Site icon Mainbhibharat

आदिवासी शहीद दिवस पर जबलपुर में मुख्यमंत्री ने दी श्रद्धांजलि

जबलपुर में 19 सितम्बर, 2025 को आदिवासी शहीद दिवस (168वां) मनाया गया.

इस अवसर पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि इस दिन हमें उन वीर आदिवासी संतानों की शहादत को याद करना चाहिए.

जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने देश की आज़ादी, जंगलों, ज़मीन और संस्कृति की रक्षा के लिए आवाज़ उठाई.

उनका कहना था कि स्वदेशी भावनाएँ यानी अपनी भूमि, अपनी पहचान और आत्म-निर्भरता का सम्मान – ये वही मूल बातें हैं जिनके लिए राजा शंकर शाह और कुँवर रघुनाथ शाह ने अपने प्राणों की आहुति दी.

मुख्यमंत्री ने जबलपुर के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कन्वेंशन सेंटर में फुलमाला अर्पित कर दोनों शहीदों को श्रद्धांजलि दी.

उन्होंने राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुँवर रघुनाथ शाह को “अमर शहीद” कहा, जो कभी भी औपनिवेशिक ताकतों के सामने झुके नहीं.

उन्होंने यह भी कहा कि ये दोनों शहीद सिर्फ हथियार नहीं उठाए हुए थे, बल्कि कविताओं और गीतों के माध्यम से अपने विरोध की आवाज़ बुलंद करते थे.

उन्होंने अपनी रचनाओं में जंगलों, ज़मीन और राष्ट्र की रक्षा का संदेश दिया. नागर‑भाषा से ऊपर उठकर उन्होंने उस समय की अन्यायपूर्ण नीतियों को अपनी कला से चुनौती दी.

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने यह भी जोड़ा कि ब्रिटिश काल में राजा शंकर शाह और कुँवर रघुनाथ शाह के खिलाफ कोई औपचारिक मुकदमा नहीं हुआ, बल्कि ब्रिटिशों ने उन्हें बिना न्याय प्रक्रिया के तोपों से उड़ाने की क्रूर कार्रवाई की.

वर्तमान समय की बात करते हुए, मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में स्वदेशी भाव को बढ़ावा मिलने की बात कही.

उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उत्पादों को अपनाना ही विकास की ओर ले जाने वाला मार्ग है.

ग्राम‑स्तर पर, महिलाओं के स्वयं‑सहायता समूहों द्वारा आर्थिक आत्मनिर्भरता स्थापित करना इसका जीवंत उदाहरण है.

राजा शंकर शाह 19वीं सदी के एक महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे, जो गोंडवाना साम्राज्य के वंशज और जबलपुर के गोंड शासक थे.
उनके पुत्र कुँवर रघुनाथ शाह भी स्वतंत्रता संग्राम में उनके साथ थे.
दोनों पिता‑पुत्र ने 1857 के पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की योजना बनाई थी.
उनकी देशभक्ति से घबराकर अंग्रेजों ने उन्हें बिना मुकदमा चलाए तोप से उड़ा दिया था.
उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले बलिदानों में मानी जाती है.

Exit mobile version