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25 फरवरी से बनाया जाएगा नागालैंड के अंगामी आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार

सेक्रेनी (Sekrenyi) नागालैंड के अंगामी आदिवासी (Angami tribe of Nagaland) का प्रमुख त्योहार है. अंगामी जनजाति मुख्य रूप से राज्य के कोहिमा ज़िला (Kohima district) में रहते है.

नागालैंड के अंगामी जनजाति का यह त्योहार 10 दिनों तक चलता है. जिसकी शुरूआत 25 फरवरी से हो जाती है. ऐसा कहा जाता है की ये त्योहार शुद्धिकरण और पवित्रीकरण का प्रतीक है.

त्योहार के दो दिन पहले जलाऊ लकड़ी इकट्ठी की जाती है और त्योहार के एक दिन पहले भोजन की तैयारी के लिए जानवरों का शिकार किया जाता है और पुरूष रात में गाँव के बाहर स्थित कुओं की सफाई करते है.

इन कुओं की सफाई की इज़ाजत सिर्फ युवा और कुवारों लड़को को ही होती है.

10 दिनों का सेक्रेनी त्योहार
पहला दिन:- पहले दिन को ज़ुखोफ़े कहा जाता है और इस दिन पुरुष कुएं (पहले दिन साफ किए गए कुएं) पर जाकर नहाते हैं और फिर अपने कपड़ों और हथियारों पर पानी छिड़कर उनका शुद्धीकरण करते है.

इसके बाद वे घर की महिलाओं के लिए उसी कुएं से पानी लाते हैं क्योंकि उस दिन किसी और को पानी लाने की अनुमति नहीं होती है.

इसके अलावा कुएं से लौटने पर सभी आदिवासी मुर्गे की बलि चढ़ाते हैं.

इस त्योहार में सिर्फ 6 से 7 वर्ष की आयु के बाद ही लड़कों को शामिल होने की अनुमति होती है और उनकी पहली भेंट के बाद ही उन्हें मुर्गे को काटने की अनुमति दी जाती है.

क्योंकि इन सेक्रेनी आदिवासी के अनुसार मुर्गे को हाथों में ही मरना होता है और फिर उसे जमीन पर गिरा दिया जाता है.
अगर मुर्गे का दाहिना पैर बाएं पैर के ऊपर आता है, तो मुर्गे को मारना अच्छा शगुन माना जाता है. इसके अलावा मुर्गे के पंख को घर के प्रवेश द्वार पर लटका दिया जाता है.

इसके अलावा पहले दिन चिकन पकाने के लिए घर की मुख्य रसोई से दूर लकड़ी से बने एक अलग (अस्थायी) ओवन का इस्तेमाल किया जाता है. भोजन करने से पहले वे शराब के साथ मुर्गे को अपने भगवान को चढ़ाते हैं और प्रार्थना करते हैं.

ऐसा भी कहा जाता है प्रार्थना में अंगामी आदिवासी ये मांगते है की यदि कोई दुश्मन आए, तो मुझे शक्ति दो कि मैं दुश्मन को मारने से पहले उसे मार डालूं.

इसके अलावा महिलाओं और लड़कियों को इस भोजन को खाने की अनुमति नहीं होती है. दिन के अंत में पुरूष को अपने मुंह में थोड़ा पानी डालते हैं और उसे थूक देते हैं. यह संदेश होता है की त्योहार का पहला दिन सम्पात हो चुका है.

इसके साथ ही लोग स्थानीय चावल की बीयर बनाते हैं, जिसे वे कुएं को अर्पित करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि गांव को शुद्ध पानी उपलब्ध कराते रहने के लिए कुआं कभी न सूखे.

दूसरा और तीसरा दिन:- दूसरे दिन यह आदिवासी अपने घर और सामान्य पूर्वज के घर को सजाने के लिए जंगली फल इकट्ठा करते हैं और तीसरे दिन बांस काटते हैं जिसे भूना जाता हैं.

त्योहार का सबसे दिलचस्प हिस्सा थेकरा ही है. थेकरा ही त्योहार का एक बड़ा हिस्सा है, इस अवसर पर गाँव के युवा एक साथ बैठते हैं और पूरे दिन पारंपरिक गीत गाते हैं.

जो भी युवक इस गाना- गाने के अवसर पर हिस्सा लेते है उन्हें चावल से बना बियर और भोजन में मांस परोसा जाता है.

चौथा दिन:- चौथा दिन युवा जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण होता है. यह युवा जोड़ा जंगल में जाते हैं और हार, कंगन और विभिन्न अन्य आभूषण बनाने के लिए कॉर्क, पत्थर, लकड़ी के टुकड़े आदि इकट्ठा करते हैं.

इसके अलावा करीबी रिश्तेदारों के बीच उपहारों का आदान-प्रदान होता है और अगर किसी व्यक्ति को कोई उपहार चाहिए तो वह अपने दोस्तों से मांग सकता है लेकिन बदले में उन्हें उनके लिए कुछ करना होगा. ऐसा भी माना जाता है की ऐसा करने से वे बहुत करीबी दोस्त बन जाते हैं.

पंचवा दिन:- पंचावे दिन युवा लोग अपने माता-पिता के घर जाते हैं और गहने, भाले, दावा और अन्य चीजें बनाते हैं जिन्हें वे भविष्य में उपयोग के लिए रखते हैं.

छठवां और सातवां दिन:- इन दोनों दिन छुट्टियाँ होती है. इन दो दिन बस आदिवासी अपने घर में रहते हैं और दोस्तों और परिवार के साथ अपना दिन व्यतीत करते है. हालाँकि कुछ गाँवों में सातवें दिन भी शिकार किया जाता है.

आठवां दिन:- आठवा दिन त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, पुल खींचना या गेट खींचना जैसे पंरपराए इस दिन की जाती है. इसके अलावा अंतिम दिन वे मांस पकाते हैं और ग्रामीणों के बीच वितरित करते हैं.

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