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छत्तीसगढ़ में ईसाई आदिवासियों को हिंदू बनाने का अभियान चलाया: रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ बस्तर मंडल के नारायणपुर और कोंडागांव जिलों में ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासियों से मारपीट की घटना में सांप्रदायिक मोड़ आ गया है.

9 दिसंबर से 18 दिसंबर के बीच हुई घटनाओं पर जमीनी हकीकत जानने गए सिविल सोसाइटी के कुछ प्रतिनिधियों ने धर्मांतरण के चलते हिंसा का दावा किया है.

उन्होंने दावा किया है कि दोनों जिलों के गांवों में आदिवासी लोगों के साथ हुई हिंसा हिंदूवादी संगठनों द्वारा की गई है और एक सोचे समझे अभियान के तहत मारपीट की घटना को अंजाम दिया गया.

इस सिलसिले में जारी एक रिपोर्ट में यह दावा गया है कि जिन आदिवासियों ने काफी समय पहले ईसाई धर्म अपना लिया था उनके साथ मारपीट की जा रही है.

इसके साथ ही अब उनके ऊपर ईसाई धर्म छोड़कर फिर हिंदू बनने के लिए दबाव बनाया जा रहा था. कुछ आदिवासी लोगों द्वारा इसका विरोध किए जाने पर उनके साथ मारपीट की गई.

राज्य के अधिकारियों ने हालांकि इस बात से इनकार किया कि हिंसा जबरन धर्म परिवर्तन से संबंधित थी.

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म के निदेशक इरफान इंजीनियर और ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, छत्तीसगढ़ के संयोजक बृजेंद्र तिवारी के नेतृत्व में एक तथ्यान्वेषी दल ने यह रिपोर्ट तैयार की है.

इस रिपोर्ट में गया है, “9 दिसंबर, 2022 से 18 दिसंबर तक नारायणपुर जिले के लगभग 18 गांवों और कोंडागांव जिले के 15 गांवों में सिलसिलेवार हमले हुए जिसमें लगभग 1000 ईसाई आदिवासियों को उनके ही गांवों से विस्थापित किया गया.”

रिपोर्ट में आगे कहती है, “विस्थापित लोगों से कहा गया कि वे अपने ईसाई धर्म को छोड़ दें और हिंदू धर्म में परिवर्तित हो जाएं, ऐसा नहीं करने पर उन्हें उनके गांव को धमकी दी गई या मौत सहित गंभीर परिणाम भुगतने पड़े. कई ईसाई आदिवासियों पर लाठियों, टायर और डंडों से गंभीर हमला किया गया और पीटा गया. कॉलर बोन फ्रैक्चर जैसी चोटों के कारण कम से कम दो दर्जन लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.”

जांच टीम का गठन नारायणपुर और कोंडागांव जिलों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं के बाद किया गया था.

इसमें ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस और यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम जैसे गैर-लाभकारी संगठन भी शामिल थे.

इस टीम ने राहत शिविरों और गांवों का दौरा किया और हिंसा के पीड़ितों के साथ-साथ ग्राम प्रधानों सहित गैर-ईसाई आदिवासियों से बातचीत की.

रिपोर्ट में मदमनार गांव के रहने वाले मंगलु कोरम के हवाले से दावा किया गया है कि उन्हें और उनके गांव के 21 ईसाई परिवारों के सदस्यों को जबरन गांव के मंदिर में ले जाया गया जहां पुजारी ने उन पर पानी छिड़का और उन्हें हिंदू घोषित करने से पहले कुछ अनुष्ठान किए.

उसके बाद जबरन बाइबल की प्रतियां भी उठा लीं. इसी तरह उदीदगांव गांव के 18 परिवारों, फुलहड़गांव के 3 परिवारों और पूटनचंदागांव गांव के 3 परिवारों का भी जबरन धर्मांतरण कराया गया.

यहां तक कि विकलांग व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं को भी क्रूर हिंसा से नहीं बख्शा गया.

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि गांवों में ईसाई आदिवासियों पर किए गए अपराधों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की देखरेख में एक विशेष जांच दल का गठन किया जाना चाहिए.

छत्तीसगढ़ में फैक्ट फाइंडिंग टीम के साथ आए सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय जस्टिस शॉ ने कहा कि रिपोर्ट अगले कुछ दिनों में केंद्र सरकार और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को सौंप दी जाएगी.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आखिरकार 23 दिसंबर को इस मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ी. उन्होंने ट्वीट किया, ”आज दिल्ली में ईसाई समुदाय के प्रतिनिधियों से मुलाकात की. मैंने उन्हें बस्तर के घटनाक्रम और सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में जानकारी दी. छत्तीसगढ़ में कानून से ऊपर कोई नहीं है. समाज में वैमनस्य फैलाने वाले किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा.”

छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने सोमवार (26 दिसंबर) को MBB को बताया कि जब पुलिस विस्थापित ईसाइयों के पुनर्वास के लिए गांवों में गई तो अन्य ग्रामीणों ने साफ मना कर दिया, भले ही इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़े. उनका कहना है कि यह आने वाली चीजों का संकेत है क्योंकि वह मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए आश्वासनों को बहुत कम आंकते हैं.

उनका आरोप है कि “सरकार पूरी तरह खामोश है और पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. उच्च अधिकारी आंखें मूंदे हुए हैं.”

उनका दावा है, “पिछले चार वर्षों में ईसाइयों पर 380 हमले हुए हैं. सरकार ने अधिकारियों से आंखें मूंद लेने को कहा है क्योंकि वह 18 से 20 लाख ईसाई मतदाताओं को निशाना बनाकर हिंदू वोटों को हथियाना चाहती है.”

इस पूरे मामले को समझने के लिए MBB ने कई स्थानीय पत्रकारों से बातचीत की है. इस सिलसिले में ज़्यादातर पत्रकारों ने यह बात मानी की बस्तर के कई ज़िलों में सिलसिलेवार तरीक़े से ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों पर दबाव घर वापसी यानि हिन्दू धर्म अपनाने को कहा जा रहा है.

बस्तर के जगदलपुर के एक पत्रकार सुमित सेंगर से हुई बातचीत में उन्होंने कहा, “बस्तर के आदिवासी बेहद सीधे और भोले लोग हैं. अफ़सोस की बात ये है कि बस्तर पहले ही माओवादी हिंसा के लिए चर्चा में रहता है, और अब धर्म के नाम पर बस्तर को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है.”

स्थानीय पत्रकारों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने MBB को बताया कि ईसाई बन चुके आदिवासियों पर दबाव ज़रूर बनाया जा रहा है. लेकिन कोई बड़ा हमला नहीं हुआ है.

इस मामले में प्रशासन की भूमिका पर पता चला है कि अधिकारी काफ़ी चौकन्ने हैं और क्रिसमस के त्यौहार को देखते हुए गाँवों में भी पुलिस बल की तैनाती की गई थी.

छत्तीसगढ़ में अगले साल विधान सभा चुनाव है और आदिवासी एक बड़ा वोट बैंक है. यह बिलकुल साफ़ है कि चुनाव के मद्देनज़र आदिवासियों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है.

छत्तीसगढ़ सरकार अभी तक इस मामले में चौकन्नी नज़र आ रही है. लेकिन अगर उसकी इस मामले में ज़रा सी भी नज़र चूकी तो बेशक अगले विधान सभा चुनाव में उसे इसकी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है.

लेकिन उससे भी ज़्यादा अफ़सोस इस बात का है कि जब आदिवासी के विकास से जुड़े मसलों की बातचीत होनी चाहिए थी उस समय में आदिवासियों को आपस में लड़ाया जा रहा है.

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