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100 वर्षों तक किसी भी गैर-आदिवासी वर्ग को न मिले ST का दर्जा- आदिवासी प्रेशर ग्रुप महासंगठन

झारखंड के राष्ट्रीय आदिवासी प्रेशर ग्रुप महासंगठन ने केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा से बुधवार को दिल्ली में मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने दस बिंदुओं से जुड़ा एक मांग पत्र भी सौंपा है. इस पत्र के जरिए उन्होंने अर्जुन मुंडा से अपील की है की आने वाले 100 वर्षों तक किसी भी गैर-आदिवासी वर्ग को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं दिया जाए.

मांग पत्र में लिखा गया है की 100 वर्षों के लिए संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित 730 अनुसूचित जनजातियों की लिस्ट फ्रीज कर दी जानी चाहिए. जिससे अन्य वर्गों के लोग अनुसूचित जनजाति में शामिल न हो पाए.
इस अनुच्छेद के तहत 730 से अधिक अनुसूचित जनजाति समूह अधिसूचित है.

फिलहाल आदिवासियों की जनसंख्या देश में कुल जनसंख्या 9 प्रतिशत के करीब पहुंच गई है. संगठन का कहना है पिछले कुछ दिनों से यह देखने में आया है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपना वोट बैंक बढ़ाने और राजनीतिक फायदे के लिए कई संपन्न और गैर-आदिवासी वर्ग को पूरे देश के विभिन्न राज्यों (मणिपुर सहित) में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने का गंदा खेल खेला जा रहा है.

इससे मूल आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, अधिकार, संस्कृति-सभ्यता, जल, जंगल और जमीन पर ख़तरा मंडराने लगा है. उनका कहना है कि लोकुर समिति (1965) ने अनुसूचित जनजाति की पहचान के लिए पांच मापदंड बताए थे लेकिन इनको खारिज कर संविधान के खिलाफ जाकर गैर-आदिवासी वर्ग के जातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की कार्रवाई की जा रही है.


लोकुर समिति (1965) का गठन अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के मापदंड पर विचार करने के लिए किया गया था. समिति ने उनकी पहचान के लिये पाँच मापदंडों – आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में संकोच और पिछड़ापन की सिफारिश की थी.


ऐसे में मंत्रालय इस मसले पर अपने स्तर से नियम के मुताबिक प्रभावी कदम उठाए. संबंधित विभागों और सभी प्रदेश के सरकारों को निर्देशित करें.


चाय बगानों में काम करने वाले आदिवासियों को मिले एसटी का दर्जा

मांग पत्र के जरिये महासंगठन ने केंद्रीय मंत्री से अपील करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित 730 अनुसूचित जनजातियों को सभी राज्यों में एक समान “अनुसूचित जनजाति” के रूप मान्यता मिलनी चाहिए और असम के चाय बागानों में काम करने वाले झारखंड के मूल निवासी आदिवासियों (उरांव, मुंडा, हो, खड़िया, संथाल) को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले.


आदिवासियों को मिले वन भूमि में अधिकार

इसके अलावा संगठन ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत जंगल में रहने वाले आदिवासियों को भूमि दी जाए. प्रकृति पूजा आदिवासियों को उनकी धर्म का पहचान दिया जाए और सरना धर्म को जनगणना कॉलम में शामिल किया जाए. जिससे आदिवासियों का अस्तित्व कभी खत्म न हो.

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