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ओडिशा: बाल विवाह पर लगाम कसने के लिए कई विभाग आए साथ, 2030 तक कुरीति को ख़त्म करने का लक्ष्य

ओडिशा में बाल विवाह की समस्या बहुत बुरी है. ज्यादातर बाल विवाह ग्रामीण इलाकों में होते हैं, उनमें भी आदिवासियों के बीच.

राज्य सरकार ने अब इस सामाजिक बुराई से निपटने के लिए अपने अलग-अलग विभागों को साथ लाने की पहल की है. इनमें कानून विभाग, स्कूल और जन शिक्षा, उच्च शिक्षा, कौशल विकास और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विकास विभाग शामिल हैं.

महिला और बाल कल्याण (WCD) विभाग ने बुधवार को इन विभागों के सचिवों को पत्र लिखकर बाल विवाह की रोकथाम, कमज़ोर बच्चों पर नज़र रखने, और संबंधित योजनाओं के तहत ऐसे बच्चों का पुनर्वास करने के लिए उनके हस्तक्षेप की बात कही.

स्कूल और जन शिक्षा (SME) विभाग से कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों और दूसरे आवासीय विद्यालयों में कमजोर लड़कियों, जिन्हें बाल विवाह से बचाया गया है या वो अनाथ हैं, को नामांकित करने के लिए कहा गया है.

इसके अलावा आठवीं कक्षा के सिलेबस में बाल विवाह, उसके परिणाम और बाल विवाह के कानूनी प्रावधानों पर एक चैप्टर शामिल करने का सुझाव दिया गया है.

इसी तरह एक सुझाव यह भी है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विकास विभाग आदिवासी लड़कियों की शिक्षा जारी रखने, और बाल विवाह के खिलाफ समुदाय विशिष्ट सलाह के लिए स्थानीय आदिवासी नेताओं को साथ जोड़े.

राज्य के ऐक्शन प्लान में 2030 तक बाल विवाह की कुरीति को ख़त्म करने का लक्ष्य है. अब तक, ओडिशा के 4,000 गांवों को बाल विवाह मुक्त घोषित किया गया है, और इस साल अब तक 1,970 ऐसी शादियों को रोका गया है.

ओडिशा सरकार पहले से ही विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों यानि पीवीटीजी में बाल विवाह को कम करने के लिए, ‘लेट मैरेज’ इंसेंटिव प्रोग्राम चलाती है. इसके तहत हर साल पीवीटीजी समुदायों की ऐसी 180 लड़कियों को पैसा दिया जाता है, जो 18 साल की उम्र के बाद शादी करती हैं.

महिला एवं बाल विकास विभाग ने कानून विभाग से उसके प्रशासनिक नियंत्रण वाले मंदिरों को अपने परिसरों में अनिवार्य रूप से एक सलाह जारी करने को कहा है कि ‘कानूनी उम्र से पहले विवाह दंडनीय है और यहां कोई बाल विवाह नहीं होगा.’

इसके अलावा, मंदिर के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि शादी के लिए आने वाले लड़की और लड़के दोनों के उम्र से संबंधित दस्तावेज़ों की जांच हो. दूसरे मंदिरों में ऐसी पहल की ज़िम्मेदारी ज़िला कलेक्टरों की होगी.

इसके अलावा कौशल विकास विभाग से व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने का भी आग्रह किया गया है, ताकि स्कूल से बाहर के बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण मिल सके और वो परिवार द्वारा बाल विवाह के लिए मजबूर न की जाएं.

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