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मोदी सरकार ने मणिपुर ‘स्विचऑफ़’ कर दिया है

पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम के अनुसार मणिपुर में हालात बद से बदत्तर हो गए हैं. चिदंबरम ने दावा किया है कि उन्हें यह सूचना मिली है कि सेनापति ज़िले से 2000 मैतई समुदाय के लोगों को ज़बरदस्ती ज़िले से बाहर निकाला गया है.

मणिपुर के हालातों पर चिंता प्रकट करते हुए पी चिदंबरम ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि वह मणिपुर को पूरी तरह से भूल गई है. उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार को याद दिलाया है कि मणिपुर में हिंसा को शुरू हुए 145 दिन हो चुके हैं.

मणिपुर हिंसा के समाधान के बारे में बात करते हुए चिदंबरम ने एक बार फिर ज़ोर देते हुए कहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को पद से हटाए बिना वहां शांति कायम करना संभव नहीं होगा. उनका दावा है कि राज्य की बीजेपी सरकार और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह दोनों में ही राज्य के किसी भी समुदाय का भरोसा नहीं है. चिदंबरम ने एन बीरेन सिंह पर पक्षपाती होने के साथ साथ अक्षमता का आरोप भी लगाया है.

मणिपुर में 140 दिन बाद मोबाईल इंटरनेट खुला

पिछले शनिवार यानि 23 सिंतबर को मणिपुर में मोबाईल इंटरनेट सर्विस (mobile internet service) बहाल कर दी गईं. राज्य सरकार ने दावा किया है कि अब राज्य में हिंसा काबू में आ चुकी है इसलिए अब मोबाईल इंटरनेट सर्विस बहाल की जा रही हैं. इंटरनेट सर्विस फिर से शुरू करने की घोषणा मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने की थी.

मणिपुर में 3 मई से हिंसा की शुरुआत होने के बाद इंटरनेट सर्विस बंद कर दी गई थीं. इसके बाद 25 जुलाई को कुछ शर्तों के साथ ब्रॉडबैंड इंटरनेट को अनुमति दी गई थी. जम्मू कश्मीर के बाद बीजेपी शासित मणिपुर दूसरा राज्य बना जहां पर इतना लंबे समय तक इंटरनेट को इतने लंबे समय तक बंद रखा गया. 

जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद 552 दिन तक इंटरनेट बंद रखा गया था. 

मणिपुर में इंटरनेट प्रतिबंध की वजह से आम लोगों को काफी परेशानी से गुज़रना पड़ा था. लेकिन राज्य में इंटरनेट प्रतिबंध का सबसे बड़ा नुकसान हुआ कि राज्य में चल रही हिंसा की सही सही ख़बरें देश के अन्य लोगों तक नहीं पहुंच पाईं.

जब मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने का वीडियो वायरल हुआ, तब देश को अहसास हुआ कि मणिपुर की हिंसा में किस कदर अमानवीय वारदातों को अंजाम दिया गया है. 

अभी तक 175 लोगों की मौत

मणिपुर में 145 दिन से चल रही हिंसा में कम से कम 175 लोगों की मौत हो चुकी है. कुकी-मैतई समुदायों के बीच चल रही इस हिंसा का एक बेहद दुखद पहलु ये है कि कई हत्याएं अमानवीय तरह से की गईं. कई ऐसी वारदातों को भी अंजाम दिया गया जिनमें शवों की दुर्गति की गई.

मणिपुर पुलिस के अनुसार 15 सितंबर तक राज्य में 5132 दंगों के मामले दर्ज किये गए. इनमें 4786 घरों को जलाने की वारदातें भी शामिल हैं. मणिपुर में कुल 386 धार्मिक स्थलों नुकसान पहुंचाया गया. इनमें कम से कम 254 चर्चों और 132 मंदिरों को जला दिया गया या तोड़ दिया गया. 

पुलिस ने 15 सितंबर को जानकारी देते हुए बताया था कि मारे गए लोगों के अलावा कम से कम 32 लोग गायब हैं. इन लोगों के बारे में यह आशंका भी जताई गई है कि कहीं इन लोगों की हत्या तो नहीं चुकी है.

मणिपुर में मोबाईल इंटरनेट शुरु होने के बाद कुछ ऐसे वीडियो वायरल हुए हैं जिनमें कुछ मृतकों को दिखाया गया है और यह दावा किया गया है कि ये उन गायब 32 लोगों में शामिल लोगों के ही शव हैं. 

सरकार ने मणिपुर में इंटरनेट बैन का कारण अफ़वाहों को रोकना बताया था. लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है जिससे यह साबित हो सके कि यह दावा सही है. बल्कि ऐसा लगता है कि इंटरनेट बैन से सच बाहर नहीं आ सका और देश मणिपुर के बारे में अंधेरे में ही रहा. 

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