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बस्तर बंद को माओवादियों ने दिया समर्थन, हसदेव और पुलिस मुठभेड़ों के खिलाफ़ मोर्चा

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में सर्व आदिवासी समाज (Sarv Adivasi Samaj) ने कल यानी 23 जनवरी को बस्तर बंद का ऐलान का किया है. कई दिनों पहले यानी नए साल पर पुलिस फायरिंग में एक छोटी बच्ची की मौत हो गई थी.

इसके अलावा हसदेव अरण्य की कटाई के मुद्दे को भी बंद बुलाने के कारणों में बताया गया है.

हसदेव अरण्य और पुलिस फ़ारिंग

सर्व आदिवासी समाज ने बीजापुर में पुलिस द्वारा कथित तौर अंधाधुंध गोलीबारी की जिसमें एक छह महीने के बच्चे की मौत हो गई थी. इसके अलावा हसदेव के जंगलों में बड़ी तादाद में पेड़ों की कटाई के मामले के विरोध में बंद किया जा रहा है.

इसके अलावा सर्व आदिवासी समाज ने सुरगुजा क्षेत्र (Surguja Region) के साथ ही बाकी लोगों को इस बंद का सर्मथन करके इसे सफल बनाने की अपील की है.

बंद को माओवादी समर्थन

सर्व आदिवासी समाज ने एक प्रेस रिलीज में कहा कि वे हाल ही में बीजापुर में माओवादियों और बलों के बीच कथित तौर पर हुए गोलीबारी में एक छह महीने की मंगली की हत्या की कड़ी निंदा करते हैं.

सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर (Prakash Thakur) ने कहा कि समिति की सरगुजा डिवीजन के हसदेव जंगल में पेड़ों की कटाई के खिलाफ एक प्रस्ताव भी पारित किया है.

इसके अलावा माओवादियों ने प्रेस रिलीज जारी करके यह बताया कि छह महीने की सोदी मंगली (Sodi Mangla ) की 1 जनवरी को गोलीबारी में मौत हो जाने के साथ ही उसकी मां भी घायल भी हो गई.

इस प्रेस रिलीज में यह भी कहा गया कि बीजापुर (Bijapur) के मुडवेंडी गांव (Mudvendi village) में पुलिस के द्वारा की गई अंधाधुंध गोलीबारी के कारण एक बच्ची की मृत्यु हो गई.

प्रेस रिलीज में दंडकारण्य के नॉर्थ सब-जोनल ब्यूरो की माओवादी प्रवक्ता मंगली ने एक प्रेस नोट जारी कर राज्य और केंद्र दोनों सरकारों पर कई आरोप लगाए हैं.

उन्होंने इस प्रेस नोट में कहा कि हसदेव में कॉरपोरेट को लाभ पहुंचाने के लिए 36,000 से अधिक पेड़ काटे जा रहे हैं.

इसके साथ ही माओवादियों ने कहा कि हसदेव संघर्ष समिति के सदस्यों को पहले गिरफ्तार किया गया था और अब पुलिस संरक्षण में पेड़ काटे जा रहा है. देशभर में कड़े विरोध के बावजूद सरकार इस परियोजना को छोड़ने पर विचार नहीं कर रही है.

छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल अपनी पर्यावरणीय विविधता और हाथियों के लिए मशहूर है. इस जंगल के बारे में ज़्यादातर पर्यावरणविद् हाथियों और पर्यावरण की चिंता प्रकट करते रहे हैं.

लेकिन इस जगल को काटे जाने से आदिवासियों को भी भारी नुकसान होगा. हसदेव अरण्य़ को कोयला खादानों के लिए काटा जा रहा है.

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