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राष्ट्रव्यापी रैली में मणिपुर में कुकी-ज़ो जनजातियों के लिए अलग प्रशासन की मांग

आज ज़ो यूनाइटेड (Zo United) द्वारा आयोजित एक राष्ट्रव्यापी रैली में भाग लेने के लिए देश भर के 9 कस्बों, शहरों और 17 अलग-अलग गांवों में हजारों लोग सड़कों पर उतरे. रैली का उद्देश्य मणिपुर में कुकी-ज़ो सजातीय जनजातियों (Kuki-Zo kindred tribes) के लिए एक अलग प्रशासन की मांग करना था.

ज़ो यूनाइटेड, एक सिविल सोसाइटी संगठन (CSO) है. जो मणिपुर में सभी कुकी-ज़ो सजातीय जनजातियों के लिए मूल निकाय के रूप में कार्य करता है. उसने रैली का आयोजन किया था.

रैली में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों ने मणिपुर राज्य सरकार के प्रति अपना असंतोष व्यक्त करते हुए, “अलग प्रशासन ही एकमात्र समाधान है,” “मैतेई सरकार, मुर्दाबाद, मुर्दाबाद,” “आदिवासी क्षेत्र, आदिवासी सरकार,” और “नो सॉल्यूशन, नो रेस्ट” जैसे नारे लिखी तख्तियां ले रखी थीं.

आयोजकों ने सात महीने तक चले जातीय सफाए के हमलों के परिणामस्वरूप कुकी-ज़ो सजातीय परिवार द्वारा सामना की गई कथित गंभीर स्थिति पर प्रकाश डाला. जिसके बारे में उनका दावा है कि यह सरकार को नियंत्रित करने वाले बहुसंख्यक मैतेई लोगों द्वारा किया गया था.

उन्होंने बताया कि 203 गाँव पूरी तरह से जल गए, 7 हज़ार से अधिक घर राख हो गए, 152 लोगों की जान चली गई और 50 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हो गए.

मैतेई और आदिवासियों के बीच तनाव बढ़ने और विश्वास कम होने के लिए बीरेन सिंह सरकार की बहुसंख्यकवादी नीतियों को दोषी ठहराते हुए, आयोजकों ने एक अलग प्रशासन स्थापित करने की तात्कालिकता पर जोर दिया.

उन्होंने दावा किया कि कभी राजधानी और समृद्ध घाटी क्षेत्रों में पनपने वाली कुकी-ज़ो सजातीय जनजातियों को जबरन विस्थापित कर दिया गया है. टेक्निकल इंस्टीट्यूट, हॉस्पिटल, ऑफिस और राज्य का एकमात्र एयरपोर्ट जैसे प्रमुख संस्थान अब पहुंच से बाहर हैं.

सरकार और पुलिस पर खुले तौर पर बहुसंख्यक समुदाय का पक्ष लेने का आरोप लगाते हुए, ज़ो यूनाइटेड ने आरोप लगाया कि कमांडो ने आदिवासी गांवों पर हमलों का नेतृत्व किया.

उन्होंने एक घटना का हवाला देते हुए दावा किया कि मुख्यमंत्री के समर्थन से एनजीओ द्वारा आदिवासी विकास के लिए दिए गए धन का दुरुपयोग किया जा रहा है. जहां सीएम ने कथित तौर पर एक केंद्रीय मंत्री से मैतेई एनजीओ के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए मंजूरी का अनुरोध किया था.

इसके अलावा कुकी-ज़ो सजातीय जनजातियों ने सरकार पर भेदभावपूर्ण कार्रवाइयों का आरोप लगाया है. जिसमें स्कूली किताबों से “द कुकी” पर एक अध्याय को हटाना, आदिवासी छात्रों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण ग्रेडिंग और विस्थापित आदिवासी मेडिकल छात्रों को परीक्षा लिखने से रोकना शामिल है.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्थिति तब और खराब हो गई जब केंद्र सरकार की सहायता सहित जरूरी वस्तुओं को मैतेई भीड़ ने अवरुद्ध कर दिया, जिससे आदिवासी क्षेत्रों में उनका वितरण नहीं हो सका.

केंद्रीय गृह मंत्री को संबोधित एक ज्ञापन में ज़ो संयुक्त सचिव डॉ. वीएल नघथांग और संयोजक अल्बर्ट रेंथलेई ने बताया कि उन्होंने जो दावा किया वह एक अलग प्रशासन की सख्त आवश्यकता थी.

डॉक्यूमेंट में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मणिपुर आदिवासी समुदाय के ऐतिहासिक योगदान पर जोर दिया गया है. जिसके बारे में उनका कहना है कि यह मुख्यमंत्री और मैतेई मीडिया के दुष्प्रचार अभियान के साथ मेल खाता है, जिसमें आदिवासी आबादी को “अवैध अप्रवासी” करार दिया गया है.
ज्ञापन में मानवीय संकट, सशस्त्र धमकियों और हिंसा की भी बात कही गई है. जिसमें सरकार द्वारा जारी हथियार कथित तौर पर मैतेई आबादी को वितरित किए गए हैं और आदिवासी समुदायों के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर रहे हैं.

ज़ो यूनाइटेड ने इन बिंदुओं के साथ केंद्रीय गृह मंत्री से एक अलग प्रशासन की स्थापना पर विचार करने का आग्रह किया.

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