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विपक्षी दलों ने सरकार से अनुसूचित जनजातियों को मान्यता देने के लिए सार्थक कदम उठाने की मांग की

लोकसभा में बुधवार को तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस सहित कई दलों के सदस्यों ने अपने अपने प्रदेशों में कुछ समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिये जाने की मांग उठायी. साथ ही विपक्षी दलों ने मांग की कि सरकार को टुकड़ों में जनजातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के  बजाय जनजातियों की एक व्यापक सूची बनानी चाहिए और उन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल करने और मान्यता देने की दिशा में सार्थक कदम उठाने चाहिए.

लोकसभा में ‘संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आदेश (द्वितीय संशोधन) विधेयक 2022’ पर बोलते हुए सदस्यों ने अपने-अपने राज्यों में जनजातियों के सामने आने वाले मुद्दों को उठाया और बताया कि केंद्रीय सूची में उन्हें शामिल करने से उन्हें कैसे लाभ होगा.

एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने कहा कि महाराष्ट्र में लिंगायत, मराठा समाज, धनगर समाज और मुसलमानों जैसे समुदायों ने सूची में शामिल करने की मांग की है. उन्होंने कहा, “टुकड़े-टुकड़े समावेशन के बजाय मैं सरकार से सभी समुदायों द्वारा की गई मांगों को शामिल करने का अनुरोध करती हूं.”

निचले सदन में तमिलनाडु की दो जनजातियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में डालने के प्रावधान वाले विधेयक पर बुधवार को चर्चा शुरू हुई.

जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने ‘संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2022’ को चर्चा और पारित कराने के लिए सदन में रखते हुए कहा कि इसमें तमिलनाडु की नारिकुर्वर और कुरूविकरण पहाड़ी जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का प्रावधान है.

चर्चा के दौरान नेशनल कांफ्रेंस के सांसद हसनैन मसूदी का विचार था कि अनुसूचित जनजाति सूची में समुदायों को जोड़ने से उनके जीवन पर तब तक कोई फर्क नहीं पड़ेगा जबतक सरकारी सेवाएं उन तक पहुंचने में विफल रहती हैं.

उन्होंने दावा किया कि जब वास्तव में सूची में समुदायों को जोड़ा जा रहा है लेकिन ये तबतक कारगार साबित नहीं होगी जबतक उनकी परिस्थितियों को बदलने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते.

जम्मू-कश्मीर में गुर्जर और बकरवाल जनजातियों का मुद्दा उठाते हुए सांसद ने कहा कि इन खानाबदोश और प्रवासी जनजातियों के पास स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है. उन्होंने कहा कि सारा मामला राजनीतिक कारणों से है. जो कुछ किया जाना चाहिए था वह सार्थक हो ताकि इन समुदायों को लाभ मिले. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.

उन्होंने कहा, “इस सूची में किसी जाति या समुदाय को शामिल करने से कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा. अगर आपका उद्देश्य वास्तव में उनकी मदद करना होता तो आप प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप या नैशनल स्कॉलरशिप में कटौती नहीं करते जो इस समुदाय के लिए है. हकीकत में उनकी मदद के लिए कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.”

हसनैन मसूदी ने सरकार के कदम का समर्थन करते हुए कहा कि रोजगार, शिक्षा और बाल मृत्यु दर के मुद्दों को संबोधित किया जाना चाहिए और सभी समुदायों के लिए सार्थक कदम उठाने की जरूरत है.

वहीं कांग्रेस सांसद वीके श्रीकंदन ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र में जनजातियां परिवहन, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार की कमी के बीच रह रही हैं. उन्होंने कहा, “कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं और कोई भी वाहन उन बस्तियों तक नहीं पहुंच सकता है अगर वहां के लोग आपात स्थिति में होते हैं. आठ वर्षों में 120 शिशुओं की मृत्यु हुई है.”

जबकि अन्नाद्रमुक सांसद पी रवींद्रनाथ ने कहा कि केंद्रीय सूची में जनजातियों को शामिल करने से उनके सामाजिक-आर्थिक विकास में काफी मदद मिलेगी. उन्होंने एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा 267 खानाबदोश और अर्ध-खानाबदोश जनजातियों पर किए गए एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे की स्थिति पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा.

असम में आदिवासी समुदायों की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए निर्दलीय सांसद नबा कुमार सरानिया ने कहा कि ऐसे सभी समुदायों की मांगों को व्यापक रूप से पूरा किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, “जब मैंने जनजातीय क्षेत्रों की यात्रा की तो मैंने देखा कि वे किस स्थिति में रहते हैं. आदिवासियों के लिए सरकार की कई योजनाएं हैं लेकिन वे जमीनी स्तर पर उन लोगों तक उसकी पहुंच नहीं हैं. मैं सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह करता हूं कि सरकारी योजनाओं में कोई भ्रष्टाचार न हो.”

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