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ओडिशा: कुपोषण से आदिवासी बच्चे की मौत, सरकार ने किया 250 करोड़ के प्रावधान का दावा

ओडिशा के जाजपुर जिले से कुपोषण के ताजा मामले सामने आए हैं. भले ही सरकार कई कल्याणकारी कार्यक्रमों को शुरू करने के बड़े-बड़े दावे करती है बावजूद इसके एक छोटे लड़के की कुपोषण के कारण मृत्यु हो गई है. जबकि उसकी बहन जाजपुर जिले के दानागड़ी ब्लॉक की रानागुंडी पंचायत के घाटिसही के दूरदराज के गांव में अपनी जिंदगी के लिए लड़ रही है.

बच्ची की मां ने कहा कि वह खुद चलने या बैठने में असमर्थ है. वह बिस्तर पर पड़ी हुई है और उसकी हालत अब बिगड़ रही है.

सूत्रों के मुताबिक, बांकू हेम्ब्रम अपनी पत्नी तुलसी हेम्ब्रम और नौ बच्चों के साथ गांव में रहते हैं. उनके दो बेटों में से एक की कुछ दिन पहले कुपोषण के कारण मृत्यु हो गई. अब उनकी एक बेटी की हालत गंभीर होने के कारण वह बिस्तर पर पड़ी है.

इसके अलावा बांकू के अन्य बच्चे भी धीरे-धीरे कुपोषण की चपेट में आ रहे हैं. बेबस परिवार मदद के लिए दर-दर भटक रहा है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. दिहाड़ी मजदूर बांकू के पास राशन कार्ड है लेकिन वह राशन से वंचित है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पानी चावल और नमक खाकर परिवार का गुजारा होता है.

ये खबर बाहर आने के बाद डीसीपीओ ने अपनी टीम के साथ गांव का दौरा किया और उसके सभी भाई-बहनों को बचाया. उन्हें सुकिंदा में निगरानी में रखा गया है.

जाजपुर के मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी (CDMO), सिबाशीष महाराणा ने कहा, “हमारे यहां पोषण पुनर्वास केंद्र (Nutrition Rehabilitation Centre) है, जहां एक पार्षद, चिकित्सक, बाल रोग विशेषज्ञ हैं, जो अब बच्चे की देखभाल कर रहे हैं. एक अन्य बच्चे को पहले डीएचएच में भर्ती कराया गया था. लेकिन समस्या यह है कि लोग कुपोषण से अनभिज्ञ हैं और अस्पताल नहीं आना चाहते. इसलिए हम जल्द ही एक जागरूकता कार्यक्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.”

कुपोषण से जाजपुर जिला ही नहीं जूझ रहा है. राज्य के 12 जिलों में छह से 59 माह के बच्चों के बीच कुपोषण दर राष्ट्रीय दर से अधिक है. राष्ट्रीय स्तर पर इस श्रेणी के बच्चों की कुपोषण दर 67.1 प्रतिशत है, जबकि ओडिशा के 12 जिले में कुपोषण दर 70 प्रतिशत से अधिक है.

अनुगुल जिले में 75.3 प्रतिशत, बलांगीर में 74.9 प्रतिशत, बौद्ध में 68.7 प्रतिशत, कालाहांडी में 68.8 प्रतिशत, कोरापुट में 69.7 प्रतिशत, मालकानगिरी में 78.7 प्रतिशत, मयूरभंज में 71.7 प्रतिशत, नबरंगपुर में 70.8 प्रतिशत, नुआपाड़ा में 73.5 प्रतिशत, रायगडा में 73.5 प्रतिशत, सोनपुर 73.8 प्रतिशत और सुन्दरगड़ जिले में 77.1 प्रतिशत कुपोषण दर है.

बालेश्वर जिले में कुपोषण की दर सबसे कम 43.2 प्रतिशत है. वहीं पूरे ओडिशा में कुपोषण की दर 64.2 प्रतिशत है. इसी तरह से राज्य में पांच साल से कम उम्र के 29.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 32.1 प्रतिशत है.

महिला एवं बाल विकास मंत्री बसंती हेम्ब्रम ने कहा है कि बलांगीर, बौद्ध, देवगढ़, गजपति, कालाहांडी, कंधमाल, क्योंझर, कोरापुट, मालकानगिरी, मयूरभंज, नबरंगपुर, नुआपाड़ा, रायगड़ा, संबलपुर, सोनपुर और सुंदरगढ़ जिलों में इसकी दर राष्ट्रीय दर से अधिक है.

मंत्री हेम्ब्रम ने कहा कि महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से पोषण ट्रैकर विकसित किया गया है. इससे उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, जन्म से पांच साल के बीच राज्य में स्टंटिंग के शिकार शिशुओं की दर 31.2 प्रतिशत है. नबरंगपुर जिले में यह सबसे अधिक 52.7 प्रतिशत प्रतिशत है. अनुगुल में स्टंटिंग दर सबसे कम 15.7 प्रतिशत है.

इस बीच राज्य में किशोर लड़कियों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं और छह साल से कम उम्र के बच्चों के बीच कुपोषण को दूर करने के लिए ओडिशा सरकार ने 2023-24 के लिए मुख्यमंत्री संपूर्ण पुष्टि योजना (MSPY) के तहत 250 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है.

हेम्ब्रम ने कहा कि ओडिशा उन कुछ राज्यों में से एक है जिसने लिंग और बाल बजट को प्रभावी ढंग से सुनिश्चित किया है. जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं और बच्चों के पोषण की स्थिति में सुधार, प्रारंभिक बाल देखभाल और किशोरों के सशक्तिकरण के लिए धन का निरंतर प्रवाह हुआ है.

उन्होंने कहा कि ओडिशा सरकार 2023-24 से 2027-28 की अवधि के दौरान मुख्यमंत्री संपूर्ण पुष्टि योजना के तहत 3000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी.

मंत्री ने कहा कि बच्चों के विकास के लिए पूरक पोषण योजना के तहत आंगनबाड़ी केंद्र पर 25 दिन प्रतिमाह के हिसाब से साल में 300 दिन बच्चों को पूरक पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया गया है. इस योजना के माध्यम से 6 महीने से 3 साल तक के सामान्य बच्चों को टीएचआर मशरूम, अंडे, लड्डू, सूखा राशन आदि प्रदान किया जा रहा है.

जो बच्चे अंडे नहीं खाते हैं उन्हें प्रति माह अतिरिक्त लड्डू दिए जा रहे हैं. आंगनवाड़ी केंद्र में तीन से छह साल की उम्र के बच्चों को गर्म पके हुए भोजन पर सप्ताह में पांच अंडे दिए जाते हैं. इसके लिए 2010 से दिसंबर 2022 के बीच 9,77,228 लाख रुपये खर्च किए गए हैं.

सरकार कुपोषण को दूर करने के लिए कई योजनाओं की गिनती करवा रहा है लेकिन आंकड़े जमीनी स्थिति के गवाह हैं.

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