Exit mobile version