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राष्ट्रीय महिला आयोग ने मंचेरियल में हुई घटना का लिया संज्ञान, अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग

राष्ट्रीय महिला आयोग ने तेलंगाना के मंचेरियल जिले में आदिवासी किसानों और वन विभाग के अधिकारियों के बीच हुई एक घटना का संज्ञान लिया है. घटना के एक वीडियो में प्रदर्शन कर रही आदिवासी महिला किसानों के साथ पुलिस द्वारा दुर्व्यवहार करते देखा जा सकता है.

आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी को पत्र लिखकर महिलाओं को बेरहमी से घसीटे जाने की घटना में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है.

NCW ने एक बयान में कहा कि उसे तेलंगाना के मंचेरियल जिले में आदिवासी महिला किसानों के साथ पुलिस द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने का यह वीडियो ट्विटर पर मिला था. उस वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि महिला पुलिस अधिकारियों द्वारा एक महिला किसान को बेरहमी से घसीटा जा रहा है.

घटना को गंभीरता से लेते हुए, एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने तेलंगाना के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर इस मामले में आदिवासी महिलाओं, ख़ासतौर से किसानों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करने के लिए कहा है.

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अनुसार, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को उनकी भूमि से गलत तरीके से बेदखल करना या उनके अधिकारों के भोग में हस्तक्षेप करना अपराध है.

आयोग ने तेलंगाना के डीजीपी को एक विस्तृत सफ़ाई देने के लिए भी कहा है कि पुलिस अधिकारियों द्वारा आदिवासी महिला प्रदर्शनकारियों के साथ इतना घिनौना और असंवेदनशील व्यवहार क्यों किया गया.

एनसीडब्ल्यू ने कहा, “आयोग ने उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है, जिन्हें महिला प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से घसीटते हुए देखा गया था.”

ग़ौरतलब है कि तेलंगाना आदिवासी अधिवक्ता संघ (Telangana Adivasi Advocates Association – TAAA) ने सोमवार को एक शिकायत दर्ज कराई थी.

शिकायत में संघ ने आदिवासी लोगों का उत्पीड़न करने के लिए वन और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग के संज्ञान में लाते हुए आदिवासी वकीलों ने कहा कि पांच साल से लगातार तेलंगाना के किसानों को वन विभाग द्वारा परेशान किया जा रहा है.

शिकायत में एसोसिएशन ने यह भी कहा है कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत संबंधित विभाग के पास भूमि अधिकारों के उनके दावे लंबित होने के बावजूद आदिवासी किसानों को घर छोड़ने को कहा गया. शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि वन विभाग के अधिकारियों ने किसानों पर हमला करते हुए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है.

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