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डायन बता कर हत्या करने के लिए बदनाम मयूरभंज के दामन पर एक और मौत का दाग़

ओडिशा के मयूरभंज ज़िले में एक 70 वर्षीय आदिवासी महिला पर जादू टोना करने का संदेह करने वाले एक ग्रामीण ने कथित तौर पर लाठी मारकर हत्या कर दी. पुलिस ने रविवार को यह जानकारी दी. मृतिका की पहचान जामदा थाना के बादामटोलिया गांव निवासी गंगी जमुदा के रूप में हुई है.

उसी गांव के रहने वाले मदन पिंगुआ (60) ने शनिवार की रात बुजुर्ग आदिवासी महिला को लाठी से पीटा क्योंकि उसे संदेह था कि वह जादू टोना कर रही हैं जिससे उसके परिवार में बीमारियां हो रही हैं.

गंभीर रूप से घायल जमुदा को रायरंगपुर अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया.

जामदा थाने के प्रभारी निरीक्षक ने बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी मदन पिंगुआ और कमलाकांत दास को गिरफ्तार कर लिया है.

इस तरह की ये पहली घटना नहीं है इससे पहले 18 मई को 65 साल के एक आदिवासी ओझा की जादू-टोना करने के आरोप में पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक विच हंटिंग के रूप में हत्याओं की सबसे ज़्यादा संख्या झारखंड में होती है. इसके बाद दूसरे नंबर पर ओडिशा है.  

ओडिशा में विच हंटिंग एक्ट 2013 के लागू होने के बाद 2015 में 58, 2016 में 83 और 2017 में 99 ऐसे मामले दर्ज किए गए. राज्य में 2001 से 2016  के बीच जादू टोना करने के संदेह में करीब 523 महिलाओं की पीट-पीट कर हत्या की गई. लेकिन कई मामले ऐसे भी होंगे जिनकी रिपोर्ट नहीं की गई इसलिए वो जनता और अधिकारियों की नज़रों से बच गए.

एक अंतरराष्ट्रीय नॉन-प्रॉफ़िट संस्था, एक्शनएड ने ओडिशा राज्य महिला आयोग के समर्थन से एक स्टडी की है. इस स्टडी में पूरे ओडिशा से विच-हंटिंग और डायन-ब्रांडिंग के 100 मामलों के बारे में संस्था ने जानकारी जुटाई.

उन्होंने पाया कि डायन-ब्रांडिंग के 27 फीसदी मामले बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों की वजह से हुए थे, 43.5 फीसदी परिवार के बुज़ुर्ग सदस्य के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों की वजह से, 24.5 फीसदी मामले दुर्भाग्य या ज़मीन हथियाने की वजह से और पांच फीसदी फसल बर्बाद होने की वजह से.

एक्शनएड ने अपनी स्टडी में ये भी पाया कि ओडिशा के 30 जिलों में से 12 में विच-हंट ज़्यादा प्रचलित हैं. ख़ासतौर से मयूरभंज, क्योंझर, सुंदरगढ़, मलकानगिरी, गजपति और गंजम में इस तरह के मामले देखने को मिलते हैं. इन सभी ज़िलों में आदिवासी आबादी काफ़ी ज़्यादा है.

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक़ ओडिशा में 2019 में विच-हंटिंग के 19 मामले सामने आए, 2018 और 2017 में 18-18, और 2016 में 25 ऐसी हत्याएं हुई थीं.

विच-हंटिंग की घटनाओं को रोकने के लिए ग्रामीण अभी भी कानून और तरीकों से बेखबर हैं. किसी भी एजेंसी, स्वास्थ्य विभाग, पुलिस या सरकार द्वारा इस तरह की प्रथाओं को ख़त्म करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. विच-हंटिंग की हर घटना इस तरह के मामलों से निपटने में गंभीर चूक की ओर इशारा करती हैं.

वर्तमान कानून पीड़ितों को काला जादू का आरोप लगने से होने वाले परिणामों से उबरने में मदद का कोई प्रभावी तरीका नहीं देते हैं. मौत के अलावा भी इन आरोपों के परिणाम कई हैं, जिसमें जबरन विस्थापन, गाँव निकाला के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार शामिल हैं.

इस कुप्रथा से निपटने के लिए बने कानून की खामियां इस बात से भी साफ़ होती हैं कि ज्यादातर मामलों में विच-हंटिंग कानूनों को लागू ही नहीं किया जाता है. बल्कि, सिर्फ़ आईपीसी के तहत कुछ धाराएं लगाई जाती हैं.

ओडिशा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष मिनती बेहरा का कहना है कि इस स्टडी से विच हंटिंग एक्ट 2013 को लागू करने में हो रही खामियों का भी अध्ययन किया गया.

उनका मानना है कि विच-हंटिंग महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है. इसलिए आयोग मौजूदा कानून में ज़रूरी संशोधन लाने के लिए आगे के कदमों पर काम करेगा ताकि पीड़ितों की उचित सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

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