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20 साल पहले समुदाय ने किया बहिष्कार, आदिवासी परिवार की दयनीय हालत में कैसे हो सुधार?

कोविड ने भले ही आज पूरी दुनिया को अलग-अलग और आइसोलेटेड रहना सिखा दिया हो, लेकिन अलगाव का असली मतलब क्या है यह केरल का एक आदिवासी दंपत्ति अच्छे से समझता है.

मलकप्पारा की अडिचिलतोट्टी आदिवासी बस्ती में रहने वाले यह दंपत्ति और उनके दोनों बच्चे अलग-थलग रहना जानते हैं. 20 साल पहले उनका मुदुवान आदिवासी समुदाय ने बहिष्कार कर दिया था.

उनके बहिष्कार की वजह दोनों के एक ही समुदाय से और रिश्तेदार होना है. मुदुवान समुदाय में पारिवारिक संबंधों के सख्त नियम हैं. चूंकि दोनों का खून का रिश्ता है, तो उनके शादी करने पर पाबंदी थी.

चेल्प्पन और यशोदा घने जंगल में रहते हैं, और हाथियों के झुंड से बचने के लिए एक जगह से दूसरी जगह पलायन करते रहते हैं.

उनके दो बच्चे हैं 15 साल का अजी और 9 साल का अतुल, जो वाझचाल में आदिवासी होस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे थे. पिछले साल कोविड के फैलने के बाद स्कूल और होस्टल बंद हो गए, और उन्हें घर लौटना पड़ा.

तब से उनके पास ऑनलाइन शिक्षा जारी रखने की सुविधाएँ नहीं थीं, और उनकी पढ़ाई बंद हो गई.

आदिवासी कार्यकर्ताओं का मानना है कि उन्होंने कई आदिवासी बस्तियां देखी हैं, लेकिन चेलप्पन और यशोदा जैसी दयनीय हालत का सामना कभी नहीं किया.

इस परिवार को वापस बस्ती में सम्मिलित करने की तमाम कोशिशें अब तक बेकार गई हैं. बस्ती के दूसरे निवासी इसके लिए तैयार हैं, लेकिन इस समुदाय के मुखिया और पंचायत सदस्य को अभी भी एतराज़ है.

बस्ती से निकाल दिए जाने की वजह से इस परिवार के पास आधार या राशन कार्ड भी नहीं है, जो उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ देता.

आजीविका के लिए वह नदी से मछली पकड़कर पास के गांव में जाकर बेचते हैं. उस गांव तक पहुंचने के लिए वह बांस की बेड़ी का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें छह घंटे लगते हैं.

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट बीच-बीच में उनकी मदद करने की कोशिश करता है, लेकिन यह काफ़ी नहीं है.

परिवार की दुर्दशा इस साल के शुरुआत में सामने आई थी, जब राज्य मानवाधिकार आयोग ने इसपर सुनवाई की. आयोग ने अधिकारियों को चार हफ़्तों में मामले पर एक रिपोर्ट देने को कहा था.

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