ओडिशा में सत्तारूढ़ भाजपा ने गुरुवार को अपने आदिवासी सांसदों और विधायकों से अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में 20-25 गाँव गोद लेने और उन क्षेत्रों में विकास कार्यों में तेजी लाने का आह्वान किया.
सरकार का कहना है कि इस पहल का उद्देश्य आदिवासी समुदायों को उनके मूल क्षेत्रों में फलने-फूलने में सक्षम बनाकर पलायन को रोकना है.
ओडिशा में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से पांच लोकसभा सांसदों और 16 विधायकों वाली पार्टी ने राज्य भाजपा मुख्यालय में आदिवासी क्लस्टर विकास परियोजना (TCDP) की एक कार्यशाला में उन्हें प्रशिक्षण दिया.
कार्यशाला का उद्घाटन मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने किया, जो स्वयं आदिवासी समुदाय से आते हैं.
इस कार्यशाला में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष, प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल, केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम, राष्ट्रीय संयोजक वी. सतीश, राज्य प्रभारी विजयपाल सिंह तोमर, पार्टी सह-प्रभारी लता उसेंडी, अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव सहित अन्य लोग उपस्थित थे.
मुख्यमंत्री ने कौशल विकास, उद्यमिता और एकीकरण के माध्यम से आदिवासी आबादी की आजीविका को बढ़ाने में टीसीडीपी के महत्व पर प्रकाश डाला.
केंद्र सरकार की एक योजना, जनजातीय क्लस्टर विकास परियोजना, उद्यमिता को बढ़ावा देने और ट्राइफेड और ट्राइब्स इंडिया के माध्यम से कारीगरों को व्यापक बाज़ारों से जोड़ने के लिए उच्च जनजातीय आबादी वाले क्षेत्रों को लक्षित करती है.
पार्टी नेताओं ने दावा किया कि क्लस्टर-आधारित मॉडल ने सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं, जिससे जनजातीय समुदायों की आय में सुधार हुआ है और पारंपरिक आजीविका पुनर्जीवित हुई है.
वहीं भाजपा सांसद और वरिष्ठ आदिवासी अनंत नायक ने कहा, “आदिवासी इतने दशकों तक विकास नहीं कर पाए क्योंकि एस कमरों में बैठे लोग उन पर परियोजनाएँ थोप रहे थे. हालांकि, अब आदिवासियों को अपने क्षेत्र की ज़रूरतों के अनुसार निर्णय लेने के अवसर दिए जा रहे हैं. टीसीडीपी का उद्देश्य आदिवासी नेताओं को सशक्त बनाना और उनके क्षेत्रों का विकास करना है. नरेंद्र मोदी सरकार आदिवासी समुदायों के व्यापक और संतुलित विकास के लिए प्रतिबद्ध है.”
नायक ने आगे कहा, “अंग्रेजों ने आदिवासी विरासत को बदनाम करने वाली नीतियाँ पेश कीं. आज़ादी के बाद, आदिवासी उत्थान को दरकिनार कर दिया गया. नेहरू की सरकार ने आदिवासी वास्तविकताओं को समझे बिना विदेशी योजनाएँ थोप दीं.”
नायक ने कहा कि विकास योजनाएं बातचीत के माध्यम से बनाई जाएंगी, थोपी नहीं जाएंगी. यह आदिवासी आवाज़ों को सशक्त बनाने और विकास को उनकी आकांक्षाओं के साथ जोड़ने के बारे में है.
उन्होंने कहा कि लेकिन अब आदिवासी सांसदों और विधायकों को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में कम से कम 20 से 25 गाँवों को गोद लेने और उनके विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया.
उन्होंने कहा कि सांसद और विधायक आदिवासी गाँवों का चयन करेंगे और उन बस्तियों की मुख्य समस्याओं की पहचान करके उनका समाधान करेंगे.
उन्होंने कहा, “कार्यशाला में इस बात पर विचार-विमर्श किया गया कि किस प्रकार आदिवासियों पर योजनाएं थोपे बिना उनकी इच्छा के अनुसार क्षेत्र का विकास किया जाए.”
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