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मुंबई और आदिवासियों का दम घोटने की तैयारी. क्या है आरे की अहमियत?

आरे मिल्क कॉलोनी में मेट्रो लाइन 3 के लिए कार डिपो बनाने के सरकार के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन जारी है. रविवार को हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के पूर्व पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने भी हिस्सा लिया.

दरअसल राज्य की नई एकनाथ शिंदे-भाजपा सरकार ने सत्ता संभालते ही 30 जून, 2022 को मेट्रो कार शेड को आरे मिल्क कॉलोनी में वापस लाने का फ़ैसला किया. इस फ़ैसले ने पर्यावरणविदों, आम नागरिकों और प्रकृति प्रेमियों को सरकार के सामने खड़ा कर दिया है.

दूसरी ओर, मुंबई का बुनियादी ढांचा बेहतर करने की तरफ़दारी करने वाले लोगों का कहना है कि आरे में कार डिपो बनाया जाना चाहिए ताकि लाइन 3 को जल्द से जल्द चालू किया जा सके.

रविवार को आरे मिल्क कॉलोनी के पिकनिक पॉइंट पर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए, और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया. इसमें शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, विधायक रवींद्र वायकर, विधायक सुनील प्रभु और पार्टी के दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ आदित्य ठाकरे शामिल हुए.

ठाकरे ने कहा, “एमवीए सरकार मुंबई समर्थक और महाराष्ट्र समर्थक थी. मुद्दा सिर्फ पेड़ों का नहीं है बल्कि आरे मिल्क कॉलोनी की समृद्ध जैव विविधता का भी है, जिसे संरक्षित करने की ज़रूरत है. मैं नई सरकार से बस इतना कहना चाहता हूं कि हमारे खिलाफ अपना गुस्सा मुंबई की जनता पर न निकालें. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नई सरकार ने जो पहला फडैसला लिया वह शहर के खिलाफ था. कांजुरमार्ग में मेट्रो लाइन 3, 6, 4, 14 के लिए एक कार डिपो होना न सिर्फ़ अच्छी बात होती, बल्कि इससे लगभग 10,000 करोड़ रुपये की बचत भी होती.”

उन्होंने यह भी कहा कि आरे में मेट्रो साइट पर जो ढांचे बनाए गए थे, उन्हें पशु चिकित्सालय में बदलने का प्रस्ताव था.

गौरतलब है कि पिछली महा विकास अघाड़ी सरकार ने आरे मिल्क कॉलोनी से कार शेड को शिफ्ट करने का फैसला किया था, लेकिन नई सरकार ने इस फैसले को उलट दिया. शिवसेना प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने डिपो को आरे में वापस लाने के फैसले के लिए वर्तमान सरकार की आलोचना की है.

मुंबई के लिए आरे की अहमियत

क़रीब 1300 (1,287) हेक्टेयर में फैली आरे कॉलोनी, संजय गांधी नैशनल पार्क में बसी है. आरे कॉलोनी को मुंबई का फेफड़ा भी कहा जाता है.

2019 में, तत्कालीन भाजपा-शिवसेना सरकार 33.5 किलोमीटर अंडरग्राउंड कोलाबा-बांद्रा-सीप्ज़ मेट्रो परियोजना के लिए एक शेड का निर्माण करना चाहती थी. उसके लिए उन्होंने आरे मिल्क कॉलोनी को चुना.

सरकार के इस फ़ैसले का ज़बरदस्त विरोध हुआ, नागरिकों और पर्यावरण एक्टिविस्ट्स ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन हाई कोर्ट ने परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने की मांग वाली इन याचिकाओं को खारिज कर दिया. कोर्ट के इस फ़ैसले के कुछ ही घंटों के अंदर, मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MMRCL) ने पेड़ों को काटना शुरू कर दिया.

आरे मिल्क कॉलोनी या आरे जंगल का महत्व सिर्फ़ शहर के ग्रीन कवर के रूप में ही नहीं है, बल्कि आरे वार्ली आदिवासी समुदाय का घर भी है. इन आदिवासियों के पूर्वज इस शहर के मूल निवासी थे. और अगर आरे खतरे में है, तो वार्ली आदिवासी समुदाय भी ख़तरे में है.

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