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पश्चिम बंगाल में क्यों आदिवासी संगठनों ने मोदी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया

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जनगणना में सारी और सरना (Sari and Sarna) को धार्मिक कोड के रूप में मान्यता देने की मांग को लेकर कई आदिवासी संगठनों ने नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ पश्चिम बंगाल के कम से कम आठ जिलों में सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया है.

आदिवासी आबादी में प्रचलित दो प्रमुख आस्थाओं सारी और सरना को मान्यता देने के लिए आदिवासी समुदाय की लंबे समय से मांग रही है.

पिछले दो दिनों में कई आदिवासी संगठनों ने इस मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया. जिसमें झारग्राम, पुरुलिया, बांकुरा, बीरभूम और उत्तर 24-परगना जिले शामिल हैं.

संग्रामी आदिवासी मंच के अध्यक्ष सुबल चंद्र सरदार ने कहा, “हमारा विरोध केंद्र सरकार के खिलाफ है जो हमें हमारे पारंपरिक धर्म के लिए अद्वितीय दर्जा दे सकती है. राज्य विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित करने और हमारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा व्यक्तिगत बातचीत के बावजूद केंद्र सरकार ने धार्मिक कोड को मान्यता नहीं दी.”

संग्रामी आदिवासी मंच एक अन्य आदिवासी मंच सुंदरबन आदिवासी जागरण समिति के साथ उत्तरी 24-परगना मिनाखान में विरोध प्रदर्शन कर रहा है.

सुबल चंद्र ने आगे कहा, “यह मांग बंगाल या किसी अन्य राज्य की नहीं है, बल्कि देश भर के 50 लाख से अधिक आदिवासी लोगों की है. केंद्र हमें इससे वंचित क्यों करेगा?”

सूत्रों के मुताबिक सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस भाजपा को घेरने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले आदिवासी संगठनों के आंदोलन का समर्थन कर रही है. जिसका 2019 के आम चुनावों के बाद से समुदाय के लोगों के बीच एक महत्वपूर्ण समर्थन आधार है. 2019 में बीजेपी को बंगाल की 42 में से 18 सीटें मिली थी.

तृणमूल सांसद समीरुल इस्लाम ने 7 फरवरी को राज्यसभा में यह मुद्दा उठाया था और मांग की कि नरेंद्र मोदी सरकार सारी और सरना को अन्य धर्मों की तरह एक अलग धार्मिक स्थिति के रूप में मान्यता दे.

तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि आदिवासी लोगों द्वारा प्रचलित धर्मों को मान्यता देने की मांग उस समय राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है, जब भाजपा लक्ष्मीर भंडार योजना में हालिया बढ़ोतरी में सामान्य वर्ग और एससी-एसटी महिलाओं के बीच बंगाल सरकार के कथित भेदभाव पर एक कहानी गढ़ने की कोशिश कर रही थी.

राज्य सरकार ने सामान्य श्रेणी में लक्ष्मीर भंडार के लाभार्थियों के लिए 500 रुपये बढ़ाकर 1,000 रुपये प्रति माह और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए 200 रुपये बढ़ाकर 1,200 रुपये प्रति माह करने की घोषणा की.

तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हम लक्ष्मीर भंडार के तहत वित्तीय सहायता की राशि में भेदभाव की भाजपा की कहानी का मुकाबला करने के लिए आदिवासी लोगों के आंदोलन का समर्थन करते हैं.”

क्या है सरना धर्म

भारत के झारखंड, ओडिशा और बंगाल में एक आदिवासी समुदाय है जो सरना धर्म को मानता है. यह एक अलग धर्म है. भारत में विभिन्न जनजातीय समूहों के बीच धार्मिक प्रथाओं में कुछ अंतर हैं, वे मूल रूप से प्रकृति पूजक हैं.

सरना धर्म वाले आदिवासी समुदाय का कहना है कि पहले उन्हें जनगणना के दौरान अपने धर्म का उल्लेख करने का अवसर दिया जाता था, लेकिन आजादी के बाद उन्हें हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध आदि प्रमुख धर्मों में से एक को चुनने के लिए मजबूर किया गया.

इन आदिवासियों द्वारा इस प्रथा को बदलने की मांग लंबे समय से चली आ रही है. सरना धर्म को मानने वालों की सबसे अधिक संख्या पहले झारखंड में है. उसके बाद ओडिशा और बंगाल में है.

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