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ओडिशा: तीन आदिवासी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने में देरी पर BJD ने BJP पर साधा निशाना

ओडिशा की बीजेडी सरकार ने सोमवार को संविधान की आठवीं अनुसूची में राज्य की तीन आदिवासी भाषाओं को शामिल करने में देरी के लिए भाजपा पर निशाना साधा है. बीजेडी ने आरोप लगाया कि बीजेपी इस मुद्दे को आगे बढ़ाने में उदासीन रवैया अपना रही है.

महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री बसंती हेम्ब्रम ने कहा कि राज्य की तीन प्रमुख आदिवासी भाषाओं हो, मुंडारी और भुमजी को अभी तक आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है जबकि बीजद इस मुद्दे को संसद में और बाहर सालों से उठाती रही है.

हेम्ब्रम ने आरोप लगाया कि राज्य के बीजेपी मंत्रियों और सांसदों ने कभी भी इस मुद्दे को नहीं उठाया. उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि बीजेपी को राज्य की आदिवासी भाषाओं के विकास में कोई दिलचस्पी नहीं है.

हेम्ब्रम ने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इस मुद्दे को कई बार उठाया है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी लिखा है. उन्होंने कहा कि बावजूद इसके अभी तक इस मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

उन्होंने आगे कहा कि बीजद सांसद भी कई बार संसद में इस मांग को उठा चुके हैं लेकिन हैरानी की बात है कि भाजपा अभी तक इस मुद्दे पर खामोश है.

‘हो’ भाषा दस लाख से अधिक आदिवासियों द्वारा बोली जाती है. संथाली जिसे पहले ही संविधान की आठवीं अनुसूची शामिल किया जा चुका है, के बाद ‘हो’ ओडिशा में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली जनजातीय भाषा है.

वहीं मुंडारी ओडिशा के मुंडा और मुंडारी जनजातियों के छह लाख से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है. हेम्ब्रम ने कहा कि राज्य सरकार ने मुंडारी पढ़ाने के लिए 250 प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को नियुक्त किया है जिसे ‘मुंदरी बानी’ के नाम से जाना जाता है. इसी तरह तीन लाख से ज्यादा आदिवासी भुमजी बोलते हैं.

मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने आदिवासियों के सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए हैं. उन्होंने कहा कि 23 जिलों में गठित पांच लाख आदिवासी छात्राओं और विशेष विकास परिषदों (एसडीसी) के लिए छात्रावास उपलब्ध कराए गए हैं.

दरअसल ब्रिटिश शासन ख़त्म होने के बाद से ही ओडिशा में भाषाओं को लेकर लड़ाई जारी है. बीजद के अलावा दूसरे राजनीतिक दलों ने भी संविधान की आठवीं अनुसूची में आदिवासी भाषाओं को शामिल करने के लिए केंद्र सरकार से अपील की है. लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से इसके लिए अभी तक कोई पहल नहीं हुई है.

आठवीं अनुसूची में भाषा शामिल होने के फायदे

संविधान की आठवीं अनुसूची भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध करती है. जिस समय संविधान लागू किया गया था उस समय इस सूची में शामिल किए जाने का मतलब था कि वो भाषा राजभाषा आयोग में प्रतिनिधित्व की हकदार थी.

लेकिन अब इसका महत्व और भी बढ़ गया है. अब इस सूची में शामिल भाषाओं के विकास के लिए भारत सरकार उपाय करती है ताकि ये भाषाएं तेज़ी से समृद्ध हों और इनका ज्ञान के संचार में इनका उपयोग बढ़े.

इसके अलावा किसी सार्वजनिक सेवा के लिए होने वाली परीक्षा लिखने के लिए उम्मीदवार इनमें से किसी भी भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं.

फिलहाल आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं, जिनमें असमिया, बांगला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़ा, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मैती (मणिपुरी), मराठी, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु, और उर्दू शामिल हैं.

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