Site icon Mainbhibharat

केरल: आदिवासी छात्रों के पूरे होते उच्च शिक्षा के सपने, कॉलेज दाखिले के लिए ख़ास परियोजना

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में वायनाड के आदिवासी छात्रों की मदद करने के लिए शुरू की गई एक योजना ‘गोत्रप्रभा’ से बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. इस साल मार्च में ज़िला प्रशासन द्वारा शुरू की गई इस परियोजना की बदौलत एसबी कॉलेज, चंगनाशेरी में 13 आदिवासी छात्रों का दाखिला हुआ है.

यह परियोजना वायनाड के ही निवासी डॉ के पी नितीश कुमार का आइडिया है. डॉ कुमार राज्य के किसी भी आदिवासी समुदायों में से सोशल वर्क में डॉक्टरेट पाने वाले पहले व्यक्ति हैं. एक और ख़ास बात यह है कि परियोजना पूरी तरह से आदिवासी लोगों द्वारा ही चलाई जाती है.

नीतीश कुमार, जो परियोजना के ज़िला समन्वयक भी हैं, ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “वायनाड में आदिवासी छात्रों की उच्च शिक्षा बुरे हाल में है. इस साल बारहवीं की परीक्षा लिखने वाले लगभग 40% छात्र फेल हो गए. हायर सेकेंडरी परीक्षाओं को पास करने वाले बाकि छात्रों में से अधिकांश ने पढ़ाई जारी नहीं रखी है. कई ऐसे छात्र हैं जो वायनाड में ही शिक्षा जारी रखना चाहते हैं, लेकिन जिले में इसके लिए अवसर नहीं हैं. छात्र बेहतर कॉलेजों और सबजेक्ट्स की तलाश में वायनाड से बाहर जाने से झिझकते हैं, हालांकि उन्हें आरक्षण के तहत सीटें मिल सकती हैं. उनके इस रवैये से कई अवसर वो खो देते हैं. ऐसे में हमारी भूमिका उन्हें मार्गदर्शन देना और उनकी मदद करना है.”

इस बार बारहवीं की परीक्षा देने वाले वायनाड के 724 आदिवासी छात्रों में से 486 पास हुए. परियोजना के तहत इन सभी को इस साल ग्रैजुएट कोर्स में दाखिला दिलाने का प्लान है.

सोमवार को दाखिला पाने वाले 13 छात्रों के अलावा सात और छात्रों को एसबी कॉलेज में दाखिला जल्द मिलने की उम्मीद है. इन कुल 20 छात्रों में से काट्टुनायकन जनजाति के सात, पनिया और कुरिच्या के चार-चार, अडिया और कुरुमा के दो-दो और मुदुवान आदिवासी समुदाय का एक छात्र शामिल है.

अलग-अलग वजहों से काट्टुनायकन और अडिया समुदाय शिक्षा के मामले में सबसे पिछड़े हैं. इस पृष्ठभीमि में दाखिला पाने वाले छात्रों के साथ निरंतर फॉलो-अप की ज़रूरत होगी. डॉ कुमार का मानना है कि यह आदिवासी छात्र मामूली वजहों से भी पढ़ाई छोड़ देते हैं.

अपने घर से दूर रहने को लेकर आदिवासी छात्र काफ़ी सेंसिटिव होते हैं, और छोटी से छोटी बात उन्हें पढ़ाई छोड़ने जैसे बड़े क़दम उठाने की ओर धकेल सकती है.

इस बात को ध्यान में रखते हुए परियोजना के तहत आदिवासी समुदाय से आने वाले 72 मेंटर-टीचर को छात्रों का मार्गदर्शन करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है.

एकीकृत जनजातीय विकास परियोजना (ITDP) वायनाड के जिला अधिकारी के सी चेरियन के अनुसार जिले में पोस्ट-मैट्रिक हॉस्टल नहीं है, जबकि वायनाड में राज्य की सबसे बड़ी जनजातीय आबादी है – 38 प्रतिशत.

दरअसल वायनाड में आदिवासी छात्रों के लिए मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल और प्री-मैट्रिक हॉस्टल है, जो अच्छा काम कर रहे हैं. लेकिन उसी तरह का ध्यान और अवसर उच्च शिक्षा क्षेत्र में उपलब्ध नहीं है, और जो किया जाना चाहिए.

Exit mobile version