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मिज़ोरम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा विरोधी मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहती है

लगातार दो बार मिज़ोरम पर शासन करने के बाद जब कांग्रेस पार्टी 2018 के विधानसभा चुनावों में हार गई तो कहा गया कि सबसे पुरानी पार्टी ने अपना “पूर्वोत्तर में आखिरी गढ़” खो दिया है.

2018 में 40 में से सिर्फ पांच सीटों के साथ कांग्रेस अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी, मिज़ो नेशनल फ्रंट (MNF) के पीछे तीसरे स्थान पर आ गई थी, जिसने 26 सीटें हासिल की थीं और पहली बार ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) ने आठ सीटें जीती थीं.

पांच दशकों के बाद राज्य में एक नए नेता के नेतृत्व में कांग्रेस अब 7 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है.

ईसाई-बहुल राज्य में कांग्रेस का मुख्य मुद्दा भाजपा के हिंदुत्व के दबाव से बचाना है. उम्मीद है कि खुद को भगवा पार्टी के खिलाफ एक गढ़ के रूप में पेश करने से इसके पुनरुद्धार को बढ़ावा मिलेगा.

सीएम ज़ोरमथांगा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ एमएनएफ की तरह कांग्रेस भी मिज़ोरम चुनावों के लिए पड़ोसी राज्य भाजपा शासित मणिपुर में चल रहे संकट के नतीजों पर नज़र रख रही है.

जबकि एमएनएफ ने मिज़ो राष्ट्रवाद को भुनाने के अपने प्रयास तेज़ कर दिए हैं. वहीं कांग्रेस मणिपुर को भाजपा के कथित कुशासन और अपने वर्तमान और संभावित सहयोगियों के साथ क्षेत्र में कदम उठाने की कोशिश के उदाहरण के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है.

जबकि भाजपा मिज़ोरम चुनाव में एमएनएफ को भी टक्कर दे रही है लेकिन दोनों केंद्रीय स्तर पर एनडीए के सहयोगी हैं.

मिज़ोरम कांग्रेस अध्यक्ष और इसके सीएम उम्मीदवार, 77 वर्षीय लालसावता ने कहा, “यह मिज़ोरम में भाजपा के प्रति नापसंदगी और डर है जिस पर हम भरोसा कर रहे हैं. जब मणिपुर संकट हुआ तो इसने मिज़ो लोगों के लिए पार्टी द्वारा उत्पन्न ख़तरे को उजागर कर दिया. भाजपा पहले से कहीं अधिक बड़ी दिख रही है.”

मिज़ो कुकी-ज़ोमी समुदाय के साथ एक जातीय बंधन साझा करते हैं. जो मई की शुरुआत से मणिपुर में मैतेई समुदाय के साथ जातीय संघर्ष का सामना कर रहे हैं.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “यहां मणिपुर संकट दो स्तरों पर है. एक तो यह कि लोग अपने भाइयों की पीड़ा को महसूस करते हैं. दूसरा यह है कि मणिपुर से यह संदेश मिल रहा है कि कैसे भाजपा पूर्वोत्तर राज्य के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने में सक्षम है.”

मिज़ोरम में अभी तक बीजेपी की कोई खास मौजूदगी नहीं है. लेकिन लालसावता ने एमएनएफ के एनडीए का हिस्सा होने की ओर इशारा करते हुए कहा कि सत्तारूढ़ दल भाजपा की गतिविधियों में शामिल है.

उन्होंने कहा कि लोग आशंकित हैं कि भाजपा फिर से मिज़ोरम में पकड़ बना लेगी जैसा कि वे अब एमएनएफ के माध्यम से कर रहे हैं. क्षेत्रीय दल लचीले हैं इसलिए ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट के भी भाजपा के साथ गठबंधन करने की संभावना है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस महीने की शुरुआत में मिज़ोरम में अपने चुनावी अभियान के दौरान यही बात कही थी. उन्होंने एमएनएफ और जेडपीएम दोनों को राज्य में “आरएसएस के प्रवेश बिंदु” के रूप में संदर्भित किया था.

लेकिन राज्य में पार्टी के लिए जगह कम होती जा रही है, जहां एमएनएफ और जेडपीएम दोनों जोरदार अभियान चला रहे हैं.

दो मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (जेडएमपी और एमपीसी) और नागरिक समाज संगठनों सहित छह अन्य संगठनों के एक साथ आने से 2018 के चुनावों से पहले 2017 में जेडपीएम का गठन हुआ.

1973 से मिज़ोरम कांग्रेस के प्रमुख रहने के बाद 2021 में ललथनहवला ने मिज़ोरम कांग्रेस नेतृत्व से सेवानिवृत्ति ले ली. इस दौरान वह 1998 से 2018 के बीच पांच बार सीएम रहे.

इसके बाद कांग्रेस नेतृत्व ने लालसावता को राज्य इकाई का नया अध्यक्ष नियुक्त किया. वहीं ललथनहवला सरकार में एक कुशल वित्त मंत्री और एक साफ सुथरे पूर्व सिविल सेवक के रूप में उनकी छवि एक और कारक है जिससे पार्टी को उम्मीद है कि वह उसकी किस्मत पलटने में मदद कर सके हैं.

राज्य में मतदाताओं का कहना है कि यह “नज़दीकी चुनाव” हो सकता है. उनका कहना है कि भाजपा हाशिए पर है. लेकिन लगता है कि अन्य तीन पार्टियां बहुत करीब हैं. हर कोई आगे निकलने के लिए बहुत मेहनत कर रहा है लेकिन उनमें से कोई भी अभी दूसरों से ज्यादा आगे नहीं निकल पा रहा है.

ब्रू शरणार्थियों की मिज़ोरम विधानसभा चुनाव में कोई भागीदारी नहीं होगी

वहीं पहली बार ब्रू शरणार्थी मिज़ोरम में चुनाव में भाग नहीं लेंगे क्योंकि उन्हें केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित पुनर्वास व्यवस्था के तहत त्रिपुरा में स्थायी बंदोबस्त दिया गया था जो जनवरी 2020 में लागू हुआ.

इससे पहले भारत के चुनाव आयोग को पात्र विस्थापित मतदाताओं के मतदान की सुविधा के लिए त्रिपुरा-मिजोरम सीमा पर विशेष मतदान केंद्र स्थापित करने पड़ते थे.

मिज़ोरम में 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में ब्रू मतदाता अपने गृह राज्य आए और स्थानीय लोगों के विरोध के बाद अंतरराज्यीय सीमा पर कन्हमुन गांव में उनके लिए बनाए गए 15 विशेष मतदान केंद्रों पर मतदान किया. उस समय वे त्रिपुरा के राहत शिविरों में रह रहे थे.

अब त्रिपुरा में स्थायी रूप से बसने के बाद 6000 से अधिक ब्रू मतदाताओं के नाम मिज़ोरम के तीन जिलो ममित, कोलासिब और लुंगलेई की मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं.

त्रिपुरा में आज रह रहे अधिकतर ब्रू लोगों ने दो दशक तक मिजोरम से आंतरिक विस्थापन का दंश झेला. कई मिज़ो संगठनों द्वारा मतदाता सूची से ब्रू का नाम हटाने की मांग शुरू होने के बाद 1995 में इस जनजाति के लोगों का विस्थापन शुरू हुआ. मिज़ो संगठनों का मानना था कि ब्रू मिज़ोरम की मूल जनजाति नहीं है.

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