Mainbhibharat

बारिश में ढही आदिवासी दम्पति की झोपड़ी, तो शौचालय को बनाया घर

ओडिशा के मयूरभंज ज़िले का एक बुज़ुर्ग आदिवासी दंपति पिछले नौ महीनों से स्वच्छ भारत अभियान के तहत बने एक शौचालय में रह रहा है. बारिश में उनका असली घर ढह गया, तो उन्हें शौचालय को अपना घर बनाना पड़ा.

राम और गुरुबारी देहुरी, दोनों की उम्र 60 से ज़्यादा है. यह खड़िया समुदाय से हैं, जो विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूह यानि पीवीटीजी है. पिछले साल बारिश में उनकी झोपड़ी डैमेज हो गई थी, लेकिन पैसे न होने के चलते, वो इसकी मरम्मत नहीं कर सके.

इस आदिवासी दम्पति की कोई संतान नहीं है, और लघु वनोपजों को इकट्ठा कर स्थानीय बाज़ार में बेचना ही इनकी आजीविका का साधन है. लेकिन कोविड-19 महामारी और उससे जुड़े लॉकडाउन प्रतिबंधों ने उनकी आजीविका छीन ली, और उन्हें इस असहाय स्थिति में धकेल दिया.

हालात इस क़दर बिगड़ गए कि अब वो एक दिन में दो वक्त के भोजन को भी कभी-कभी तरस जाते हैं. हालांकि इस पीवीटीजी की सहायता करने के लिए ज़िले में एक खड़िया मानकीड़िया विकास एजेंसी की स्थापना की गई है, लेकिन इस बुज़ुर्ग दंपति को अभी तक कोई मदद नहीं मिली है.

राम ने एक अखबार से बातचीत में बताया कि वो स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने शौचालय में नौ महीने से ज़्यादा समय से रह रहे हैं, क्योंकि उनके पास घर की मरम्मत के लिए पैसे नहीं हैं. जब भारी बारिश होती है, तो वो पड़ोसी के घर में शरण ले लेते हैं.

राम कहते हैं कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि उन्हें भोजन की व्यवस्था करने में दिक्कत हो रही है. कभी-कभी उनके पड़ोसी तरस खाकर चावल दे देते हैं, तो उनका काम चल जाता है.

ग़रीबों के लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की आवास योजनाएं हैं, और पीवीटीजी समुदायों के लिए तो ख़ास योजनाएं बनाई जाती हैं. लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों और स्थानीय प्रशासन के कई अनुरोधों के बावजूद इस बुज़ुर्ग दंपति को अभी तक कोई मदद नहीं मिली है.

इसके अलावा, इनके पास राशन या आधार कार्ड भी नहीं है, तो वो वृद्धावस्था पेंशन से भी वंचित हैं. मयूरभंज कलेक्टर विनीत भारद्वाज ने अखबार को बताया कि वह अधिकारियों से मामले की जांच करने को कहेंगे. और अगर यह दंपति सरकारी लाभों से वंचित हैं, तो यह सुनिश्चित किया जाएगा कि उन्हें वह जल्द से जल्द मिलें.

Exit mobile version