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ओडिशा के इस आदिवासी गांव में लोग कर रहे बुनियादी सुविधाओं का इंतजार

एकतरफ राज्य सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे करती है बावजूद इसके ओडिशा के कई आदिवासी गांव अभी भी सामान्य जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ऐसी ही एक घटना कोरापुट जिले के कोमाना प्रखंड के सुनाबेड़ा पंचायत के आदिवासी बहुल उपका पानी से सामने आई है.

जानकारी के मुताबिक, गांव घने जंगल में स्थित है और लोग बेहद सीमित संसाधनों के साथ जीवन जी रहे हैं. गांव में आवागमन के लिए कोई वाहन योग्य सड़क नहीं है. नतीजतन ग्रामीणों को पंचायत तक पहुंचने के लिए 100 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है.

मोटर योग्य सड़कों के न होने के कारण ग्रामीणों को अपनी दैनिक आजीविका के लिए घने जंगल के बीच से होकर जाना पड़ता है.

इतना ही नहीं इस इलाके में बिजली भी नहीं हैं और न ही पीने के पानी की सुविधा है. यहां के आदिवासी पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं जिसके चलते कुछ ग्रामीण बीमारियों के शिकार हो रहे हैं.

इन सभी मुद्दों के अलावा ग्रामीण एक और प्रासंगिक मुद्दे यानी एक उचित स्कूल की कमी से भी जूझ रहे हैं. प्रशासन की लापरवाही के कारण गांव में आंगनवाड़ी की सुविधा नहीं है जिससे बच्चे ‘शिक्षा’ शब्द से वाकिफ नहीं हैं.

ग्रामीणों ने कहा कि चुनाव के दौरान नेता सिर्फ उनके दरवाजे पर दस्तक देते हैं और वोटिंग खत्म होने के बाद वे अगले चुनाव तक दोबारा गांव में नज़र नहीं आते हैं.

उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) काउंटर को पास की भरुआमुंडा पंचायत में स्थानांतरित करने और अपने गांव को इससे जोड़ने की मांग की है.

ग्रामीणों को राज्य सरकार से मदद की सख्त जरूरत है और जो सामान्य जीवन जीने के लिए सीमित सुविधाओं की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

इस तरह की समस्याओं से जूझ रहा यह पहला आदिवासी गांव नहीं है. इससे पहले पिछले महीने ही कोरापुट जिले के घंट्रागुडा के आदिवासी सड़क संपर्क संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे. ऐसे में इन लोगों ने अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए पहाड़ियों को काटकर अपने दम पर सड़क बनाने का काम किया था.

पुरुषों और महिलाओं समेत ग्रामीणों के एक समूह ने एक पहाड़ी को काट कर और झाड़ियों को साफ कर जिले में घंट्रागुडा को पुकी छाक से जोड़ने वाली छह किलोमीटर लंबी कच्ची सड़क का निर्माण किया है.

घंट्रागुडा दक्षिणी ओडिशा के कोरापुट शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित है और सड़क की कमी के कारण ग्रामीणों को यहां तक ​​पहुंचने के लिए 52 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी. उन्हें विभिन्न कार्यों के लिए शहर के प्रमुख हिस्से तक पहुंचने के लिए पहाड़ी का पूरा चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ता था और अक्सर समस्याओं का सामना करना पड़ता था.

ग्रामीणों का कहना था कि प्रशासन द्वारा करीब 15 साल पहले पक्की सड़क का निर्माण कराया गया था लेकिन देखरेख के अभाव में अब इसका कोई नामोनिशान नहीं है.

(प्रतिकात्मक तस्वीर)

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