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विपक्ष ने इंग्लिश मीडियम शिक्षा योजना को बंद करने के लिए ओडिशा सरकार की आलोचना की

ओडिशा में विपक्षी दल राज्य सरकार द्वारा उस स्कीम को खत्म करने के फैसले पर नाराजगी जाहिर की है जिसके तहत अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ाया जाता था और जिसका सारा खर्च सरकार उठाती है.

इतना ही नहीं इस मामले पर विपक्षी दल BJD और कांग्रेस के विधायक मंगलवार को ओडिशा विधानसभा से बाहर चले गए.

हालांकि, ST और SC डेवलपमेंट मिनिस्टर नित्यानंद गोंड ने कहा कि स्कीम का समय 2024-25 तक था और अब इसे आगे बढ़ाने के लिए सरकार विचार कर रही है.

क्या है स्कीम?

दरअसल, पिछली बीजेडी सरकार ने 2015 में ‘अन्वेषा योजना’ शुरू की थी. इस स्कीम के तहत, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े एसटी और एससी समुदायों के छात्रों को शहरों के इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ाया जाता है और सरकार ट्यूशन, यूनिफॉर्म, किताबें, ट्रांसपोर्टेशन, रहने की जगह और खाने-पीने का खर्च उठाती है.

विपक्ष ने किया जोरदार विरोध

इस मुद्दे पर बहस शुरूआत करते हुए कांग्रेस विधायक दल के नेता राम चंद्र कदम ने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि एक आदिवासी नेता और मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी की सरकार आदिवासी और दलित छात्रों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है.

उन्होंने आरोप लगाया, “बीजेपी सरकार ने एक ऐसी स्कीम बंद कर दी है जिससे आदिवासियों और दलितों में उम्मीद जगी थी. यह बीजेपी सरकार का ‘मनुवादी’ रवैया है, जिसका मकसद आदिवासियों और दलितों को अलग-थलग रखना और उनकी तरक्की में रुकावट डालना है.”

यह देखते हुए कि राज्य की 40 फीसदी आबादी आदिवासी और दलित हैं, राम चंद्र कदम ने कहा, “हमारे CM एक आदिवासी हैं और इसलिए हमें उम्मीद थी कि ST और SC को उनके फायदे मिलेंगे. लेकिन चीजें बिल्कुल अलग हैं.”

बीजद विधायक गणेश्वर बेहरा ने कहा कि पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई अन्वेषा योजना जैसी योजनाओं की वजह से ओडिशा में स्कूल छोड़ने की दर 2023-24 में घटकर 18.1 प्रतिशत रह गई जो 2021-22 में 33 प्रतिशत थी.

उन्होंने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री ने जनसभाओं में स्वयं घोषणा की है कि सरकार आदिवासी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है. क्या शहरों के अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में उन्हें प्रवेश न देकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का यह उदाहरण है?’’

वहीं नित्यानंद गोंड ने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि यह योजना 2015 में शुरू की गई थी और 17 जिलों में करीब 20 हज़ार 473 छात्र विभिन्न छात्रावासों में रहकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘शैक्षणिक वर्ष 2025-26 में कोई नया दाखिला नहीं हुआ क्योंकि इस योजना की हर पांच साल में एक बार रिव्यू होना चाहिए. इस योजना की अवधि 2024-25 तक थी. अब इसे आगे बढ़ाने पर सरकार विचार कर रही है.’’

मंत्री ने कहा कि भाजपा सरकार ने अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के छात्रों की शिक्षा के लिए कई पहल की हैं.

उन्होंने कहा, “हमने ड्रॉपआउट को रोकने के लिए माधो सिंह हाटा खर्चा स्कीम शुरू की है और कई ST और SC छात्र एकलव्य स्कूलों में भी पढ़ रहे हैं. सरकार आदिवासी और दलित स्टूडेंट्स के लिए रेजिडेंशियल स्कूल भी चलाती है. हमने ST और SC स्टूडेंट्स के लिए स्कॉलरशिप भी बढ़ाई है.”

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