Site icon Mainbhibharat

आदिवासी अधिकारों की अनदेखी, प्रद्योत  देबबर्मा ने दिल्ली में किया बड़ा प्रदर्शन

आज दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़ा और शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुआ, जिसमें देश के आदिवासी समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया.

इस प्रदर्शन का नेतृत्व त्रिपुरा के नेता और टिपरा मोथा के संस्थापक प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मा ने किया.

इस दौरान उन्होंने कहा की वह किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं हैं, बल्कि अपने समाज के हक के लिए खड़े हुए हैं.

उनका कहना है कि सरकार ने आदिवासी लोगों से जो वादे किए थे, उन्हें आज तक पूरा नहीं किया गया.

प्रदर्शन का सबसे बड़ा मुद्दा था – Tiprasa Accord.

यह एक समझौता है जिसे केंद्र सरकार ने त्रिपुरा के आदिवासी समुदाय के साथ किया था.

इसमें कहा गया था कि आदिवासी क्षेत्रों को विशेष अधिकार दिए जाएंगे और उन्हें उनकी ज़मीन, भाषा, और संस्कृति की रक्षा करने का पूरा हक मिलेगा.

लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने इस समझौते को लागू नहीं किया.

आदिवासी समाज अब महसूस कर रहा है कि सरकार ने सिर्फ वादा किया, लेकिन निभाया कुछ नहीं.

प्रद्योत ने साफ़ कहा कि यह आंदोलन किसी पार्टी के लिए नहीं है, बल्कि-आदिवासी समाज की पहचान और भविष्य के लिए है.

उन्होंने लोगों से सिर्फ भारत का तिरंगा झंडा लाने को कहा, ताकि यह दिखाया जा सके कि यह देशभक्ति से जुड़ा आंदोलन है न कि राजनीति से.

उन्होंने कहा, “अगर हमें अपने हक के लिए जेल भी जाना पड़े, तो हम पीछे नहीं हटेंगे.

हम तब तक लड़ेंगे जब तक सरकार हमारी आवाज़ नहीं सुनती.

प्रद्योत ने यह भी बताया कि सरकार बार-बार आदिवासी लोगों की बातों को नज़रअंदाज़ करती है.

उन्होंने कहा कि कई बार सरकार ने बातचीत के नाम पर समय बिताया, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं बदला.

आदिवासी लोगों को अब भी उनके अधिकार नहीं मिल रहे हैं. उनकी ज़मीन छीनी जा रही है, भाषा को दबाया जा रहा है और रोज़गार के मौके नहीं दिए जा रहे हैं.

सरकार की इस लापरवाही से आदिवासी समाज में गहरी नाराज़गी है.

लोगों का कहना है कि जब चुनाव पास होते हैं, तब तक सरकार आदिवासी समाज को याद करती है.

वादे किए जाते हैं, घोषणाएं होती हैं, लेकिन चुनाव के बाद सब भूल जाते हैं. यही वजह है कि अब लोग सड़कों पर उतरकर शांति से अपनी आवाज़ उठा रहे हैं.

प्रदर्शन में शामिल कई युवाओं ने कहा कि वे अब चुप नहीं बैठेंगे.

अगर सरकार अब भी नहीं जागी, तो आंदोलन और तेज़ किया जाएगा.

आदिवासी समाज अब अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो चुका है. उनका कहना है – हम भी इस देश के नागरिक हैं और हमें भी बराबरी का हक चाहिए.

Exit mobile version