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ओडिशा में बोंडा आदिवासियों के स्वास्थ्य से हो रहा है खिलवाड़

ओडिशा की दो पंचायतों में 35 गांव और 8,800 से ज्यादा लोग रहते हैं, लेकिन उनके स्वास्थ्य की देखभाल और आपातकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए सिर्फ एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और एक एम्बुलेंस है.

यह कमोबेश मलकानगिरी के खैरपुट ब्लॉक में रहने वाले आदिम जनजातीय समूह (पीवीटीजी) बोंडा आदिवासियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की कहानी का सार है.

खैरपुट ब्लॉक के मुदुलीपाड़ा और अंद्रहल पंचायतों में बोंडा आदिवासी रहते हैं. उनके गांवों तक सड़क संपर्क की कमी उन्हें मुख्य धारा से अलग-थलग ही रखती है, जिसकी वजह से उनका स्वास्थ्य भी संकट में पड़ जाता है. केंद्र सरकार द्वारा सालों से विकास की कोशिश का कोई अंजाम न होना इसी सड़क संपर्क की कमी से है.

मुदुलीपाड़ा में इकलौता पीएचसी, हाल फिलहाल तक, आयुष डॉक्टर, एक फार्मासिस्ट और एक परिचारक के साथ चलाया जा रहा था. पिछले महीने, एक एमबीबीएस डॉक्टर की पोस्टिंग यहां की गई.

यह स्वास्थ्य केंद्र पीपीपी मोड पर चलता है और यही इकलौती जगह है जहां एक एम्बुलेंस तैनात है. यह एम्बुलेंस गर्भवती महिलाओं और बच्चों की आपातकालीन जरूरतों के लिए समर्पित है. दूसरों के लिए, शुल्क 10 रुपये प्रति किमी है.

मुदुलीपाड़ा से आगे गांवों तक पहुंच एक बुरे सपने जैसा है. लगभग 6-7 किमी की दूरी पर अंद्राहल तक एक ऊबड़-खाबड़ पंचायत सड़क है, जिसको बनाने का काम अभी भी चल रहा है.

अंद्राहल ग्राम पंचायत के तहत गांवों में सड़कों का कोई अस्तित्व ही नहीं है. सड़क बनाने के लिए टेंडर ज़रूर जारी किए गए थे, लेकिन बिड सामने नहीं आई.

हालांकि सीमा सुरक्षा बल ने राज्य पुलिस के समर्थन से मुदुलीपाड़ा और अंद्राहल दोनों में दो शिविर स्थापित किए हैं, लेकिन चरमपंथियों का डर ठेकेदारों को दूर रखता है.सड़कें न होने से एंबुलेंस भी दूर रहती हैं.

मुदुलीपाड़ा पीएचसी से 5-10 किमी दूर कम से कम 10 गांवों में 108 और 102 दोनों एम्बुलेंस सेवाएं गंभीर रोगियों तक नहीं पहुंच पा रही हैं. लाचार, आदिवासी बोंडा हिल से 30 किमी दूर खैरपुट में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने के लिए अत्यधिक दरों पर निजी वाहन किराए पर लेने को मजबूर हैं.

बाइक एम्बुलेंस सेवा शुरू होते ही बंद भी हो गई

ओडिशा पीवीटीजी एम्पावरमेंट एंड लाइवलीहुड इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम (ओपीईएलआईपी) के तहत एक बाइक एंबुलेंस सेवा ज़रूर शुरू की गई थी, लेकिन वो भी जल्द बंद हो गई.

“कई गांवों में पक्की सड़कों की कमी की वजह से सेवा बहुत कम मदद कर रही थी. आदिवासियों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के सरकार के लंबे दावे सिर्फ कागजी हैं,” बाइक एम्बुलेंस ऑपरेटर नंदा सिरसा ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से
कहा.

खैरपुट के बीडीओ हृदा रंजन साहू ने कहा कि एक एनजीओ ने सेवा शुरू की थी, लेकिन अंदरूनी इलाकों से स्वास्थ्य केंद्रों की यात्रा के दौरान मरीजों की हालत बिगड़ने के चलते इसे रोक दिया गया. इसके अलावा, खराब सड़कों पर दुर्घटनाओं का खतरा भी है.
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