असम के पहाड़ी ज़िले दीमा हसाओ के उमरांगसो इलाके में प्रस्तावित अडानी ग्रुप के सीमेंट प्लांट को लेकर विवाद गहराता जा रहा है.
यह प्लांट लगभग 9,000 बीघा आदिवासी ज़मीन पर बनने जा रहा है, जिसे लेकर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने कड़ा रुख अपनाया है.
आयोग ने ज़िला उपायुक्त को नोटिस भेजकर 7 दिनों के अंदर जवाब और कार्रवाई रिपोर्ट (Action Taken Report) मांगी है.
आदिवासी समुदाय की आपत्तियां
स्थानीय लोगों और इंडिजिनस पीपुल्स पार्टी (IPP) का कहना है कि यह ज़मीन करबी, नागा और अन्य आदिवासी
समुदायों की पारंपरिक ज़मीन है.
इनका आरोप है कि ज़मीन को अडानी ग्रुप को बिना ग्राम सभाओं की अनुमति और बिना पारदर्शी प्रक्रिया के सौंप दिया गया.
इस प्लांट से लगभग 14,000 परिवारों के उजड़ने का खतरा है. साथ ही, इससे इलाके की जैवविविधता और पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान हो सकता है.
छठी अनुसूची का उल्लंघन?
यह ज़मीन नॉर्थ कछार हिल्स ऑटोनॉमस काउंसिल (NCHAC) के अधिकार क्षेत्र में आती है, जो भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत संचालित होती है.
आरोप है कि इस विषय पर ना तो इस काउंसिल से राय ली गई, ना ही लोगों को जानकारी दी गई और बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र (No Objection Certificate) की उचित प्रक्रिया के ज़मीन दी गई.
आयोग की सख्ती और चेतावनी
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने पहले भी 7 मार्च 2024 को नोटिस भेजा था लेकिन प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया.
अब आयोग ने साफ किया है कि अगर इस बार भी जवाब नहीं आया तो वह अनुच्छेद 338A के तहत अधिकारियों को हाज़िर होने का आदेश दे सकता है.
स्थानीय नेताओं और संगठनों की प्रतिक्रिया
इस फैसले का मृदुल गरलोसा जैसे स्थानीय नेताओं ने स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि अडानी प्रोजेक्ट की प्रक्रिया गोपनीय और अवैध रही है.
उन्होंने अतीत के उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे NEEPCO, AMDC और अन्य कंपनियों को ज़मीन ऐसे ही दी गई थी. वहीं इंडिजिनस पीपुल्स पार्टी के संयोजक राजेन तिमुंग ने इस नोटिस को आदिवासी अधिकारों की जीत बताया. उन्होंने कहा, “यह हमारे अस्तित्व और पहचान की लड़ाई है. हम संविधानिक और लोकतांत्रिक तरीकों से विरोध करेंगे.”
भविष्य की योजनाओं पर चिंता
इसी बीच जानकारी सामने आई है कि भूविज्ञान और खनन निदेशालय (DGM) ने बिना परिषद की मंजूरी के उमरांगसो क्षेत्र में 8 लाइमस्टोन ब्लॉक्स के टेंडर निकाल दिए हैं.
कार्यकर्ताओं का मानना है कि इन टेंडरों में भी अडानी ग्रुप को लाभ मिलने वाला है.
साथ ही ये भी आरोप हैं कि राज्य सरकार परिषद पर अंबुजा सीमेंट, डालमिया सीमेंट और एक अन्य निजी कंपनी के भी नए सीमेंट प्रोजेक्ट्स को लेकर दबाव बना रही है.
क्षेत्रीय समर्थन और बढ़ता आंदोलन
इस प्रोजेक्ट के खिलाफ चल रहे आंदोलन को खासी स्टूडेंट्स यूनियन, मेघालय के मुख्य सचिव और मुख्य वन संरक्षक जैसे संस्थाओं और अधिकारियों का भी समर्थन मिल रहा है.
मामला अब सिर्फ दीमा हसाओ का नहीं रहा बल्कि पूर्वोत्तर भारत में आदिवासी ज़मीनों की रक्षा का बड़ा मुद्दा बन चुका है.